नथुनी वाली खूबसूरत मछली के बारे में सुना है आपने, देखकर कह उठेंगे - वाह उस्ताद वाह

क्या आपने किसी ऐसी मछली के बारे में सुना है जिसे प्रकृति ने वरदान में नथुनी दी है। उसके पास सुंदरता बढ़ाने के लिए नथुनी तो है लेकिन दूसरी तरफ उसे मीठे पानी का टाईगर भी कहा जाता है।

By Jitendra SinghEdited By: Publish:Sat, 05 Jun 2021 06:00 AM (IST) Updated:Sat, 05 Jun 2021 09:55 AM (IST)
नथुनी वाली खूबसूरत मछली के बारे में सुना है आपने, देखकर कह उठेंगे - वाह उस्ताद वाह
नथुनी वाली खूबसूरत मछली के बारे में सुना है आपने, देखकर कह उठेंगे, वाह उस्ताद वाह

जमशेदपुर। महिलाओं के श्रृंगार में नथुनी का अलग महत्व है। यह नथुनी महिलाओं की खूबसूरती में चार चांद लगा देती है। लेकिन क्या आप नथुनी वाली खूबसूरत मछली के बारे में आपने सुना है। इस मछली को मीठे पानी का टाइगर भी कहा जाता है। आज हम आपको ऐसे ही मछली के बारे में बताते हैं। 

जंगल में शिकार के लिए घात लगाए हुए बाघ हमारी कल्पनाओं में शामिल है। जो हमारी चेतना को धारीदार चमक और कर्कश गर्जना से भर देता है। इस चमत्कारिक जीव के बारे में अनेक कहानियां लिखी गईं और उनका फिल्मांकन किया गया। लेकिन हममें से कितने लोग एक ऐसे ही राजसी स्वभाव वाले बाघ से परिचित हैं, जो पानी की सुंदरता को बढ़ाता है। एक बड़ी मछली जो चमकदार धाराओं या नदियों की पानी में सरकते हुए सोने की तरह चमकती हुई प्रतीत होती है। हममें से कितने लोग महाशीर से परिचित हैं। महाशीर एक मछली है जिसमें एक राजसी आकृति और प्रभावशाली गुण मौजूद होते हैं। इसका संबंध मीठे जल वाली प्रजातियों से है, जिसने प्राकृतिक रूप से रहते हुए बहुत सालों तक विलुप्तीकरण के खतरे को झेला है।

नदियों व झीलों में पाई जाती है यह मछली

एक समय तक यह शाही जीव देशभर के अन्य नदियों और झीलों के अलावा हिमालय और सह्याद्री श्रृंखलाओं के ढलान में निवास करता था। तेज सफेद धाराओं के बीच यह चंचल मछली पानी की सतह के ठीक नीचे तैरती और उल्लास में पानी को फटकारती और सूर्य की मद्धम रोशनी में झिलमिलती हुई प्रतीत होती है। लेकिन बहुत जल्द ही इसके प्रभावशाली आकार और इसके संपन्नता पूर्ण आकृति के कारण इस ताकतवर महाशीर का शिकार किया जाने लगा। यह मछुआरों और मछली की कंपनियों के निशाने पर आ गई। भारत में महाशीर की 15 प्रजातियों में से पांच ने विलुप्तीकरण के गंभीर खतरे का सामना किया। यह वही समय था जब टाटा पावर ने एकदम निर्णायक क्षण में उस मछली के लिए आज से ठीक 50 साल पहले कदम उठाने का निर्णय लिया, जो सचमुच में खुद को पानी से अलग महसूस कर रही थी।

टाटा पावर ने महाशीर को संरक्षित करने का बीड़ा उठाया

टाटा पावर किस तरह से पूरे समर्पित तरीके से महाशीर के संरक्षण में तल्लीनता से जुड़ गया यह एक बहुत ही अनूठी कहानी है। जाहिर तौर पर महाराष्ट्र के ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय ग्रामवासियों द्वारा महाशीर को देव मछली के रूप में पूजा जाता है क्योंकि इसके मुंह के ऊपर एक बार्बल होता है जो महिलाओं द्वारा पहनी जाने वाली नथिनी से मिलता जुलता है। इन स्थानीय लोगों ने महाशीर की संख्या में कमी और आखिरकार इनके गायब हो जाने के ऊपर ध्यान देना शुरू किया। 

टाटा मोटर्स के चेयरमैन सुमंत मुलगांवकर ने की थी पहल

टाटा मोटर्स के पूर्व चेयरमैन सुमंत मुलगांवकर ने लुप्त होती जा रही महाशीर मछली को बचाने का बीड़ा उठाया। उनके इस प्रयास का टाटा समूह के साथ-साथ टाटा इलेक्ट्रिक के तत्कालीन प्रबंध निदेशक मानिकतला का साथ मिला।

