समेकित कृषि प्रणाली से खिल रहा किसानों का चेहरा

जामताड़ा देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ माने जाने वाली कृषि को व्यवसायिक रूप देने के लिए सरका

By JagranEdited By: Publish:Tue, 30 Nov 2021 05:37 PM (IST) Updated:Tue, 30 Nov 2021 05:37 PM (IST)
समेकित कृषि प्रणाली से खिल रहा किसानों का चेहरा
समेकित कृषि प्रणाली से खिल रहा किसानों का चेहरा

जामताड़ा : देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ माने जाने वाली कृषि को व्यवसायिक रूप देने के लिए सरकारी प्रयास का रंग अब दिखने लगा है। किसान भी कहते हैं कि हर रोज नए-नए प्रयोग कर सरकार कृषि प्रणाली को उन्नत बनाने की दिशा में प्रयत्नशील है। इसका ज्वलंत उदाहरण है समेकित कृषि प्रणाली जिसके माध्यम से जिले के किसान आत्मनिर्भर बन रहे हैं। समेकित कृषि प्रणाली से ही नाला प्रखंड के मोहनुपर गांव के प्रगतिशील किसान विमल कांत घोष सालों भर खेती करके अपनी आय वृद्धि कर रहे हैं।

--क्या है समेकित कृषि प्रणाली : समेकित कृषि प्रणाली कृषि की वह तकनीक है जिसमें कृषि से जुड़े सभी कार्य किया जाता है। इसके अंतर्गत मछली पालन, केला, सब्जी, धान, तेलहन आदि फसलों का उत्पादन होता है। इससे किसानों को अल्प सिचाई की व्यवस्था के बाद भी सालों भर खेती करने का विकल्प मिलता है और कम पानी की आवश्यकता वाली फसलों का भी उत्पादन करने में वे सफल होते हैं।

-- केवीके बना प्रमुख मार्गदर्शी : किसानों के पास संसाधन रहने के बाद भी कृषि कार्य घाटा का सौदा साबित हो रहा था। पर, स्थानीय बेना कृषि विज्ञान केंद्र ने क्षेत्र में प्रगतिशील किसानों को चिह्नित कर सबसे पहले उसे प्रशिक्षण दिया और समेकित कृषि प्रणाली की सीख दी। खासकर जिन किसानों के पास अपना तालाब तो था पर वे मछली पालन के सिवाय तालाब से कोई लाभ नहीं ले पाते थे। उन्हें तालाब का मेड़बंदी करवा कर वहां तालाब में मछली पालन के सिवाय केला, बांस, धान, तेलहन व सब्जी फसल उत्पादन का वैज्ञानिक तरीका बताया गया।

-- क्या कहते हैं किसान : मोहनपुर गांव के किसान विमलकांत घोष ने बताया कि उनके पास पूर्व से पांच तालाब था पर उससे मछली पालन के सिवाय कोई अन्य लाभ नहीं मिल पाता था। केवीके से संपर्क में आने के बाद समेकित कृषि प्रणाली की तकनीक सीखने के बाद अब मछली पालन के अतिरिक्त तालाब के मेड़ पर केला, बांस, हल्दी, मिर्च, ओल, सब्जी व तालाब के किनारे खेतों में धान व रबी फसल के रूप में तेलहन फसल सरसों का भी उत्पादन कर रहे हैं। बताया कि पूर्व में रबी फसल तो नहीं के बराबर ही होती थी। अब तेलहन फसल के उत्पादन से भी आमदनी हो जाती है। केवीके से प्राप्त सरसों बीज पूसा-30 से खेती कर रहे हैं। इससे प्रति एकड़ पांच-छह क्विटल सरसों मिल रहा है। तालाब के चार ओर बांस भी लगाया, जिसमें एक बांस का झुड़ लगाने में 50 से 60 रुपये खर्च होता है और इससे 15 से 20 हजार रुपये वार्षिक आमदनी होती है। इसी तरह तालाब के मेढ़ पर टिसू कल्चर केला का भी उत्पादन कर रहे हैं। इसमें प्रति एकड़ पांच-छह हजार रुपये खर्च करके 25 से 30 हजार रुपये वार्षिक आमदनी हो जाती है। इसके अलावा भी ओल, सब्जी, हल्दी, मिर्च आदि के उत्पादन से वार्षिक दस से पंद्रह हजार रुपये की आमदनी हो जाता है। इस प्रकार समेकित कृषि प्रणाली से परंपरागत व घाटे की कृषि से मुक्ति मिल गई।

-- क्या कहते हैं कृषि वैज्ञानिक : क्षेत्र भ्रमण के दौरान किसानों को समेकित कृषि प्रणाली के बारे में जानकारी दी जा रही। ऐसे किसानों को केवीके से जोड़कर वैज्ञानिक खेती के बारे में बताया जा रहा है। वैज्ञानिक विधि से चूना, गोबर और रबी फसल के लिए गेहूं की जगह कम पानी वाले फसल उत्पादन के तरीके से भी अवगत कराया जा रहा है।

---संजीव कुमार, वरीय कृषि वैज्ञानिक, कवीके, जामताड़ा।

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