मोक्ष के लिए भी इंतजार, श्मशान के लॉकर में बंद पड़ी अस्थियां

कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर में कई लोगों को अंतिम समय में अपने प्रियजनों के दर्शन भी नहीं हुए। अस्पताल से सीधे जिला प्रशासन के आदेश पर सुवर्णरेखा बर्निंग घाट पर कोविड नियमों का पालन करते हुए शवों का अंतिम संस्कार कर दिय गया।

By Rakesh RanjanEdited By: Publish:Tue, 22 Jun 2021 05:24 PM (IST) Updated:Tue, 22 Jun 2021 05:24 PM (IST)
मोक्ष के लिए भी इंतजार, श्मशान के लॉकर में बंद पड़ी अस्थियां
जमशेदपुर के बर्निंग घाट पर लाॅकर में रखी अस्थियां।

अन्वेश अंबष्ट, जमशेदपुर। कोरोना संक्रमण या अन्य वजह से काल के गाल में समा गए लाेगों की अस्थियां अभी भी मोक्ष के इंतजार में है। स्वजनों ने शमशान घाटों पर अस्थियां तो रख दी, लेकिन उसे लेने नहीं आ रहे हैं। कुछ ने अस्थियों को रखने के लिए समय सीमा को बढ़ा दिया है। नए सिरे से पंजीयन कराए तो कुछ लाेग एक माह के बाद अस्थियों को लेने आ रहे हैं। अब भी 115 से अधिक अस्थियां शहर के तीन शमशान घाट पर रखे हुए हैं जिन्हें लेने के लिए लोग नहीं आ रहे हैं।

ऐसी मान्यता है कि अस्थियों को गंगा या यमुना मेंं प्रवाहित करने से पूर्वजों को मुक्ति मिलती हैै। साकची सुवर्णरेखा बर्निंग घाट पर 45 और जुगसलाई पार्वती घाट पर 12 अस्थियां बीते 60 दिन से पड़ी हुई हैं। जमशेदपुर में जुगसलाई में शिव घाट, जुगसलाइ में पार्वती घाट और साकची में सुवर्णरेखा बर्निंग घाट है। बता दें कि कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर में कई लोगों को अंतिम समय में अपने प्रियजनों के दर्शन भी नहीं हुए। अस्पताल से सीधे जिला प्रशासन के आदेश पर सुवर्णरेखा बर्निंग घाट पर कोविड नियमों का पालन करते हुए शवों का अंतिम संस्कार कर दिय गया। सुवर्णरेखा बर्निंग घाट पर छह अस्थियां हैं जिनकी मौत कोरोना संक्रमण से हुई थी जो मोक्ष के इंतजार में अपनों का इंतजार कर रहे है। साकची सुवर्णरेखा घाट के प्रबंधन की माने तो पहली बार इतनी संख्या में अस्थि कलश रखे हुए हैं। दरअसल, शहर में कोरोना की दूसरी लहर का असर सबसे अधिक देखने को मिला। संक्रमित मरीजों की मौत हुई।

हर दिन हुए साठ शवों के अंतिम संस्कार

सुवर्णरेखा शमशान घाट पर कोरोना संक्रमित को छोड़ दूसरे शमशान घाटों पर अप्रैल 10 के बाद मई अंतिम तक हर दिन 50 से 60 शवों का अंतिम संस्कार का सिलसिला जारी था। शवों के अंतिम संस्कार को स्वजनों को 10 घंटे तक इंतजार करना पड़ रहा था। पार्वती घाट पर अधिक शवों का अंतिम संस्कार होने के कारण अस्थि कलश रखने को लॉकर में जगह नहीं बची थी। इसके बाद बाहर अस्थियाें को रखा गया। जुगसलाई पार्वती घाट पर अस्थि कलश रखने का शुल्क 50 रुपये हैै, जो सिफ 15 दिनों के लिए हैै। 15 दिन से अधिक होने पर तारीख को बढ़ाया जाता है। यहीं हाल सुवर्णरेखा बर्निंग घाट का है। जुगसलाई पार्वती घाट के मैनेजर विनोद तिवारी और साकची बर्निग घाट के कर्मचारी की माने तो आवागमन की सुविधा नहीं होने के कारण लोग अस्थि को इच्छा और परंपरा अनुसार बाहर नहीं ले जा पा रहे हैं, लेकिन समय-समय से लॉकडाउन अनलॉक हो रहा है। स्वजन अस्थियां ले जा रहे हैं तो कुछ लोग तारीख बढ़वा दे रहे हैं।

क्या कहते मृतक के स्वजन

पिता की अस्थियां प्रयागराज में गंगा में प्रवाहित करनी है ताकि मोक्ष की प्राप्ति हो, लेकिन लॉकडाउन होने के कारण नहीं जा सका। जैसे ही आवागमन की सुविधा रफ्तार पकडे़गी अस्थी को गंगा में विसर्जित करूंगा। खुद अच्छा नहीं लग रहा है, लेकिन मजबूरी है।

- एसके सिंह, टेल्को

मेरा पैतृक आवास बिहार के गोपालंगज में है। इच्छा है कि पिता की अस्थियों को पटना जाकर गंगा में प्रवाहित करें। बसों का आवागमन बिहार में लॉकडाउन के कारण नहीं हो पा रहा था। झारखंड से बिहार बस नहीं जा रही है। जैसे ही बसों का परिचालन होगा, सबसे पहले अस्थियों का विसर्जन करुंगा।

-राजू प्रसाद, कीताडीह

हिंदू परंपरा अनुसार लोग अंतिम संस्कार के बाद अस्थियों को प्रयागराज, हरिद्वार, काशी, बंगाल और बिहार में जाकर गंगा में विसर्जित करते हैं ताकि मरने वालाें को माेक्ष की प्राप्ति हो। घर-परिवार में शांति बनी रहे। धर्मानुसार 10 दिन के भीतर अस्थियों का विसर्जन कर देना चाहिए। कुछ लोग जहां शव का अंतिम संस्कार होता है, वहीं नदी में ही अस्थियों को विसर्जित कर देते है।

-पंडित एसके त्रिपाठी

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