World Food Safety Dayः करीब 15 वर्ष से बेसहारों को उम्दा भोजन करा जमशेदपुर के रहे बुलू दास
गरीब को दो जून की रोटी मिल जाए वही बहुत होता है। महंगे और लजीज व्यंजन के दर्शन उन्हें कहां हो पाता है। कुछ यही सोचकर शहर के बड़े टेंट कारोबारी पीएन दास उर्फ बुलू दास करीब 15 वर्ष से गरीबों-बेसहारों को उम्दा भोजन करा रहे हैं।
जमशेदपुर, वीरेंद्र ओझा। गरीब को दो जून की रोटी मिल जाए, वही बहुत होता है। महंगे और लजीज व्यंजन के दर्शन उन्हें कहां हो पाते हैं। कुछ यही सोचकर शहर के बड़े टेंट कारोबारी पीएन दास उर्फ बुलू दास करीब 15 वर्ष से गरीबों-बेसहारों को उम्दा भोजन करा रहे हैं।
शहर के लगभग सभी बड़े क्लब में होनेवाली पार्टियों में टेंट व कैटरिंग की व्यवस्था बुलू दास ही करते हैं। जाहिर सी बात है कि यहां एक से बढ़कर एक लजीज व्यंजन बनते हैं। रात को जब पार्टी खत्म होती है, तो भोजन परोसने से बच जाती है, उसे सुरक्षित तरीके से वह बाराद्वारी स्थित मदर टेरेसा द्वारा स्थापित संस्था निर्मल हृदय पहुंचा देते हैं। नियमित रूप से हर दिन वहां लजीज व्यंजन पहुंचने से अब वहां रहने वाले बेसहारे भी रात को बुलू दास के डिश का बेसब्री से इंतजार करते हैं। दास बताते हैं कि यह काम किसी के कहने पर नहीं शुरू नहीं किया था, अपने आप इसका ख्याल आया। एक बार किसी पार्टी में बहुत ज्यादा भोजन बच गया था, तो अचानक उनके मन में कुछ आया और कर्मचारियों से कहा कि इसे निर्मल हृदय पहुंचा दो। अगले दिन वहां की देखरेख करने वाली सिस्टर ने मुझे फोन करके धन्यवाद दिया, तो बहुत खुशी हुई। तब से यह सिलसिला चला आ रहा है। हालांकि कोरोना की वजह से इस पर विराम लगा हुआ है। मिशनरीज ऑफ चैरिटी के इस सेंटर में फिलहाल 80 बेसहारा हैं। इससे ज्यादा भोजन बचता है तो सुंदरनगर स्थित चेशायर होम भेज देता हूं।
सेवा भावना पिता से मिली
बुलू दास बताते हैं कि सेवा की भावना मुझे अपने पिता स्व. विपिन बिहारी दास से मिली। करीब 60 वर्ष पूर्व पिताजी ने साकची स्थित राजेंद्र विद्यालय से एक लाउडस्पीकर सेट के साथ व्यवसाय शुरू किया था। जब मैं बड़ा हुआ तो उनके काम में हाथ बंटाने लगा। धीरे-धीरे व्यवसाय बढ़ाते हुए 1990 में व्यापक स्तर पर टेंट का कारोबार शुरू किया। विद्यालय के कर्मचारी बताते हैं कि आज भी स्कूल में कोई कार्यक्रम होता है, तो बुलू दास अपनी तरफ से सजावट के कई काम कर देते हैं। टोकने पर कहते हैं कि आज मैं जो कुछ भी हूं, उसमें इस स्कूल का योगदान कभी नहीं भूल सकता। स्कूल की पिकनिक या छोटे आयोजनों के लिए बिना पैसा लिए सामान दे देते हैं। पूरे शहर में इनकी समाजसेवा की ख्याति है। ये अपनी पत्नी अनिमा दास की स्मृति में हर साल ग्रामीण क्षेत्रों में फुटबॉल टूर्नामेंट का भी आयोजन कराते हैं, वह भी एक साल से बंद है।