पूजित था जीवन में मानव का प्रेम जहां, भक्ति प्रेम सेवा के वाहक कबीर थे वहां..., जमशेदपुर के साहित्यकारों ने मनाई कबीर की 644वीं जयंती

शहर की लोकप्रिय व बहुचर्चित बहुभाषीय साहित्यिक संस्था सहयोग ने इस वर्ष भी कबीर जयंती का आयोजन किया। समाज सुधारक उन्नायक और धार्मिक वितंडावाद से समाज को मुक्त रखने का संकल्प लेने वाले संत कबीर का जीवन हमेशा पथ प्रदर्शक रहा है।

By Jitendra SinghEdited By: Publish:Fri, 25 Jun 2021 01:12 PM (IST) Updated:Fri, 25 Jun 2021 01:12 PM (IST)
पूजित था जीवन में मानव का प्रेम जहां, भक्ति प्रेम सेवा के वाहक कबीर थे वहां..., जमशेदपुर के साहित्यकारों ने मनाई कबीर की 644वीं जयंती
कबीर जयंती पर आयोजित हुए कार्यक्रम में संत कबीर की प्रतीकात्मक तस्वीर।

जमशेदपुर, जासं। शहर की लोकप्रिय व बहुचर्चित बहुभाषीय साहित्यिक संस्था सहयोग ने इस वर्ष भी कबीर जयंती का आयोजन किया। समाज सुधारक, उन्नायक और धार्मिक वितंडावाद से समाज को मुक्त रखने का संकल्प लेने वाले संत कबीर का जीवन हमेशा पथ प्रदर्शक रहा है। उनके साहित्य और व्यक्तित्व के संदर्भ में सहयोग के सदस्यों के बीच साहित्यिक विचार विमर्श और काव्य पाठ किया गया।

             संत कबीर का जन्म कब हुआ, यह निश्चित नहीं है, लेकिन ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को उनकी जयंती मनाई जाती है। पिछले वर्ष पांच जून को सहयोग द्वारा मनाई गई, परंतु इस वर्ष हिंदू कैलेंडर के अनुसार 24 जून को आनलाइन मनाया गया। यह वर्ष उनकी जयंती का 644वां वर्ष है। कार्यक्रम की अध्यक्षता सहयोग की अध्यक्ष और कथाकार डा. जूही समर्पिता ने किया। मंच संचालन करते हुए कवयित्री-कथाकार पद्मा मिश्रा ने स्वरचित काव्य पंक्तियों को उद्धृत करते हुए विषय प्रवेश कराया-

पूजित था जीवन में, मानव का प्रेम जहां,

भक्ति ,प्रेम ,सेवा के वाहक कबीर थे वहां

जिनकी मानवता में सत्य और अहिंसा थी,

सहज पथ प्रदर्शक थे, लाखों की भीड़ में

सहज भाव संत पुरुष, युगद्रष्टा कहलाए,

जीवन उत्सर्ग किया जन जन की पीर में

कार्यक्रम का प्रारंभ सहयोग की वरिष्ठ कवयित्री छाया प्रसाद ने कबीर के एक भजन से किया

मन ना रंगाए रंगाए जोगी कपड़ा

आसन मारि मंदिर में बैठे,

ब्रह्म छाड़ि पूजन लागे पथरा

कबीर धार्मिक अंधविश्वास, और पाखंड के घोर विरोधी थे। हिंदू मुस्लिम के बीच कोई विभेद नहीं मानते थे, इसलिए उन्होंने अपने धर्म को संकीर्ण नहीं राजमार्ग के समान विस्तृत रुप प्रदान किया था। सहयोग की कोषाध्यक्ष और वरिष्ठ सदस्य कवयित्री आनंदबाला शर्मा ने इन्हीं भावनाओं के साथ अपनी स्वरचित कविता प्रस्तुत की।

कबीर संकीर्ण नहीं राजमार्ग है

अपढ़ है, अनपढ़ है,

उपलब्ध है,सबके लिए

अगली प्रस्तुति के रूप में कवयित्री कथाकार माधुरी मिश्रा ने कबीर के संतत्व एवं व्यक्तित्व पर चर्चा को आगे बढ़ाते हुए कहा

कबीर केवल एक समय के नहीं हर काल के कवि हैं, जनकवि है, संत पुरुष है, युग बदलने वाले

कबीर के जीवन में गुरु का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान था, गुरु को वे सहज ज्ञान, मुक्ति, मोक्ष और अज्ञानता के अंधकार को दूर करने का साधन मानते थे। कवयित्री निवेदिता श्रीवास्तव ने कबीर के गुरु संबंधी विचारों को उनके ही दोहे के माध्यम से प्रस्तुत किया। गुरु गोविंद दोउ खड़े काके लागूं पाय बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय

