international Literacy Day 2021: पहाड़ों पर ‘भविष्य का सवेरा’, साइकिल वाली दीदी ने उठाया बीड़ा

World Literacy Day 2021 इनका जज्बा तारीफ के काबिल है। नाम है द्रौपदी गोराइ। द्रौपदी तीन किलोमीटर दूर से आती हैं और 20 फीट ऊंचाई पर चढ़कर आदिम जनजाति के बच्चों को पढ़ाने जाती है। पढाने का इनका अंदाज अहलदा है।

By Rakesh RanjanEdited By: Publish:Wed, 08 Sep 2021 09:34 AM (IST) Updated:Wed, 08 Sep 2021 07:42 PM (IST)
international Literacy Day 2021: पहाड़ों पर ‘भविष्य का सवेरा’, साइकिल वाली दीदी ने उठाया बीड़ा
बच्चों को पढाती साइकिल वाली दीदी द्रौपदी गोराई।

अमित तिवारी, जमशेदपुर। मंजन कर लो...मंजन कर लो। मां, पिताजी, भईया, दीदी...मंजन कर लो...। कपड़ा पहन लो...कपड़ा पहन लो...। स्नान कर लो... स्नान कर लो..। हाथ धो लो... हाथ धो लो...। नाश्ता कर लो...नाश्ता कर लो...। जमशेदपुर मुख्यालय से लगभग 65 किलोमीटर दूर पोटका प्रखंड के लांगो गांव के पहाड़-जंगलों में यह गीत गूंज रहा है। शहरों में रहने वालों के लिए यह कोई नई बात नहीं है, लेकिन पहाड़-जंगलों में निवास करने वाले आदिम जनजाति की जिंदगी में यह बड़ा बदलाव ला सकता है। कारण कि ये आज भी पूरी दुनिया से कटे हुए हैं।

जंगलों में रहते और जानवरों के साथ सोते हैं। उनका दिन-रात इसी तरह से कटता है। अपने मौलिक अधिकार से ये बिल्कुल अनजान हैं। लेकिन साइकिल वाली दीदी ने यहां के छोटे-छोटे बच्चों का भविष्य संवारने का बीड़ा उठाया है। इनका नाम वैसे तो द्रौपदी गोराई है, लेकिन लोग प्यार से इन्हें ‘साइकिल वाली दीदी’ के नाम से पुकारते हैं। द्रौपदी की जिद इन बच्चों को शिक्षित करने की है। कहती हैं कि आदिम जनजाति का भविष्य यही बच्चे हैं। इसी उद्देश्य के साथ द्रौपदी पहाड़-जंगलों में गुम बच्चों के भविष्य में सवेरा लाने का काम कर रही हैं।

मुख्य सड़क पर साइकिल लगाकर पहाड़ पर चढ़ती हैं द्रौपदी

साइकिल खड़ी कर इसी रास्ते से पहाड़ पर जाती है द्रौपदी।

कभी यह गांव नक्सलियों का गढ़ हुआ करता था, लेकिन अब बदलते भारत की तस्वीर प्रस्तुत कर रहा है। इस गांव की पहाड़ी पर आदिम जनजाति सबर समुदाय के लगभग 14 परिवार निवास करते हैं। वहां तक पहुंचने के लिए कोई रास्ता नहीं है। द्रौपदी लगभग तीन किलोमीटर दूर से आती हैं और मुख्य सड़क पर अपनी साइकिल लगाकर लगभग 20 फीट की ऊंचाई पर चढ़ती हैं। जंगलों के बीचों-बीच वह पहाड़ पर जाती हैं। इस दौरान उन्हें एक नाला भी पार करना पड़ता है। तब जाकर उन सबर समुदाय के बच्चों से मुलाकात होती है। इन बच्चों के लिए पहाड़ पर एक झोपड़ीनुमा घर भी तैयार किया गया है, जहां बच्चों को गीत के माध्यम से पढ़ाती हैं।

दसवीं तक पढ़ी हैं द्रौपदी

द्रौपदी भले ही ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं हैं, लेकिन वह बदलाव का जज्बा लेकर आगे बढ़ रही हैं। वह दसवीं तक पढ़ी हैं, जो विलुप्तप्राय जनजाति सबर समुदाय के बच्चों का भविष्य संवारने के लिए काफी है। इनका मकसद शुरुआती दिनों से ही बच्चों को शिक्षित करना है ताकि उनकी उम्र जब आठ-दस साल के हो तो वे पढ़ाई के महत्व को समझ सकें। पढ़ाई से दूर नहीं भागें। दरअसल, पढ़ाई जब बोझ बनने लगती है तो बच्चे उससे दूर भागने लगते हैं। अभी तक इन्होंने चार बच्चे को शिक्षित कर कस्तूरबा विद्यालय में दाखिला दिलाया है। वहां से जब ये बच्चे पढ़ाई पूरी कर निकलेंगे, तो उनके जीवन में बदलाव जरूर दिखेगा। वे भी सरकारी नौकरी के हकदार बनेंगे। उनका भविष्य भी बदलेगा और देश की मुख्यधारा से जुडेंगे। इन बच्चों को मुख्यधारा में लाना कठिन काम जरूर है, लेकिन हम एक दिन कामयाब जरूर होंगे। इस मिशन को आगे बढ़ाने में यूथ यूनिटी फॉर वॉलेंटरी एक्शन (युवा) संस्था की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। संस्था बच्चों को किताब-कॉपी से लेकर कपड़ा तक उपलब्ध कराती है। बीच-बीच में इन बच्चों के बीच पौष्टिक आहार का भी वितरण किया जाता है।

     - द्रौपदी गोराइ, साइकिल वाली दीदी।

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