आपको पता है लकड़ी के खडाऊं का विज्ञान, पूरे शरीर का कर देता है एक्यूप्रेशर; दूर भाग जाते रोग

70-80 के दशक तक गांवों में लोग खड़ाऊं पहनते थे। इन्हें कोई बीमारी नहीं होती थी। मधुमेह या रक्तचाप तो कतई नहीं। पाचन तंत्र भी मजबूत रहता था और मस्तिष्क भी तरोताजा रहता था। इसकी वजह है खड़ाऊं के पीछे छिपा एक्यूप्रेशर।

By Rakesh RanjanEdited By: Publish:Sat, 17 Jul 2021 10:02 AM (IST) Updated:Sun, 18 Jul 2021 10:48 AM (IST)
आपको पता है लकड़ी के खडाऊं का विज्ञान, पूरे शरीर का कर देता है एक्यूप्रेशर; दूर भाग जाते रोग
जमशेदपुर की आयुर्वेद व प्राकृतिक चिकित्सा विशेषज्ञ सीमा पांडेय।

जमशेदपुर, जासं। खड़ाऊं का नाम तो आपने सुना ही होगा, शायद देखा भी हो। आपने यह भी सुना होगा कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जब 14 वर्ष के वनवास पर गए थे, तो राजा भरत ने सिंहासन पर उनकी खड़ाऊं रखकर ही अयोध्या का राजपाट संभाला था। बहरहाल, हम आपको खड़ाऊं के चमत्कारी विज्ञान के बारे में बताने जा रहे हैं।

जमशेदपुर की आयुर्वेद व प्राकृतिक चिकित्सा विशेषज्ञ सीमा पांडेय बताती हैं कि पुराने जमाने में ही नहीं, 70-80 के दशक तक गांवों में लोग खड़ाऊं पहनते थे। इन्हें कोई बीमारी नहीं होती थी। मधुमेह या रक्तचाप तो कतई नहीं। पाचन तंत्र भी मजबूत रहता था और मस्तिष्क भी तरोताजा रहता था। इसकी वजह है खड़ाऊं के पीछे छिपा एक्यूप्रेशर। यह पैर ही नहीं, पूरे शरीर का एक्यूप्रेशर कर देता है। हमारे वैज्ञानिक ऋषि मुनि धरती की गूढ़ रासायनिक संक्रियाओं को समझते थे, इसलिए उन्होंने खड़ाऊं का आविष्कार किया।

खड़ाऊ के पीछे का विज्ञान

आपको गर्व होगा खड़ाऊ के पीछे का विज्ञान जानकर। गुरुत्वाकर्षण का जो सिद्धांत वैज्ञानिकों ने बाद में प्रतिपादित किया, उसे हमारे ऋषि मुनियों ने काफी पहले ही समझ लिया था। उस सिद्धांत के अनुसार शरीर में प्रवाहित हो रही विद्युत तंरगें गुरुत्वाकर्षण के कारण पृथ्वी द्वारा अवशोषित कर ली जाती हैं। यह प्रक्रिया अगर निरंतर चले तो शरीर की जैविक शक्ति (वाइटलिटी फोर्स) समाप्त हो जाती है। इसी जैविक शक्ति को बचाने के लिए हमारे पूर्वजों ने खडाऊं पहनने की प्रथा आरंभ की, ताकि शरीर की विद्युत तरंगों का पृथ्वी की अवशोषण शक्ति के साथ संपर्क न हो सके। इसी सिद्धांत के आधार पर खडाऊं पहनी जाने लगी। यें चीजें जानकर गर्व होता है अपने पूर्वजों पर, और दुख होता है कि आज के तथाकथित सभ्य समाज को, जिसे अपना इतिहास केवल माइथोलॉजी नजर आता है।

एक्यूप्रेशर विशषज्ञ भी दे रहे खडाउं पहनने की सलाह

वैसे आपको बता दें कि एक्यूप्रेशर चिकित्सा विशेषज्ञ एक बार फिर लोगों को खड़ाऊं पहनने की सलाह दे रहे हैं। अब यह आयुर्वेद व प्राकृतिक चिकित्सा के उपकरण-दवा बेचने वाली दुकानों पर भी नजर आने लगा है। अब इसके तलवे वाली सतह को खुरदरा या छोटे-छोटे उभारों वाला भी बनाया जा रहा है। यानी समय के साथ खड़ाऊं में तरह-तरह के प्रयोग भी हो रहे हैं। तो आप भी इसे बाहर ना सही, घर में पहनें। यदि मार्निंग या इवनिंग वाक में इसका उपयोग करें, तो चमत्कारिक लाभ होगा।

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