ये रही हौसलों की उडानः जमशेदपुर की ज्योति की कहानी हर उन बेटियों के लिए जो जीवन में कुछ कर दिखाना चाहती हैं
अफसर बिटियाः कहते हैं जहां चाह वहां राह। जमशेदपुर की ज्योति की कहानी उन हर बेटियों के लिए जो अपने सपने को साकार होते देखना चाहती हैं। यह हौसलों की पंख की उडान है। बस ठान लो सफलता तो आनी ही है।
जमशेदपुर, जासं। प्रसिद्ध कवि दुष्यंत कुमार की कविता, 'कौन कहता है आसमां में सुराग नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालों यारों'। जमशेदपुर की बेटी ज्योति पांडेय पर सटीक बैठती है। जिस उम्र में महिलाएं बच्चों को पालती हैं, घर संवारती हैं, उस उम्र ने ज्योति ने एक सपना देखा।
सपना दारोगा बनने का। उनके सपने को पंख दिए पति अमित मिश्रा ने। पति ने हौसला दिया तो ज्योति के अरमान आसमान में कुंलाचे भरने लगी। दिन - रात मेहनत की और आज परिणाम सबके सामने है। ज्योति ने पहले ही प्रयास में दारोगा की परीक्षा पास कर ली। हाल ही में बिहार में 2,062 दारोगा पद के लिए करीब सा लाख अभ्यर्थी शामिल हुए थे और इसमें ज्योति को सामान्य वर्ग में सफलता हासिल की है।
पति ने सपनों को दिया पंख, मिली सफलता
जुगसलाई के रहने वाले अमित मिश्रा ने छात्र जीवन में कई बार दारोगा की परीक्षा दी, लेकिन सफल नहीं हो पाए। उन्हें इसका काफी मलाल था। लाख कोशिशों के बावजूद भी सरकारी नौकरी नहीं मिली तो लीगल एडवाइजर बन गए। इसी बीच ज्योति पांडेय से उनकी शादी हो गई। शादी के बाद अमित ने अपनी जिंदगी के बारे में पत्नी को बताया कि लाख कोशिशों के बावजूद वह पुलिस अफसर नहीं बन पाए। साथ जीने-मरने का वादा कर पति के घर पहुंची ज्योति ने वादा किया कि आपका सपना मैं पूरा करके दिखाऊंगी।
पति अमित मिश्रा के साथ ज्योति पांडेय।
कोचिंग की जरूरत ही नहीं पड़ी, पति ने पढ़ाया
इस सफलता पर फूले नहीं समा रही ज्योति ने बताया कि एमबीए की पढ़ाई के दौरान ही उनकी अमित मिश्रा से शादी हो गई। पति के अधूरे ख्वाहिश के बारे में पता चला तब उसने खुद ही तैयारी करनी शुरू कर दी। ज्योति बताती हैं कि वह एमबीए की छात्रा थी और अचानक कोर्स में बदलाव होने पर काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा, लेकिन हिम्मत नहीं हारी। पति ने पूरा सहयोग किया। पति खुद ही गाइड करते थे। ऐसे में कहीं बाहर कोचिंग लेने की जरूरत ही नहीं पड़ी।
ससुराल वालों का सहयोग के बिना संभव नहीं था
बातों-बातों में ज्योति कहती है कि आमतौर पर मध्यम वर्ग में शादी के बाद लड़कियां आगे पढ़ नहीं पाती। लेकिन इस मामले में वह भाग्यशाली हैं। उन्हेंससुराल में पूरी आजादी मिली। ज्योति और अमित की आठ साल की एक पुत्री भी है। अमित ने बेटी को संभाला ताकि ज्योति की पढ़ाई में कोई व्यवधान न पड़े। ससुराल वालों ने पढ़ने में पूरा सपोर्ट किया। ज्योति का कहना है कि वह समाज के लिए कुछ अलग कर दिखाना चाहती हैं। महिलाओं को समाज में खुद को स्थापित करने के लिए जागरूक होना जरूरी है। पति अमित मिश्रा कहते हैं, पत्नी ने मेरे सपनों को धरातल पर उतार दिया। इसके लिए उन्होंने दिन रात मेहनत की। शादी के पहले हो या शादी के बाद, बेटियों को शिक्षा से कभी वंचित नहीं करना चाहिए।