संचालक पद्मा मिश्रा ने बताया कबीर सधुक्कडी प्रवृत्ति के संत थे। जहां-तहां भ्रमण करते हुए उन्होंने कबीर पंथ का प्रचार किया, जो सहज है, प्राप्य है, तुम्हारे मन में रहने वाला राम ही परम ब्रह्म है, इस मत को उन्होंने समाज में हिंदू मुस्लिम एकता का सुखद संदेश भी दिया था, कबीर दास की इसी भावना को प्रस्तुत करते हुए कवयित्री पुष्पांजलि मिश्रा ने उनके रचित दोहों की सुंदर प्रस्तुति दी।

तन का जोगी सब करै

मन का विरला कोय

आसुरी सुख ना रैन सुख

ना सुख सुमिरै राम

कबीर बिछुड़या राम सो

ना सुख धूप ना छांव

कबीर जयंती पर संत कबीर को नमन करते हुए डा. अरुण सज्जन की रचित भजन की प्रस्तुति संगीत प्राध्यापिका डीबीएम एस कालेज आफ एजुकेशन जमशेदपुर की अमृता चौधरी ने सस्वर प्रस्तुत किया और संपूर्ण वातावरण को मोहक और भक्तिमय बना दिया। सहयोग संस्था प्रतिवर्ष इस तरह के आयोजन करती रही है और समाज सुधारक कबीर को उनके ही रचित दोहों-साखियो-पदों द्वारा अपना नमन अर्पित करती रही है। अगली कवयित्री के रुप में वरिष्ठ चिकित्सक डा आशा गुप्ता ने कबीर के उपदेशों को निरुपित करते हुए उनके दोहों का पाठ किया।

बिन रखवाला बाहिरा चिड़िया खाय खेत

आधा परधा ऊबरै चेत सके तो चेत

कवयित्री संध्या सिन्हा सूफी ने कबीर पर स्वरचित दोहों के माध्यम से अपनी नमनांजलि प्रस्तुत की।

रुप बने संताप जब, प्रेम बने अनुराग

सूफी सजने तब लगे, धरती पहन सुहाग

वीणा पांडेय ने कबीर के अद्वैत दर्शन और अनपढ़ होते हुए भी सहज ज्ञान की प्राप्ति की ओर संकेत करते हुए कहा कि स्याही कागज नहीं छूने वाले तथा अपने हाथ में कलम नहीं पकड़ने वाले इतने प्रभावशाली मार्मिक काव्य की रचना की है कि साहित्य का इतिहास कबीर को उनकी देन के लिए सदैव स्मरण रखेगा। कबीर विषयक परिचर्चा को आगे बढ़ाते हुए वरिष्ठ कवयित्री सुधा अग्रवाल ने अपने विचार रखे कि यद्यपि कबीर ने पुस्तक ज्ञान प्राप्त नहीं किया था, लेकिन वे प्रेम के ढाई आखर को पढ़कर पंडित हुए थे।

मसि कागद छुयो नहीं, कलम गही नहीं हाथ... इसके बाद आयोजन की अंतिम कविता कवयित्री अर्चना राय ने पढ़ी कबीर की वाणी-दोहे

दिल को छुए मन को मोहे!

हर सवाल का हल मिल जाए

जिसने सरस, सरल

ज्ञान के बीज बोए!

फल भी हिंदू-मुसलमान हो गए

अंत में अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए आयोजन एवं सहयोग की अध्यक्ष डा. जूही समर्पिता ने कहा आज अपने देश में चारों तरफ लोग धर्म के नाम पर विवादों में घिरते चले जा रहे हैं यहां तक कि फल भी हिंदू और मुसलमान हो गए। शब्द भी हिंदू और मुसलमान हो गए। कहां गई वो गंगा जमुनी सभ्यता। कहां गई वो तहज़ीब जो गंगा-जमुना की संस्कृति में थी। कबीर ने बहुत सही कहा था मोको कहां ढूंढो रे बंदे मै तो तेरे पास, न मैं काबा न मैं काशी ना काबे कैलाश में... कबीर कहते हैं मैं तो तुम्हारे अंदर हूं और अंतिम सांस तक तुम्हारे अंदर ही रहूंगा तो फिर किस बात का झगड़ा। चांद और सूरज दोनों हमारे अंदर हैं, नदी जो बहती है वो तुम्हारे साथ तुम्हारे अंदर भी बहती है और मेरे साथ भी बहती है, अपने अंदर उस ध्वनि को अपनी अंतरात्मा की आवाज को पहचानो, यही सच्चा धर्म है। संचालन के अंतिम चरण में पद्मा मिश्रा ने अपनी काव्य पंक्तियां पढ़ी विचलित है न्याय, सत्य आज भी पराजित है, पीड़ित मानवता के शूल चुभे पांवों को, आज भी एक कबीर की जरूरत है।

धन्यवाद ज्ञापन इंदिरा तिवारी ने किया, जबकि गोष्ठी में डा. नरेश अग्रवाल, मामचंद अग्रवाल बसंत, डा. आशा श्रीवास्तव, डा. सरित किशोरी श्रीवास्तव, रेणुबाला मिश्रा, सरिता सिंह, विद्या तिवारी, मनीला कुमारी आदि उपस्थित श्रोता के रूप में उपस्थित थीं।

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