देश के लिए रोल मॉडल बना झारखंड के घाटशिला का दो साल का साहिल, ये है खास वजह

यह झारखंड के लिए बड़ी उपलब्धि है। अब यह बच्चा पूरे देश के लिए रोल मॉडल बनेगा। झारखंड में पहली बार नौ किलो का बच्चा एमडीआर (मल्टी ड्रग रेसिस्टेंट) टीबी से ग्रस्त मिला और उसने जंग भी जीत ली है। घाटशिला के बच्चे की उम्र मात्र दो साल है।

By Rakesh RanjanEdited By: Publish:Sat, 17 Jul 2021 11:47 AM (IST) Updated:Sat, 17 Jul 2021 06:24 PM (IST)
देश के लिए रोल मॉडल बना झारखंड के घाटशिला का दो साल का साहिल, ये है खास वजह
एमडीएम टीबी से जंग जीतनेवाला दो साल का साहिल।

अमित तिवारी, जमशेदपुर । झारखंड में पहली बार नौ किलो का बच्चा एमडीआर (मल्टी ड्रग रेसिस्टेंट) टीबी से ग्रस्त मिला और उसने जंग भी जीत ली है। बच्चे की उम्र मात्र दो साल है। इस बच्चे के इलाज के लिए कोई गाइडलाइन भी जारी नहीं था लेकिन जिला यक्ष्मा विभाग ने अपनी सूझ-बूझ से उस बच्चे की जान बचाने में सफल हुआ है। यह झारखंड के लिए बड़ी उपलब्धि है। अब यह बच्चा पूरे देश के लिए रोल मॉडल बनेगा।

दरअसल, धालभूमगढ़ निवासी स्वर्गीय चंद्रा बेहरा का पुत्र साहिल बेहरा जब दो साल का था, तब उसमें एमडीआर टीबी की पहचान हुई थी। इतने कम उम्र में एमडीआर टीबी की पुष्टि होने से विभाग के भी कान खड़े हो गए। एमडीआर को गंभीर टीबी कहा जाता है। ऐसे में यह काफी जटिल केस माना जा रहा था, लेकिन बच्चे का नियमित इलाज चला और देखभाल की वजह से अब वह पूरी तरह से स्वस्थ हो चुका है। इसकी जानकारी राज्य स्वास्थ्य विभाग को हुई तो उन्होंने इसका प्रेजेंटेशन प्रदेश के सभी जिलों में दिखाने का निर्णय लिया, जिसे दो जुलाई को प्रस्तुत किया गया था। वहीं, अब भारत सरकार के राष्ट्रीय क्षय रोग और श्वसन रोग संस्थान ने इस बच्चे का प्रेजेंटेशन दिखाने का निर्णय लिया है। ताकि पूरे देश में एक सकारात्मक संदेश जाए और अगर कोई दूसरा मरीज भी मिले तो उसकी जान बचाई जा सके। राष्ट्रीय क्षय रोग और श्वसन रोग संस्थान ने जिला यक्ष्मा विभाग से बच्चे के इलाज से संबंधित पूरी जानकारी की रिपोर्ट तलब की है।

बच्चे का हीमोग्लोबिन था 7.2 और फेफड़े में भर आया था पानी

बच्चे में जब एमडीआर टीबी की पुष्टि हुई थी तब उसका हीमोग्लोबिन मात्र 7.2 ग्राम था। साथ ही उसके फेफड़ा में पानी भर आया था। चिकित्सकों ने एक चुनौती के रूप में इसे लिया। चूंकि बच्चे का वजन काफी कम था, इसकी वजह से भारत सरकार की ओर से जारी गाइडलाइन में उसके इलाज की संपूर्ण जानकारी भी उपलब्ध नहीं थी। चिकित्सकों ने दवा की डोज घटाकर इस बच्चे को देना शुरू किया। बच्चे की जान बचाना इसलिए भी अधिक चुनौती थी क्योंकि एमडीआर टीबी का दवा काफी कड़ा पावर का होता है। उसका शरीर पर कई साइड इफेक्ट भी देखा जाता है। लेकिन इस बच्चे को कोई परेशानी नहीं हुई।

मां को बनाया गया था सुपरवाइजर

इस बच्चे को विशेष देखभाल की जरूरत थी। 24 घंटे उसे निगरानी में रखा जाना था। इसे देखते हुए जिला यक्ष्मा विभाग ने बच्चे की मां को ही सुपरवाइजर बनाने का निर्णय लिया। इसके एवज में उसे पैसा भी दिया जाता था। बच्चे को कुल 13 तरह की दवा दी गई। बच्चा अब चार साल का है। उसका वजन बढ़कर 16 किलो हो गया है। अब वह स्कूल भी जाने लगा है।

कोट

हमारी टीम ने इसे एक चुनौती के रूप में लिया और बच्चे की जान बचा ली। बच्चे को दवा के साइड इफेक्ट से भी बचाना था। इसे देखते हुए हर तीन माह पर उसकी आंख से लेकर किडनी, लीवर सहित अन्य जांच कराई जाती थी। इस दौरान किसी तरह का साइड इफेक्ट नहीं देखा गया।

- डॉ. एके लाल, सिविल सर्जन।

बच्चे के पिता भी टीबी से ग्रस्त थे, जिनकी मौत वर्ष 2017 में हो गई। इसके बाद वर्ष 2018 में बच्चा एमडीआर से ग्रस्त मिला। यह राज्य का पहला मामला है इसलिए इसका प्रेजेंटेशन प्रदेशभर में दिखाया गया था। अब दिल्ली राष्ट्रीय क्षय रोग और श्वसन रोग संस्थान की ओर मांगी गई है। जिसे देशभर में दिखाया जाएगा।

- मो. फकरे आलम, कोर्डिनेटर, जिला टीबी एंड एचआइवी।

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