ड्रैगन को इस तरह चुनौती देगी टाटा स्टील समेत देशी कंपनिया, चीन टेंशन में

अब भारत की स्टील कंपनियां पड़ोसी देश चीन को घेरने की तैयारी कर रही है। चीन की अर्थव्यवस्था आज सातवें आसमान पर है। स्टील सेक्टर भी उछाल पर है। अब इसी मोर्चे पर टाटा स्टील जिंदल स्टील समेत अन्य कंपनियां ड्रैगन को मात देने जा रही है। जानिए कैसे...

By Jitendra SinghEdited By: Publish:Fri, 06 Aug 2021 06:00 AM (IST) Updated:Fri, 06 Aug 2021 09:18 AM (IST)
ड्रैगन को इस तरह चुनौती देगी टाटा स्टील समेत देशी कंपनिया, चीन टेंशन में
ड्रैगन को इस तरह चुनौती देगी टाटा स्टील समेत देशी कंपनिया, चीन टेंशन में

जमशेदपुर : केंद्र सरकार आत्मनिर्भर भारत के तहत सामानों के स्वदेशी निर्माण पर जोर दे रही है। भारत में निवेश को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार पहले ही प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेटिव की घोषणा कर चुकी है। इसी के तहत भारत की सभी स्वदेशी स्टील निर्माता कंपनी अब चीन के एकाधिकार को तोड़ने के लिए पहल कर रही है।

आपको बता दें कि शिपिंग क्षेत्र में सामानों की ढुलाई के लिए कंटेनर का इस्तेमाल होता है और इसके निर्माण में चीन का एकाधिकार है। ऐसे में देश के शीर्ष स्टील निर्माण कंपनियों ने स्वदेशी स्तर पर ही वैगन और कंटेनर के निर्माण की प्लानिंग कर रहे हैं। फिलहाल अब तक सभी स्वदेशी कंपनियां चीन से ही वैगन और कंटेनरों का आयात करती थी।

टाटा स्टील भी करना चाहती है कंटेनर निर्माण

टाटा स्टील लिमिटेड के प्रवक्ता का कहना है कि उसे अपने ग्राहकों से कंटेनर निर्माण के लिए जरूरी स्टील की आपूर्ति मिल जाएगी। जो अब तक आयात पर निर्भर है। लेकिन हम मेक इन इंडिया के तहत बदलाव चाहते हैं। टाटा स्टील भी वैगन और कंटेनर निर्माण के क्षेत्र में प्रवेश करने की योजना बना रहे हैं। इसके लिए कंपनी कंटेनर निर्माण वाली कंपनियों से साझेदारी करना चाहती है।

वैश्विक स्तर पर है कंटेनरों की कमी

केपीएमजी के पार्टनर प्रहलाद तंवर का कहना है कि वैश्विक महामारी कोविड 19 के बाद वैश्विक स्तर पर खाली कंटेनरों की भारी कमी हो गई है। यदि स्वदेशी कंटेनरों का निर्माण होता है तो यह वैश्विक कमी को पूरा कर सकता है क्योंकि कई बंदरगाहों में कंटेनर फंसे हुए है जिसके कारण विगत माह में कंटेनरों की कीमतों में भी पांच से सात गुणा की बढ़ोतरी हुई है।

कॉर्प ऑफ इंडिया ने दिया है 6000 कंटेनर का आर्डर

आपको बता दें कि सरकारी कंपनी, कंटेनर कॉर्प ऑफ इंडिया ने पहली बार भारतीय कंपनियों के लिए 6000 कंटेनर निर्माण के लिए टेंडर जारी किया है। इसमें ब्रेथवेट और बीएचईएल जैसे दो कंपनियों ने इसमें क्वालीफाई भी किया है। हाल ही में, भारत के पूर्व जहाजरानी मंत्री मनसुख मंडाविया ने कहा कि गुजरात के भावनगर को निजी क्षेत्र से 1,000 करोड़ रुपये के निवेश के साथ कंटेनर बनाने के केंद्र के रूप में विकसित किया जाएगा। उद्योग लॉबी समूह फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री की एक इकाई सौराष्ट्र चैंबर ऑफ कॉमर्स ऑफ इंडस्ट्री के अध्यक्ष किरीट सोनी ने कहा, पहल शुरू करने के लिए कुछ मुट्ठी भर खिलाड़ी और व्यवसायी एक साथ आए हैं।

