Swami Vievekanand Birth Anniversary : विवेकानंद को पढ़े बगैर भारत को जानना मुश्किल, याद रखें स्वामी जी की ये चार बातें
Swami Vievekanand Birth Anniversary. भारत के लिए स्वप्न देखने वाले स्वामी विवेकानंद ऐसे समाज का गठन करना चाहते थे जिसमें धर्म और जाति के नाम पर कोई भेदभाव न हो । अध्यात्मवाद की उन्होंने भौतिकवाद से उपर उठकर व्याख्या की।
जमशेदपुर, जासं। इस परिवर्तनशील संसार में कौन नहीं मरता और कौन जन्म नहीं लेता है , परंतु जन्म तो उसी का सार्थक होता है जिसके जन्म से वंश उन्नति को प्राप्त होता है।भतृहरि की यह उक्ति अक्षरश: स्वामी विवेकाननंद की जीवनी में प्रतिफलित होती है ।
कोल्हान विश्वविद्यालय चाईबासा के कुलपति प्रोफेसर गंगाधर पंडा ने कहा कि रामकृष्ण परमहंस के महनीय व्यक्तित्व नरेंद्र नाथ को अविभूत किया था जिसके फलस्वरूप उनमें गुरु का शक्तिपात हुआ । इसके अतिरिक्त उन पर मां भुवनरेश्वरी देवी का भी प्रभाव पड़ा था जिसके कारण वे बचपन से ही रामायण, महाभारत एवं पुराणों के महनीय चरित्रों के संबंध में ज्ञान प्राप्त कर उनके आदर्श से अनुप्राणित हो चुके थे । परिवार में भजन- कीर्तन निरंतर चलते रहने के कारण धार्मिक एवं आध्यात्मिक वातावरण से उनका जीवन संस्कारयुक्त हो गया था और ईश्वर संबंधी जिज्ञासा उन्हें स्थिर होने नहीं देती थी । गुरु के शरण में समर्पित जीवन यापन से एवं उनकी कृपा से उनकी समस्त जिज्ञासाएं शांत हो गई।
ये थी स्वामी जी की खास चाहत
उन्होंने कहा कि भारत के लिए स्वप्न देखने वाले यह साधु ऐसे समाज का गठन करना चाहते थे जिसमें धर्म और जाति के नाम पर कोई भेदभाव न हो । अध्यात्मवाद की उन्होंने भौतिकवाद से उपर उठकर व्याख्या की जो केवल मानवतावादी थी । युवा पीढियों से उन्हें बहुत उम्मीद थी । उनका कुछ संबोधन इस प्रकार था हे अमृत के अधिकारीगण ! तुम ईश्वर की संतान हो । अमर आनंद के भागीदार हो । पवित्र और पुण्य आत्मा हो । तुम इस मर्त्यभूमि पर देवता हो । मनुष्य को पापी कहना पाप है । अगर आपको भारत को जानना है तो विवेकानंद को पढ़ना ही होगा।
स्वामी विवेकानंद की ये चार बातें
गुरुभक्ति: भारतीय परंपरा में गुरु परब्रह्म का स्वरूप है । गुरु एक माध्यम है जिससे शिष्य जीवन के लक्ष्य की ओर उचित मार्ग में बिना भटकाव के जा सकता है । स्वामीजी अपने गुरुदेव की सेवा अनन्य भक्ति से करते थे । कर्कट रोग से ग्रस्त गुरु के रक्त, कफ, मलमूत्र आदि को स्वयं साफ करते थे । स्वयं के अस्तित्व को गुरुदेव में विलीन कर स्वयं विश्वगुरु के रूप में प्रतिष्ठित हुए । भारत के अमूल्य आध्यात्मिक धरोहर को देश- विदेश में फैला कर कालजयी बनाये ।
सनातन धर्म भारतीय अस्मिता का प्रचार : शिकागो शहर में उनके संबोधन से अमेरिकी बहन और भाइयों से धर्मसभा में उपस्थित सारी जनता पुलकित हो उठी थी एवं अवर्णनीय हर्ष से सभी की अंतरात्मा हर्षित हो गयी थी । सभी धर्मो में सनातन धर्म के महत्व को सिद्ध करने के लिए उन्होंने कहा कि जैसे विभिन्न नदियां भिन्न- भिन्न स्रोतों से निकलकर समुद्र में मिल जाती हैं, इसी प्रकार भिन्न भिन्न रुचिवाले अंत में परमात्मा में समाहित हो जाते हैं । सांप्रदायिक हृठधर्मिता और धर्मान्धता को छोड़कर हमको आगे बढ़ना होगा । अध्यात्म विद्या और भारतीय दर्शन के बिना विश्व अनाथ हो जाएगा । इस प्रकार उक्तियों से भारतीय तत्व ज्ञान की अद्भूत ज्योति को स्वामी विकिरण किया था ।
सामाजिक संगठन: अमेरिका में स्वामीजी ने रामकृष्ण मिशन की अनेक शाखाएं स्थापित की जो स्वामी जी के आदर्श एवं रामकृष्ण की चिंतनधारा को विकसित किया । अमेरिका के विश्वधर्म सम्मेलन में उन्होंने हिन्दू साधु के रूप में प्रतिनिधित्व किया था एवं सार्वभौम परिचय देकर भारत का गौरव बढाया । गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर कहते हैं यदि आप भारत को जानना चाहते हैं तो विवेकानंद को पढ़िये । संत होने के साथ-साथ वे एक देशभक्त, विचारक, चिन्तक, लेखक एवं मानवतावादी व्यक्तित्व के धनी थे । धर्म एवं दर्शन की पुण्यभूमि भारत को वैश्विक पहचान दिलाया । आज रामकृष्ण मिशन द्वारा की जा रही सेवा चाहे शिक्षा, चिकित्सा, दार्शनिक विचारधारा या नेतृत्व से संबंधित हो, वहां विवेकानन्द ही दिखाई पड़ते हैं ।
शिक्षा संस्कार: स्वामीजी मैकाले शिक्षानीति के विरोधी थे । वे नहीं चाहते थे कि भारत का युवक केवल किरानी या बाबू बने । वे चाहते थे मानवता का सर्वांगीन विकास एवं आत्म निर्भरता । उनके आधारभूत सिद्धांतों में से शिक्षा के द्वारा शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक विकास, बालक- बालिका की समानता, आचरण एवं संस्कार, लौकिक एवं पारलौकिक विषयों से संबंधित पाठ्यक्रम, गुरु शिष्य में मधुर संबंध, सर्वसाधारण के लिए समान प्रकार की शिक्षा आदि प्रमुख थे ।
प्रोफसर गंगाधर पांडा कोल्हान विश्वविद्यालय के कुलपति हैं।