World Heritage Day 2021: टाटा स्टील के उच्चाधिकारियों को था सिक्का संग्रह का शौक, बना दिया संग्रहालय
World Heritage Day 2021 जमशेदपुर सिक्का संग्रहालय में सीप-कौड़ी से लेकर मिट्टी तक के सिक्के हैं। ईसा बाद 128-154 ईस्वी तक मिट्टी या मड क्वाइन चलते थे। वहीं ईसा पूर्व 600 ईस्वी में चांदी के छड़ वाले सिक्के चलते थे जिसे पंचमार्क या सिल्वर बेंट बार क्वाइन कहा जाता था।
जमशेदपुर] वीरेंद्र ओझा। World Heritage Day 2021 बचपन में लगभग सभी बच्चों को किसी न किसी चीज के संग्रह का शौक रहता है, लेकिन बहुत कम लोग होते हैं जो बड़े होने तक इसे जीवित रखते हैं। ऐसे ही चुनिंदा लोगों में टाटा स्टील के पूर्व प्रबंध निदेशक डा. जेजे ईरानी व पूर्व उप प्रबंध निदेशक डा. टी. मुखर्जी हैं। इन्हीं दोनों अधिकारियों की पहल व प्रोत्साहन से जमशेदपुर में सिक्का संग्रहालय मूर्त रूप ले सका, जो झारखंड-बिहार का इकलौता गैर-सरकारी सिक्का संग्रहालय है।
यह संग्रहालय टाटा स्टील के शताब्दी वर्ष में शहरवासियों को तोहफा के रूप में सामने आया। इसका उद्घाटन 29 अप्रैल 2009 को टाटा स्टील के तत्कालीन सीओओ (चीफ ऑपरेटिंग आफिसर) हेमंत एम. नेरुरकर ने किया था। बाद में नेरुरकर टाटा स्टील के एमडी भी बने। उन्हें भी दुर्लभ सिक्कों के संग्रह का शौक था, तो इसके निर्माण से लेकर देखरेख की जिम्मेदारी जब जुस्को को दी गई, तो उसके तत्कालीन एमडी आशीष माथुर भी सिक्कों के शौकीन थे। क्वाइन कलेक्टर्स क्लब के सचिव पी. बाबू राव बताते हैं आशीष माथुर ने इसे बच्चों तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भागीदारी निभाई। बहरहाल, यहां करीब 45,000 सिक्के हैं, जो किसी न किसी ने दिए ही हैं। इनमें सबसे ज्यादा करीब एक हजार चांदी के सिक्के जर्मनी में बसे टाटा स्टील के पूर्व इंजीनियर निताईदास बनर्जी के हैं। उन्होंने अब तक जर्मनी में प्रचलित सभी तरह के सिक्कों का नायाब संग्रह दिया। हालांकि वे इसे देख नहीं सके। करीब छह माह बाद उनका निधन हो गया। उनकी पत्नी हर साल अक्टूबर में यहां साकची के आमबगान स्थित आवास पर आती हैं, तो संग्रहालय जरूर आती हैं।
हर राजा के सिक्के मौजूद
जमशेदपुर सिक्का संग्रहालय में सीप-कौड़ी से लेकर मिट्टी तक के सिक्के हैं। ईसा बाद 128-154 ईस्वी तक मिट्टी या मड क्वाइन चलते थे। वहीं ईसा पूर्व 600 ईस्वी में चांदी के छड़ वाले सिक्के चलते थे, जिसे पंचमार्क या सिल्वर बेंट बार क्वाइन कहा जाता था। यह सिक्का कषाण, कोशल, मगध, सतबहना, उज्जैन आदि के साम्राज्य में भी चले। कश्मीर व मगध में तांबे के सिक्के भी चले, जबकि पूर्वोत्तर राज्यों में चांदी के सिक्के चलते थे। ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में पूरी तरह स्थापित होने के बाद 1935 से लंदन के टकसाल में ढले सिक्के चलाने लगी, जो मिली-जुली या मिश्रित धातु की होती थी। आज भी भारत में इसी तरह के सिक्के ढाले जाते हैं।