जब Tata-Birla ने मिलकर भारत का पहला स्वदेशी Economic Roadmap किया तैयार, अंग्रेज भी आ गए थे टेंशन में

क्या आपको पता है कि भारत के स्वाधीन होने के तीन साल पहले ही हमारे देश के उद्योगपतियों ने आर्थिक समृद्धि का खाता तैयार कर लिया था। इस दस्तावेज का नाम बॉम्बे प्लान था। इसे बनाने में भारत रत्न जेआरडी टाटा व जीडी बिड़ला जैसे उद्योगपतियों ने सहयोग किया था।

By Jitendra SinghEdited By: Publish:Fri, 18 Jun 2021 06:00 AM (IST) Updated:Fri, 18 Jun 2021 09:40 AM (IST)
जब Tata-Birla ने मिलकर भारत का पहला स्वदेशी Economic Roadmap किया तैयार, अंग्रेज भी आ गए थे टेंशन में
टाटा-बिडला ने मिलकर भारत का पहला स्वदेशी आर्थिक रोडमैप तैयार किया था।

जमशेदपुर। जनवरी 1944, भारत के स्वाधीन होने के ठीक तीन साल पहले एक दस्तावेज प्रकाशित किया गया था जिसने भारत के ब्रिटिश शासकों की भृकुटी तन गई थी। इस पैम्फलेट की कीमत मात्र एक रुपये थी। यह भारत को आर्थिक रूप से समृद्ध बनाने का रोडमैप था।

पैम्फलेट को आम लोगों ने हाथों हाथ लिया। स्थिति यह हो गई कि इसे एक ही वर्ष में दो बार पुनर्मुद्रित करना पड़ा। इसके बाद पेंगुइन ने इसे यूनाइटेड किंगडम में प्रकाशित किया। आखिर इस दस्वावेज में ऐसा क्या था, जिससे ब्रिटिश साम्राज्य में खलबली मच गई।

सन 1944 का मुंबई शहर। 

टाटा-बिड़ला ने खींचा बॉम्बे योजना का खाका

यह दस्तावेज में भारत के आर्थिक विकास के लिए एक व्यापक योजना थी, जिसे जल्द ही 'बॉम्बे योजना' कहा जाने लगा। इस दस्तावेज को सिर्फ आठ लोगों ने मिलकर तैयार किया था, जिसमें जेआरडी टाटा व जीडी बिड़ला जैसे उद्योगपति शामिल थे। बाद में इस दस्तावेज को टाटा-बिड़ला प्लानिंग भी कहा जाने लगा। यह एक साहसिक योजना थी जिसने देश के औद्योगिक विकास में बड़े पैमाने पर निवेश का आह्वान किया। वास्तव में, यह भारत की पहली स्वदेशी राष्ट्रीय आर्थिक योजना थी।

दस्तावेज देख परेशान हो गए थे अंग्रेज

भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड वेवेल इस आर्थिक दस्तावेज को देखकर काफी परेशान थे और उन्होंने तुरंत लंदन में विदेश मंत्री को पत्र लिखा। योजना प्रकाशित होने के तुरंत बाद भेजे गए अपने पहले पत्र में उन्होंने कहा: '10,000 करोड़ रुपये की आर्थिक योजना से भारत में काफी हलचल मची हुई है।'

भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के साथ जेआरडी टाटा।

वायसराय लॉर्ड वेवेल ने विदेश मंत्री को लिखा सीक्रेड लेटर

इसके बाद, मई 1944 में, वायसराय लॉर्ड वेवेल ने एक सीक्रेड लेटर लिखा, 'मैं देख रहा हूँ कि पेंगुइन पब्लिकेशंस की सीरीज में बांबे योजना सामने आई है। सर ग्रेगरी, जो आलोचना को बहुत दिल से लेते हैं, ने सोचा कि हमें तुरंत एक प्रतिद्वंद्वी पैम्फलेट तैयार करना चाहिए और इसे भारत कार्यालय के माध्यम से प्रसारित करना चाहिए।'

आठ सदस्यों की बनी थी कमेटी

जाहिर है, इस स्वदेशी आर्थिक प्रस्ताव से अंग्रेज काफी घबरा गए थे। वह इस तथ्य से परेशान थे कि भारत के भविष्य संवारने की दिशा में भारतीय उनसे बहुत आगे निकल गए हैं। इस पहला स्वदेशी आर्थिक दस्तावेज को पूरा करने में भारत के आठ उद्योगपित व टेक्नोक्रेट साथ आए थे। इस कमेटी में पिछले आठ साल से टाटा समूह का अध्यक्ष की कमान संभाल रहे जेआरडी टाटा के अलावा जेआरडी से दस साल बड़े बिरला समूह के जीडी बिरला थे। इसके अलावा दिल्ली के डीसीएम ग्रुप के चेयरमैन लाला श्रीराम, अहमदाबाद के उद्योगपति व शिक्षाविद कस्तूरभाई लालभाई, मुंबई के एक व्यवसायी पुरुषोत्तमदास ठाकुरदास शामिल थे। इन पांच उद्योगपतियों के अलावा सर अर्देशिर दलाल, एडी श्रॉफ और डॉ जॉन मथाई भी टीम में थे।

