Durga Puja: महिलाओं ने सिंदूर लगा मां दुर्गा से अखंड सौभाग्य का मांगा आशीर्वाद

दुर्गा मां की प्रतिमा विसर्जन से पूर्व मां को विदाई देने की परंपरा सदियों पुरानी है। इस संबंध में पंडित धनंजय शर्मा कहते हैं कि जिस तरह बेटियां अपने ससुराल से मायके में आकर रहती है। फिर कुछ दिनों के बाद अपने घर यानि ससुराल वापस लौट चली जाती है।

By Rakesh RanjanEdited By: Publish:Sat, 16 Oct 2021 02:06 PM (IST) Updated:Sat, 16 Oct 2021 02:06 PM (IST)
Durga Puja: महिलाओं ने सिंदूर लगा मां दुर्गा से अखंड सौभाग्य का मांगा आशीर्वाद
बंगाली समाज के लोग पूरे नौ दिनों तक विधि-विधान से देवी मां की पूजा करती हैं।

जागरण संवाददाता, जमशेदपुर । शारदीय नवरात्र में नौ दिनों के अनुष्ठान के बाद शुक्रवार को विजयदशमी पर शहर भर के दुर्गापूजा पंडालों में मां दुर्गा को अश्रुपूर्ण विदाई दी गई। कोरोना के कारण पंडाल और मूर्तियां छोटी रखी गई थी। मेला व भीड़ नहीं लगने देने की पूरी कोशिश की गई थी। लेकिन मां दुर्गा की विदाई के समय महिलाओं ने एक- दूसरे के साथ जमकर सिंदूर खेल खेलीं। महिलाएं एक -दूसरे को सिंदूर लगाकर एवं मां दुर्गा के प्रतिमा के समक्ष सिंदूर चढ़ाकर मां से आशीर्वाद मांगा।

शहर के मानगो, साकची, काशीडीह, सिदगोड़ा, बारीडीह, सोनारी, कदमा, टेल्को, गोविंदपुर, जुगसलाई आदि क्षेत्रों में स्थित मां दुर्गा के पंडाल में मां दुर्गा को विदाई देने के अवसर पर सिंदूर खेल खेलीं। सोनारी स्थित रॉकी मैदान में आयोजित दुर्गा पूजा में मां दुर्गा की 26 फीट उंची मूर्ति की विदाई से पहले महिलाओं द्वारा सिंदूर खेला का आयोजन किया गया। वहीं मानगो गांधी मैदान सार्वजनिक दुर्गापूजा पंडाल में विदाई से पहले महिलाओं ने जमकर सिंदूर खेला खेलते हुए एक दूसरे को सिंदूर लगाया। बंगाली समुदाय की महिला कविता ने बताया कि विजयादशमी के दिन पंडालों में महिलाएं मां दुर्गा को सिंदूर अर्पित करती हैं। खासतौर पर बंगाली समाज के लोग पूरे नौ दिनों तक विधि-विधान से देवी मां की पूजा करती हैं।

सिंदूर खेल विदाई देने की सदियों पुरानी परंपरा

दुर्गा मां की प्रतिमा विसर्जन से पूर्व मां को विदाई देने की परंपरा सदियों पुरानी है। इस संबंध में पंडित धनंजय शर्मा कहते हैं कि जिस तरह बेटियां अपने ससुराल से मायके में आकर रहती है। फिर कुछ दिनों के बाद अपने घर यानि ससुराल वापस लौट चली जाती है। ठीक उसी तरह देवी दुर्गा अपने मायके यानि धरती पर आकर रहती हैं। अपने भक्तों को आशीर्वाद देती हैं। इसके बाद नौ दिन बीताने बिताने के बाद दशमी तिथि पर अपने घर यानि भगवान शिव के पास मां पार्वती के रूप में कैलाश पर्वत पर चली जाती हैं। लोग जिस तरह बेटियों को उनके ससुराल जाने पर भेंट भेंट देते हैं, ठीक उसी तरह लोग दुर्गा मां के विसर्जन से पहले उनके पास एक पोटली भरकर बांध देते हैं। इस पोटली में मां के श्रृंगार का सामान, प्रसाद आदि रखा जाता हैं, ताकि उन्हें देव लोक जाते समय रास्ते में कोई परेशानी का सामना ना करना पड़े।

महिलाएं मनाती हैं सिंदूर खेला उत्सव

मां दुर्गा की विदाई के समय महिलाएं मां के समक्ष सिंदूर चढ़ाकर उनसे आशीर्वाद लेतीं हैं, इसके बाद सिंदूर खेला खेलती हैं। खासकर बंगाली समुदाय की महिलाएं इस खास पर्व पर दुर्गा विसर्जन से पहले सिंदूर से होली खेलती हैं। जिसे सिंदूर खेला कहा जाता है। हालांकि आज के समय सभी समुदाय की महिलाएं सिंदूर खेला खेलती हैं। पंडित धनंजय शर्मा कहते हैं कि सिंदूर खेला का उत्सव सौकड़ों साल से मनाया जा रहा है। इस दिन महिलाएं पान के पत्तों पर सिंदूर रखकर उसे मां दुर्गा के गालों को स्पर्श करती हैं। फिर उससे उनकी मांग और माथे पर सिंदूर लगाती है। मान्यता है कि इस पर्व को मनाने से देवी मां की असीम कृपा से सुहाग की लंबी उम्र होती है। इसके दिन दुर्गा मां को पान और कई अलग-अलग मिठाइयों का भोग भी लगाने की परंपरा है। इसे विवाहित महिलाओं द्वारा खेला जाता है। इस दौरान महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर बधाई देती है। देवी मां के अखंड सौभाग्य की कामना करती हैं।

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