World Refugee Day : अब तक नहीं मिटा शरणार्थी का दाग, लोग कर रहे इनकी जमीन पर कब्जा

World Refugee Day जमशेदपुर के शंकोसाई रोड नंबर दो स्थित खुदीराम बोस कालोनी में अब भी 59 शरणार्थी परिवार रह रहे हैं। इनका आधार व राशन कार्ड तो बना पर अब तक जमीन का पट्टा नहीं मिला। आलम यह है कि लोग इनकी जमीन पर कब्जा कर रहे हैं।

By Rakesh RanjanEdited By: Publish:Sun, 20 Jun 2021 07:20 PM (IST) Updated:Mon, 21 Jun 2021 09:10 AM (IST)
World Refugee Day : अब तक नहीं मिटा शरणार्थी का दाग, लोग कर रहे इनकी जमीन पर कब्जा
खुदीराम बोस कालोनी को लोग रिफ्यूजी कालोनी के नाम से जानते हैं।

जमशेदपुर, जासं। झारखंड के जमशेदपुर के मानगो के शंकोसाई में रोड नंबर-2 स्थित खुदीराम बोस कालोनी को लोग रिफ्यूजी कालोनी के नाम से जानते हैं। इस कालोनी का नामकरण 1980 में हुआ था। फिलहाल यहां 59 लोग किसी तरह दखल लेकर घर बनाकर रह रहे हैं। जब ये शरणार्थी यहां आए थे, कुल 40 परिवार में 100 लोग थे। आज भी ये किसी तरह अपनी रोजी-रोटी चला रहे हैं।

पंद्रह परिवार अपनी जमीन औने-पौने दाम में बेचकर दूसरे स्थान पर चले गए हैं। ये अब भी शरणार्थी होने का दंश झेल रहे हैं। जब तब लोग रिफ्यूजी कहकर ताना देते हैं और मारते-पीटते हैं। कोई सुनने वाला नहीं है। उनका आधार कार्ड और राशन कार्ड तो बना है, लेकिन जमीन का पट्टा आज तक नहीं मिला। इनके पास भारत सरकार और बिहार सरकार द्वारा प्रदान की गइ जमीन का नक्शा मौजूद है। जिला के रिकार्ड में भी यहां रहने वाले सभी लोगों के नाम हैं। 1980 में तत्कालीन एसडीओ सजल चक्रवर्ती के प्रयास से तथा तत्कालीन विधायक मृगेंद्र सिंह के प्रयास से किसी तरह इनके घर बन गए। सभी परिवार के सदस्यों ने मेहनत कर अपना घर खड़ा किया। बस उसी में ये लोग आज भी रह रहे हैं। इस कालोनी में रहने वाले सभी लोग बांग्लादेश से आए थे।

बेतिया में हुए दंगे के बाद पार्वती टाकीज में ठहरे थे शरणार्थी

शंकोसाई के खुदीराम बोस कालोनी में रहने वाले शरणार्थी सबसे पहले बांग्लादेश से 1971 में छत्तीसगढ़ के रायपुर आए थे। वहां उन्हें मिलिट्री कैंप में ठहराया गया। वहां वे लोग 1977 तक रुके। इसके बाद उन्हें पश्चिम चंपारण के बेतिया शिफ्ट किया गया। वहां दंगा होने के बाद वे लोग बिहार सरकार के आदेश पर 1979 में जमशेदपुर पहुंचे। स्थानीय प्रशासन के सहयोग से इन्हें मानगो के ओल्ड पुरुलिया रोड स्थित पार्वती टाकीज में ठहराया गया। इसके बाद इन्हें 1980 में शंकोसाई रोड़ नंबर-दो स्थित सामुदायिक भवन में स्थानांतरित किया गया। बाद में इसी के आसपास की जमीन में इन्हें बसने को कहा गया।

दुकान शरणार्थियों की, दखल किसी और का

स्थानीय प्रशासन के सहयोग से शंकाेसाई के इन शरणार्थियों के लिए साकची स्थित टिन शेड मार्केट में टाटा स्टील के सहयोग से 50 दुकानें आवंटित की गई। इनमें से 25 लोगों को दुकानों का पट्टा दिया गया, लेकिन इन्हें दुकान पर आज तक दखल नहीं मिला। सबसे आश्चर्य की बात यह है कि दखल नहीं मिलने के बावजूद जिन लोगों ने इनकी दुकानों पर कब्जा कर रखा है, वे लोग इनके नाम से बाजार समिति की रसीद कटवा रहे हैं।

घर में आग लगा देने की धमकी देते दबंग

बुजुर्ग साधन कुमार दास बताते हैं कि जब शरणार्थियों की जमीन पर कब्जे का विरोध किया जाता है, तो दबंग उनके घरों में आग लगा देने की धमकी देते हैं। इस कारण कई लोग यहां से छोड़़कर चले गए। अब मात्र चार बुजुर्ग ही इस कालोनी में बचे हैं। उनका कहना है कि हमारे पास जमीन का नक्शा है, पुनर्वास के कागजात हैं, लेकिन जमीन का पट्टा अभी तक हमारे नाम से नहीं हुआ है। जिला प्रशासन भी इस दिशा में कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है। चुनाव के समय नेताओं के साथ यहां दबंग आते हैं और अपने समर्थन में वोट मांगते हैं।

बस किसी तरह चल रहा जीवन-यापन

मिहिर दे बताते हैं कि इस शरणार्थी कालोनी के लोगों का किसी तरह जीवन यापन चल रहा है। कोई फुटपाथ पर आलू-प्याज बेच रहा है, तो कोई राजमिस्त्री का काम कर रहा है। कोई साइकिल से घूम-घूमकर कपड़ा बेचता है। इनका कहना है कि बच्चे बड़ी मश्किल से स्कूलों में पढ़ रहे हैं। हमें स्थानीय मामलों में दखल देने की कोई इजाजत नहीं है।

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