ऐसी ही एक विनिर्माण इकाई 160-200 करोड़ रुपये की लागत से स्थापित की जाएगी। उन्होंने कहा कि पहले कुछ कंटेनर जल्द ही इंडियन रजिस्टर ऑफ स्टील द्वारा परीक्षण और प्रमाणन के लिए तैयार किए जाएंगे। उद्योग जगत के जानकारों का कहना है कि इस सेगमेंट में आत्मनिर्भरता या आत्मनिर्भरता का रास्ता अभी बहुत दूर है।

कंटेनर व्यापार पर चीनी कंपनियों का 90 प्रतिशत नियंत्रण

आपको बता दें कि वर्तमान समय में चीनी कंपनियां जैसे सीआईएमसी, सिगमस, सीएक्सआईसी ने वैश्विक कंटेनर निर्माण पर 90 प्रतिशत का नियंत्रण रखती है। सीआईएमसी के पास दो मिलियन कंटनेर निर्माण की वार्षिक क्षमता है। इनमें से अधिकांश के पास वैश्विक शिपिंग लाइनों के साथ लंबे समय से अनुबंध हैं। इसके अलावा मर्स्क लाइन चीन में विशेष रेफ्रिजेरेटेड कंटेनरों के लिए एक निर्माण इकाई है और बाकी ज्यादातर चीनी निर्माताओं से खरीदती है। भारतीय कंपनी वीएस एंड बी ने कुछ ही दिन पहले चीन से 30,000 कंटेनर खरीदे हैं।

निर्माण शुरू करने से पहले घरेलू डिमांड की है जरूरत

वीएस एंड बी के अध्यक्ष बिजॉय पॉलोज का कहना है कि किसी भी उद्योग को शुरू करने से पहले निर्यात से ज्यादा कंपनी को अपने घरेलू डिमांड पर ज्यादा निर्भर होना होता है। इस मामले में चीन का निर्यात उसके आयात का कम से कम पांच गुणा है।

हालांकि कंटनेर निर्माण की दिशा में आत्मनिर्भर बनने की पहल योग्य और सामायिक है लेकिन लेकिन तकनीकी विशिष्टताओं को देखते हुए घरेलू बाजार में समुद्र-योग्य कंटेनरों के निर्माण को बढ़ाने की क्षमता, कंटेनरों को सक्रिय रूप से संचालित करने की क्षमता सहित मूलभूत अंतराल बने हुए हैं। एक वैश्विक शिपिंग नेटवर्क जहां भारत का योगदान दो प्रतिशत से कम है।

 

चीन का एकाधिकार खत्म करना आसान नहीं

बाजार विशेषज्ञों की माने तो वैगन और कंटेनर निर्माण में वैश्विक स्तर पर चीन का एकाधिकार है। चीन के पास कंटेनर सेगमेंट के लिए बेहतर टेक्नोलॉजी है। ऐसे में जिंदल स्टील एंड पावर (जेएसपीएल) और आर्सेलर मित्तल ने कंटेनर बनाने में इस्तेमाल होने वाले स्पेशलाइज्ड स्टील या खुद कंटेनर बनाने के लिए क्षमता निर्माण में निवेश कर रहे हैं। दोनो कंपनियों का कहना है कि हम कंटेनर निर्माण को लेकर गंभीरता से देख रहे हैं। हमारी हजीरा यूनिट के बाहर यह सुविधा है जिसका इस्तेमाल इसके लिए भी किया जा सकता है।

कंपनी का कहना है कि भारत के पास कंटेनर बनाने के लिए कच्चा माल और टेक्नोलॉजी है लेकिन सरकार को भी इसे प्रोत्साहित करने की जरूरत है ताकि अधिक से अधिक कंपनियां कटेनर निर्माण के क्षेत्र में निवेश कर सके। जेएसपीएल की सालाना करीब 50,000 कंटेनर बनाने की योजना है। कंपनी के एमडी वीआर शर्मा का कहना है कि हमारे पास निर्माण के लिए सारी सुविधाएं उपलब्ध है और हम प्रतिमाह 1000 से 2000 कंटेनरों का निर्माण कर सकते हैं। प्रारंभिक चरण में कंपनी 200 करोड़ रुपये निवेश कर रही है।

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