 

1946 में सरदार वल्लभ भाई पटेल के साथ जीडी बिरला। 

जेआरडी ने कहा, आर्थिक समृद्धि मुट्ठी भर लोगों में नहीं सिमटना चाहिए

लेकिन आठ दिग्गजों के इस समूह ने बॉम्बे योजना बनाने के लिए एक साथ आने का फैसला क्यों किया? जैसा कि जेआरडी टाटा ने कहा है, 'मुझे पता था कि आजादी जल्द मिलने वाली है। मुझे पता था कि देश को मुश्किल अर्थव्यवस्था से निपटना होगा। आर्थिक समृद्धि सिर्फ मुट्ठी भर लोगों के हाथोें में सिमटकर नहीं रहना चाहिए। हर भारतीय को इसका लाभ मिलना चाहिए। इसमें व्यवसायी वर्ग के अलावा भारत सरकार को भी महती भूमिका निभानी होगी।

जेआरडी ने जीडी बिड़ला की प्रशंसा की

कमेटी शुरुआत में भारत राष्ट्र के आर्थिक भविष्य पर व्यापक विचार-विमर्श में लगी हुई थी, लेकिन बाद में एक प्रकाशित योजना के माध्यम से अपने विचारों को तेजी से और सार्वजनिक रूप से व्यक्त करने का निर्णय लिया। जेआरडी टाटा ने इस बदलाव का श्रेय जीडी बिड़ला को दिया। जेआरडी टाटा एक जगह पर लिखते हैं- जीडी बिड़ला कुशाग्र बुद्धि के धनी थे। जब हम पहली कुछ बैठकों में हमें आर्थिक संरचना तैयार करने में मुश्किलें पेश आ रही थी, तो उन्होंने ही सुझाव दिया था - यह भविष्यवाणी करना मुश्किल है कि भारत को स्वतंत्र होने के बाद क्या करना चाहिए ... तो चलिए इसे इस तरह से करते हैं - लोगों को उस तरह का अनुमान लगाने के लिए पहले अनुमान लगाएं वे जो जीवन स्तर चाहते हैं, उसमें क्या ज़रूरत है। भोजन की इतनी कैलोरी के लिए इतने टन अनाज, इतने मीटर कपड़े, आवास, स्कूल आदि की आवश्यकता होती है।

 

 1944 में शिमला में अमेरिकी सैनिकों से मिलते वायसराय लॉर्ड वेवेल। 

देश को 2100 हजार करोड़ की थी आवश्यकता

प्लानिंग के इस मात्रात्मक दृष्टिकोण को बॉम्बे योजना के पूरे पन्नों में देखा जा सकता है। उदाहरण के लिए, योजना में बताया गया है कि भारत एक कृषि प्रधान देश होने के बावजूद भारतीयों के एक बड़े हिस्से को खाने के लिए पर्याप्त भोजन नहीं मिल रहा था। इसके बाद इसने खाद्य आपूर्ति के लिए एक योजना बनाई जिसमें प्रति वयस्क प्रति दिन 2600 कैलोरी के संतुलित पोषक आहार को ध्यान में रखा गया और वास्तव में एक भारतीय को रोजाना कितना अनाज चाहिए, यह बताया गया। एक भारतीय को अनाज (16 औंस), दालें (3 औंस), सब्जियां (6 औंस), फल (2 औंस), दूध (8 औंस) चाहिए। और अंत में, कमेटी इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि उस समय भारत की 389 मिलियन लोगों की आबादी को इस पोषण को वितरित करने के लिए 2100 करोड़ रुपये के वार्षिक व्यय की आवश्यकता होगी।

10,000 करोड़ कैसे जुटाएं, यह भी बताया गया

कमेटी इस निष्कर्ष पर पहुंची कि भोजन, वस्त्र, आवास, शिक्षा और उद्योग के लिए कुल 10, 000 करोड़ रुपये की आवश्यकता है। उसके बाद बॉम्बे प्लान ने धन के विभिन्न स्रोतों की रूपरेखा तैयार की, जिनका उपयोग किया जा सकता है। दिलचस्प बात यह है कि धन का पहला स्रोत देश की जमा संपत्ति सोना थी।

इसके अलावा, इसने भारतीय रिजर्व बैंक के स्टर्लिंग प्रतिभूतियों (Sterling Securities) से फंडिंग, व्यापार के अनुकूल संतुलन, विदेशी उधार, राष्ट्रीय बचत, अनर्जित आय का भारी टैक्स लगाने से लेकर सरकार को नया नोट प्रिंट करने की सलाह दी।

बिजली, खनन के क्षेत्र में कैसे हो काम

बॉम्बे योजना ने बिजली, माइनिंग, इंजीनियरिंग, आयुध और परिवहन जैसे बुनियादी उद्योगों के तेजी से विकास के लिए एक रूपरेखा तैयार की। साथ ही कपड़ा, कांच, चमड़ा और तेल जैसे उपभोक्ता उद्योग को आगे बढ़ाने के लिए भी रोडमैप तैयार किया। स्वतंत्र भारत के आर्थिक विकास के लिए यह पहला व्यवस्थित प्रयास था।

chat bot
आपका साथी