सूर्य के संक्रांति दिवस को भगवान विश्वकर्माजी का हुआ था जन्म, नाना ऋषि अंगिरा व मामा बृहस्पति
जासं जमशेदपुर देवलोक के मुख्य अभियंता व इस ब्रह्मांड के निर्माणकर्ता भगवान विश्वकर्माजी समस्त मा
जासं, जमशेदपुर : देवलोक के मुख्य अभियंता व इस ब्रह्मांड के निर्माणकर्ता भगवान विश्वकर्माजी समस्त मानव जाति के आराध्य हैं। जिस पर इनकी कृपा दृष्टि हो जाती है, उसे विद्या, बुद्धि, विशेष ज्ञान-विज्ञान, तकनीकी, अभियंत्रण व शिल्पकला के क्षेत्र में कुछ भी अप्राप्य व दुर्लभ नहीं है। इनकी कृपा से भक्त को संबंधित क्षेत्र में उन्नति, लाभ, यश व ख्याति का पूर्ण योग प्राप्त होता है।
विश्वकर्माजी कौन हैं। उनका जन्म कब, किनसे व कैसे हुआ? इसका पूर्ण व विस्तृत विवरण श्री विष्णु पुराण के प्रथम अंश के पंद्रहवें अध्याय में श्लोक संख्या 118 से 125 के मध्य उल्लेखित है। श्री विष्णु पुराण के अनुसार विश्वकर्माजी की माता देवगुरु बृहस्पति की बहन व ऋषि अंगिरा की पुत्री थीं, जिनका नाम वरस्त्री था। वरस्त्री का विवाह धर्म व वसु के आठवें पुत्र प्रभास के साथ हुआ, जिनसे महाभाग प्रजापति विश्वकर्मा का जन्म हुआ। सहस्त्रों शिल्पों के कर्ता, देवताओं के मुख्य शिल्पी, देवलोक के विमान व समस्त आविष्कार कर्ता यही विश्वकर्माजी ही हैं। इनके कला विज्ञान को देखकर ब्रह्माजी ने इन्हें अपना मुख्य सहयोगी बना लिया। विश्वकर्माजी के चार पुत्र हुए, जिनके नाम क्रमश: अजैकपाद, अहिबरुघ्न्य, त्वष्टा एवं रुद्र हैं। उपरोक्त उल्लेखों के आधार पर विश्वकर्माजी के नाना का नाम ऋषि अंगिरा, मामा देव गुरु बृहस्पति हैं। विश्वकर्मा जी के दादा का नाम धर्म एवं दादी का नाम वसु था। सभी देवगण के पिता भी धर्म ही हैं व माता का नाम मुहूर्त है। -----------
वर्षा ऋतु का अंत व शरद ऋतु का प्रारंभ
गोचरीय गति के अनुसार सूर्य देव के कन्या राशि में प्रवेश के साथ वर्षा ऋतु का अंत व शरद् ऋतु का प्रारंभ होता है। इसी सूर्य के संक्रांति दिवस को भगवान विश्वकर्माजी का जन्म हुआ था। इसलिए सूर्य के इस संक्रांति दिवस को शिल्पकला ज्ञान के प्रदाता भगवान विश्वकर्माजी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भक्तों द्वारा भगवान विश्वकर्मा का विधिवत आवाह्न ध्यान व पूजन किया जाता है। यह उत्सव मुख्य रूप से समस्त निर्माण कार्य, औद्योगिक क्षेत्र, तकनीकी या अभियंत्रण क्षेत्र से जुड़े लोगों द्वारा औद्योगिक प्रतिष्ठानों या औद्योगिक ईकाइयों में धूमधाम एवं उत्साह के साथ किया जाता है। वर्तमान आधुनिक मशीनी युग में सबके पास सुख, संचार एवं मनोरंजन के आधुनिक साधन बढ़ते जा रहें हैं। वर्तमान के आधुनिक मशीनी युग में भगवान विश्वकर्माजी के कृपा प्रसाद की आवश्यकता प्राय: सभी को है।
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सुबह 8.22 बजे तक रहेगा भद्रा नक्षत्र, शाम 4.31 बजे कन्या राशि में प्रवेश कर रहे सूर्य
प्रत्येक वर्ष 17 सितंबर को सूर्यदेव का प्रवेश कन्या राशि में प्राय: होता है। इस बार भी सूर्य शुक्रवार 17 सितंबर को अपराह्न में 4.31 बजे कन्या राशि में प्रवेश कर रहे हैं। अत: श्री विश्वकर्मा जी का आवाहन, ध्यान व पूजन भक्ति एवं श्रद्घा के साथ 17 सितंबर शुक्रवार को किया जाएगा। भगवान विश्वकर्मा का ध्यान व पूजन सूर्योदय के उपरांत दिनभर किया जा सकता है। प्रात: काल में पूर्वाह्न 8.22 बजे तक भद्रा है। चूंकि भद्रा मकर राशि की है, जिसका वास पाताल में है। अत: यह भद्रा पृथ्वी लोक के लिए लाभकारी है। पूजन के क्रम में राहुकाल का विचार किया जाता है। राहुकाल का विशेष विचार यात्रा आदि में करना उचित है।
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ऐसे करें भगवान विश्वकर्मा की पूजा
पूजन के क्रम में स्नान के उपरांत थाल में पूजन सामग्री रखकर जल द्वारा शुद्धि एवं आचमनी करके धूप दीप जलाकर श्रीगणेशजी माता गौरी का ध्यान करें। ध्यान के उपरांत हाथ में अक्षत पुष्प द्रव्य व जल लेकर पूजन का संकल्प करना चाहिए। संकल्प के बाद सर्वप्रथम श्रीगणेशजी एवं माता गौरी का आवाह्न व पूजन तदुपरांत कलश में वरुण देव का ध्यान आवाह्न व पूजन करना चाहिए। इसके बाद नवग्रहों की कृपा के लिए सूर्यादि नवग्रहों का ध्यान आवाह्न व पूजन करके अंत में प्रधान देवता श्री विश्वकर्माजी का ध्यान आवाह्न एवं पूजन करना चाहिए। पूजन के उपरांत हवन, आरती पुष्पांजली एवं क्षमा प्रार्थना करना श्रेयस्कर रहेगा। भगवान विश्वकर्मा जी की कृपा समस्त ब्रह्मांड में बनी रहे।
- पं. रमा शंकर तिवारी, ज्योतिषाचार्य