GST पर क्यों मचा है कोहराम, बता रहे किशोर गोलछा
GST. वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) में संशोधन को लेकर पूरे देश के कारोबारी 26 फरवरी को हड़ताल कर रहे है। आखिर इसकी वजह क्या है आप भी जानिए। सिंहभूम चैंबर ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्री के कार्यसमिति सदस्य किशोर गोलछा ने इसका विश्लेषण किया है।
जमशेदपुर, जासं। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) में संशोधन को लेकर पूरे देश के कारोबारी 26 फरवरी को हड़ताल कर रहे हैं, जिसमें वे अपनी दुकान-प्रतिष्ठान बंद रखेंगे। आखिर इसकी वजह क्या है, आप भी जानिए। सिंहभूम चैंबर ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्री के कार्यसमिति सदस्य किशोर गोलछा ने इसका विश्लेषण किया है कि जीएसटी से कारोबारियों-व्यापारियों समेत इससे जुड़े सभी पेशेवरों को क्या परेशानी हो रही है।
करदाता किसी भी राज्य में आसानी से व्यापार कर सकेंगे
गोलछा कहते हैं कि जिस जीएसटी का व्यापारी वर्षों इंतजार कर रहे थे या यूं कहें कि मांग भी कर रहे थे। आखिर क्या हुआ कि जीएसटी के खिलाफ बंद का आह्वान कर डाला। इसे जानने के लिए हमें कुछ पीछे जाना पड़ेगा। वर्ष 2017 के पहले वैट, एक्साइज एवं सर्विस टैक्स के कानूनों द्वारा केंद्र व राज्य सरकारें कर वसूलती थीं। अलग-अलग राज्यों में वैट को लेकर अलग-अलग कानून एवं वस्तुओं पर अलग-अलग करारोपण किया जाता था। नब्बे के दशक में देश में उदारीकरण की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई। अन्य देशों के व्यापारी भी भारत में आने लगे। देश के प्रत्येक हिस्से में अलग अलग कानून थे और वस्तुओं पर अलग-अलग कर। ऐसे में कानून का अनुपालन बड़ी विदेशी और देसी कंपनियों के लिए जी का जंजाल बन गया। तब आवश्यकता महसूस हुई की पूरे देश में एक तरह का अप्रत्यक्ष कर लागू होना चाहिए, जिससे ना सिर्फ विदेशी कंपनियां बल्कि देसी कंपनियों को भी कर देने में सहूलियत हो। निश्चित रूप से यह समय की मांग थी और काफी समय से ऐसे सरल कानून की मांग की जा रही थी, जो बिना किसी हिचक के करदाता को कर देने की सुविधा प्रदान करे। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के समय हालांकि इसका ड्राफ्ट भी तैयार किया गया, लेकिन सरकारी इच्छा शक्ति के अभाव में जीएसटी लागू नहीं किया जा सका। 2014 में जब केंद्र में भाजपा की सरकार आई, तब व्यापारियों में यह आशा जगी कि यह सरकार एक प्रभावी और सरल कानून लाकर व्यापार को सरल बनाएगी।
आधी रात को हुआ था लागू, मना था जश्न
देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ देश का व्यापार है। अगर व्यापारिक गतिविधियां सुगमता से चलती है तभी सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) उन्नत दिशा की और बढ़ती है तथा देश प्रगति की ओर। भाजपा सरकार ने इसे समझते हुए जब देश में जीएसटी लागू करने का फैसला किया तो व्यापारियों ने भी इसका भव्य स्वागत किया। घंटे-घड़ियाल बजाकर तो कहीं केक काटकर या गुब्बारे छोड़कर एक जुलाई 2017 की मध्य रात्रि (12 बजे) देश की संसद और पूरे देश में समारोहपूर्वक जीएसटी का स्वागत किया गया। इसके पूर्व सरकार के मंत्री एवं अधिकारियों ने पूरे देश में भ्रमण भी