टोरा-टोरा के नाम से भी जाना जाता है महाशीर

महाशीर को मीठे पानी का टाइगर कहा जाता है। इसे साफ पानी पसंद है। अगर आज हम महाशीर को संरक्षित नहीं करते हैं तो शायद हमें अगली पीढ़ी को चित्रों में ही बताना पड़ेगा कि नर्मदा नदी में टाइगर रिवर यानी महाशीर मछलियां (टोरा-टोरा) लाखों की तादाद में हुआ करती थीं। महाशीर को टोरा-टोरा के नाम से भी पुकारा जाता है। सुंदरता और चंचलता की वजह से इसे मछलियों की रानी भी कहा जाता रहा है।

एशिया में ही पाई जाती है यह सुनहरी मछली

लुप्तप्राय महाशीर मछली महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश के अलावा पंजाब, हिमाचल और उत्तराखंड की कुछ नदियों में पाई जाती है। एशिया की बात करें तो यह पाकिस्तान, म्यांमार, बांग्लादेश, श्रीलंका और थाइलैंड में भी बहुतायत में मिलती है। भौगोलिक भिन्नता के कारण अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग रंग मिलते हैं। कहीं तांबई, कहीं चांदी की तरह तो कहीं सुनहरा और कहीं काला रंग में यह नजर आता है।

महाशीर को ऐसे संरक्षित कर रहा टाटा पावर

टाटा पावर ने लोनावाला स्थित अपनी वाल्‍वान हैचरी में एक बार में 4-5 लाख महाशीर हैचलिंग की नस्‍ल तैयार करने के लिए देशी विधि विकसित की है। सदी भर पुरानी इस कंपनी ने इंद्रायणी नदी पर बांध बनाकर एक विशाल झील का निर्माण किया है। नीले मीनपक्ष वाली सुनहरी महाशीरों की प्रजाति का यहां जमावड़ा है और ये इस झील के बेहद ऑक्‍सीजनित जल से आकर्षित होती हैं।

ब्रूडर मछली (जिनका उपयोग अंडे देने के लिए किया जाता है) यहां से इकट्ठा की जाती हैं और उन तालाबों या झीलों में डाल दिया जाता हैजहां ऊंचाइयों से पानी की धार गिरतीहो ताकि मानसून और जलप्रपात की ध्वनियों की नकल की जा सके (चूंकि इससे ब्रूडर की प्रजनन प्रक्रिया बढ़ जाती है)।

अनुभवी मछुआरे महाशीर को संरक्षित कर रहे

अनुभवी मछुआरे फिर नज़ाकत और दक्षता के साथ अंडाणुओं और शुक्राणुओं के ब्रूडर को निकाल लेते हैं। उसके बाद अंडाणुओं और शुक्राणुओं को निषेचन के लिए बड़े प्रजनन ट्रे में एक साथ रखा जाता है। यहाँ फिर से अच्छे अंडाणओं जो सुनहरे रंग के होते हैं उन्हें महत्‍वपूर्ण स्‍थान पर रखा जाता है। एक बार जब अंडे निषेचित हो जाते हैं, (पिछले 50 वर्षों में उनमें से 15 मिलियन हो गए हैं), 72-96 घंटों के भीतर बच्चे बाहर निकलते हैं और छिपने के लिए अंधेरी जगहों की तलाश करते हैं। पहले तो वे थोड़े शर्मीले लगते हैं, लेकिन एक महीने के बाद हैचलिंग (या फ्राइ, जैसा कि उन्हें कहा जाता है) लगभग एक सेंटीमीटर लंबे हो जाते हैं और जोरदार तरीके से हरकत शुरू कर देते हैं। और 4-6 महीने बादवो देश भर के विभिन्न मत्स्य विभागों को सौंपने के लिए तैयार हो जाते हैं, जिन्‍हें संबंधित राज्‍यों द्वारा अपनी झीलों और नदियों में डाल दिया जाता है। यह भी टाटा पावर और मत्स्य पालन विभागों के बीच एक बहुत ही सावधानीपूर्वक और अच्छी तरह से समन्वित प्रयास है और पिछले कुछ वर्षों में लगभग 11.6 मिलियन हैचलिंग पूरे भारत में पानी में अपने घर बना चुके हैं और विस्मयकारी नमूनों में विकसित हो रहे हैं जिनकी लंबाई 9 फीट तक और वजन करीब 33 किलोग्राम तक है। 

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