अंतरराष्ट्रीय आदिवासी भाषा दशक मनाने की तैयारी में जुटे साहित्यकार, यूनेस्को की घोषणा के बाद जमशेदपुर व रांची के साहित्यकारों ने किया मंथन

यूनेस्को ने 2022 से 2032 तक अंतरराष्ट्रीय आदिवासी भाषा दशक की घोषणा की है। इसे लेकर ऑल इंडिया संताली राइटर्स एसोसिएशन व ऑल इंडिया ट्राइबल लिटेररी फोरम के संयुक्त तत्वाधान में वर्चुअल मीट किया गया जिसमें आदिवासी भाषाओं के लेखक व भाषा कार्यकर्ता शामिल हुए।

By Rakesh RanjanEdited By: Publish:Tue, 06 Jul 2021 11:44 AM (IST) Updated:Wed, 07 Jul 2021 09:48 AM (IST)
अंतरराष्ट्रीय आदिवासी भाषा दशक मनाने की तैयारी में जुटे साहित्यकार, यूनेस्को की घोषणा के बाद जमशेदपुर व रांची के साहित्यकारों ने किया मंथन
वर्चुअल मीट में शामिल आदिवासी भाषाओं के लेखक व भाषा कार्यकर्ता।

जमशेदपुर, जासं। यूनेस्को ने 2022 से 2032 तक अंतरराष्ट्रीय आदिवासी भाषा दशक की घोषणा की है। इसे लेकर ऑल इंडिया संताली राइटर्स एसोसिएशन व ऑल इंडिया ट्राइबल लिटेररी फोरम के संयुक्त तत्वाधान में वर्चुअल मीट किया गया, जिसमें विभिन्न राज्यों के विभिन्न आदिवासी भाषाओं के लेखक व भाषा कार्यकर्ता शामिल हुए।

बैठक की अध्यक्षता भील भाषा के मशहूर लेखक व आदिवासी एकता परिषद के संस्थापक वाहरू फूलसिंग सोनवणे ने की, जबकि बैठक का संचालन ऑल इंडिया संताली राइटर्स एसोसिएशन के महासचिव रवींद्रनाथ मुर्मू ने किया। एसोसिएशन के उपाध्यक्ष व संताली परामर्श मंडल, साहित्य अकादमी नई दिल्ली के संयोजक मदन मोहन सोरेन ने स्वागत भाषण दिया। फोरम की राष्ट्रीय संगठन सचिव डा. वासवी किड़ो ने विषय प्रवेश करते हुए कहा कि 2019 अंतरराष्ट्रीय भाषा वर्ष के तौर पर मनाया गया। यूनेस्को ने भारत के लेखकों को जानकारी साझा करने की जिम्मेवारी निकोलस बारला को दी थी, लेकिन उन्होंने भारत के आदिवासी लेखकों से जानकारी साझा नहीं की। अब 2022 से 2032 तक अंतरराष्ट्रीय आदिवासी भाषा दशक मनाने की घोषणा यूनेस्को द्वारा की गई तो उसकी जानकारी भी बारला ने साझा नहीं की। भारत में भाषा दशक मनाने की कार्य योजना तैयार की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि इसमें अनाबेल बेंजामिन बाड़ा को एशिया से प्रतिनिधि चुना गया है, जो भाषा पर काम नहीं करते हैं। यूनेस्को में ऑल इंडिया संताली राइटर्स एसोसिएशन और ऑल इंडिया ट्राइबल लिटेररी फोरम का नाम दर्ज किया गया था, लेकिन इसे वंचित कर दिया गया।

यूनेस्को से अनाबेल बेंजामिन बाड़ा को एशिया से प्रतिनिधि चुने जाने का भाषा कार्यकर्ताओं ने किया विरोध

यूनेस्को द्वारा भेजी गई 10 दिसंबर 2021 की सूची में अनाबेल बेंजामिन बाड़ा का नाम के आगे किसी संगठन संस्था से जुड़े होने का परिचय नहीं लिखा था। रातोंरात बाड़ा आदिवासी एकता परिषद के हो गए। रातों-रात ऑल इंडिया कुडूख लिटेररी सोसाइटी के हो गए और रातोंरात इंडिजिनस पीपुल इंडिया नामक संस्था भी खड़ी हो गई। यदि उनको एशिया का प्रतिनिधि होना था तो ऑल इंडिया कुडूख लिटेररी सोसाइटी के लेटरहेड में अनुशंसा करानी थी। आदिवासी एकता परिषद भाषा पर काम नहीं करता है। परिषद में आदिवासी लेखक जरूर हैं, लेकिन उनका भी नाम परिषद से अशोक चौधरी ने नहीं भेजा। दो घंटे पहले अशोक चौधरी से बात कर पत्र भेज दिए गए, जिसे लेकर सवाल उठ रहे हैं। अनाबेल बेंजामिन बाड़ा दिल्ली विश्वविद्यालय में बिजनेस स्टडी पढ़ाते हैं। आदिवासियों पर कुछ काम किया है। लेकिन आदिवासी भाषा पर उनका कोई काम नहीं रहा है। त्रिपुरा कोकबोरोक साहित्य सभा के अध्यक्ष बिकास देबबर्मा ने कहा कि भाषा पर काम करनेवालों को अवसर मिलना चाहिए और यूनस्को को लिखा जाना चाहिए। कर्नाटक के गोड़बोली भाषा के प्रो. शांथा नाइक ने कहा कि पूरे मामले का लेकर यूनेस्को को पत्र लिखेगें। प्रो. स्टीलेट ड्खार खासी लेखिका ने मेघालय से कहा कि गलत हुआ है। हमें लिखना चाहिए और एकजुट रहकर इसका विरोध करना चाहिए। बैठक में कुल नौ प्रस्ताव पारित किए गए।

इन्होंने रखे विचार

बैठक में ऑल इंडिया ट्राइबल लिटेररी फोरम के अध्यक्ष हरिराम मीणा, मशहूर साहित्यकार जदुमनी बेसरा, त्रिपुरा कोकबोरोक साहित्य सभा के अध्यक्ष बिकास देबबर्मा, सूर्य सिंह बेसरा, प्रो. शांथा नाइक, अलोका कुजूर, अल्फा टोप्पो, लक्ष्मण किस्कू, पूर्णेंदू सोरेन, श्रीकांत सोरेन, गणेश मूर्मू, मंगत मुर्मू, उषा किरण आत्राम आदि ने अपने विचार रखे और सुझाव दिए।

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