किया और व्यापार जगत को आश्वस्त किया की जीएसटी कर प्रणाली एक सुगम कर प्रणाली है, जिसके माध्यम से सरकार ‘एक देश एक कर’ को लागू करना चाहती है। बताया गया कि जटिलताओं का दौर अब समाप्त होगा। सुगम कर प्रणाली के बाद करदाता और विभाग के बीच अपील और मुकदमेबाजी समाप्त हो जाएगी। व्यापार जगत को कर विशेषज्ञों की भारी भरकम फीस से भी निजात मिलेंगे। सारे देश में एक कर प्रणाली लगने से व्यापार सुगम हो जाएगा और करदाता किसी भी राज्य में आसानी से व्यापार कर सकेंगे।
साढ़े तीन वर्ष में हुए करीब 900 संशोधन
व्यापारियों ने भी सरकार की बातों का विश्वास किया और नई कर प्रणाली के लिए अपनी सहर्ष सहमति भी दी। शुरुआत में हुई दिक्कतों को व्यापारियों-उद्योगपतियों ने सरकार के समक्ष रखा और सरकार की और से बार-बार भरोसा दिलाया गया कि ये सभी शुरुआती दौर की दिक्कतें हैं, जिसे ठीक कर लिया जाएगा। जैसे-जैसे समय निकलता गया और सरकार द्वारा कुछ जटिलताओं को ठीक भी किया गया और कई नए प्रावधान भी लाए गए। पिछले साढ़े तीन वर्षों में 900 से ज्यादा अलग-अलग अधिसूचना जारी की गई। लेकिन हालात सरलता से जटिलता की ओर बढ़ते चले गए। ज्यों-ज्यों इलाज की, मर्ज बढ़ता गया। इस दौरान कुछ लोगों द्वारा (लगभग 1 से 2 प्रतिशत) भारी मात्रा में करवंचना भी की गई और फलस्वरुप सरकार और कानून निर्माताओं ने उसके दंडस्वरुप अन्य सभी करदाताओं के लिए भी कानून के प्रावधानों को कड़ा और जटिल बनाने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी। यहाँ यह भी समझने वाली बात है कि सरकार और जीएसटी का पूरा प्रशासनिक तंत्र कर-चोरी रोकने में विफल रहा और हताशा स्वरुप इसका बोझ सभी करदाताओं को दे दिया गया। अब यह कानून इतनी पेचीदगियों से भर गया है कि इसे सुधारने के लिए सरकार को भगीरथ प्रयास करना होगा, नहीं तो करदाताओं में आक्रोश बढ़ता जायेगा। राज्य और केंद्र के बीच भी इस कानून में समन्वय के आभाव के फलस्वरूप एक देश एक कर की जगह जनता को जीएसटी में कई तरह के कर लाद दिए गए, जैसे आइजीएसटी, सीजीएसटी, एसजीएसटी, यूटीएसटी आदि आदि, अन्यथा इस सबकी जरुरत ही नहीं पड़ती। यहां तक कि जीएसटी के क्रियान्वयन के लिए जो ऑनलाइन नेटवर्क बनाया गया, उसे लेकर भी करदाताओं में लगातार असंतोष जारी है।
अब यह गेंद सरकार के पाले में
पिछले कुछ दिनों में निबंधन रद करने, इनपुट टैक्स क्रेडिट रोकने, संपत्ति जब्त करने, ई-वेबिल की सीमा घटाने, ब्याज और पेनाल्टी के साथ सजा देने के प्रावधान आने के बाद तो व्यापारी पूरी तरह से बिफर पड़े। 8 फरवरी से 10 फरवरी तक व्यापारियों के बड़े और देशव्यापी संगठन कनफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) की बैठक में व्यापरियों ने 26 फरवरी 2021 को भारत बंद का निर्णय ले लिया। बैठक में मौजूद आल इंडिया ट्रांसपोर्ट वेलफेयर एसोसिएशन ने कैट के बंद को समर्थन देते हुए चक्का बंद की भी घोषणा कर दी। अन्य संगठन जैसे चार्टर्ड एकाउंटेंट और कर-अधिवक्ता भी बंद के समर्थन में आ गए। सरकार ने संगठनों और नेताओं को दिल्ली बुलाकर तुरंत बैठक की, लेकिन बैठक बेनतीजा रही। फलस्वरूप 26 फरवरी को भारत बंद सुनिश्चित हो गया। अब यह गेंद सरकार के पाले में है और यह देखना होगा कि सरकार किस तरह इसका समाधान करती है।