Deepawali 2021: इस बार भी चीन से पानी के चार जहाज में आए रंगबिरंगे झालर, देसी झालरों ने भी दिखाया दम

दो वर्ष पहले तक अपने देश में इसका उत्पादन नहीं के बराबर हो रहा था वह अब तेजी से होने लगा है। गत वर्ष की दीपावली कोरोना की वजह से फीकी थी तब भी कुल बाजार में 20 प्रतिशत हिस्सेदारी भारतीय झालर की थी।

By Rakesh RanjanEdited By: Publish:Wed, 27 Oct 2021 05:54 PM (IST) Updated:Wed, 27 Oct 2021 05:54 PM (IST)
Deepawali 2021: इस बार भी चीन से पानी के चार जहाज में आए रंगबिरंगे झालर, देसी झालरों ने भी दिखाया दम
इस बार भारत में बने 40 प्रतिशत झालर बिक रहे

जमशेदपुर, जासं। कोरोना का भारत को धीरे-धीरे ही सही उन उत्पादों में भी आत्मनिर्भर बना रहा है, जिसमें चीनी उत्पादों का एकाधिकार था। यही हाल दीपावली पर सजावट के लिए लगने वाले रंगबिरंगे झालर का है। इस बार भी चीन से पानी के चार जहाज में भरकर रंगबिरंगे झालर आए हैं।

बिजली उपकरणों के कारोबारी अमित दास ने बताया कि दीपावली पर पिछले साल अगस्त में जो चाइनीज झालर आना था, लेकिन नहीं आ सका। कोरोना की वजह से बंदरगाह पर ही खड़ा रहा, वही माल इस बार जनवरी में आया। इस वर्ष अलग से कोई शिप नहीं आया। बाजार में जो भी चाइनीज लाइट मिल रहा है। इसे लेकर अनिश्चितता बनी हुई थी, जिससे भारत में इन लाइटों का उत्पादन बड़े पैमाने पर हुआ। एक जहाज में करीब 100 करोड़ रुपये के लाइट थे।

इस बार भारत में बने 40 प्रतिशत झालर बिक रहे

दो वर्ष पहले तक अपने देश में इसका उत्पादन नहीं के बराबर हो रहा था, वह अब तेजी से होने लगा है। गत वर्ष की दीपावली कोरोना की वजह से फीकी थी, तब भी कुल बाजार में 20 प्रतिशत हिस्सेदारी भारतीय झालर की थी। इस बार यह 40 प्रतिशत हो गया है।

बिजली उपकरण के कारोबारी तुषार डे बताते हैं कि इंडियन झालर चाइनीज की तुलना में थोड़े महंगे हैं, लेकिन इसमें छह माह की गारंटी भी है। चाइनीज झालर अब भी बिना गारंटी के बिक रहे हैं, पहले भी बिकते थे। इस बार बड़े दाने वाले ज्यादातर लाइट भारतीय हैं, जो दिल्ली, कोलकाता, अहमदाबाद, चंडीगढ़ आदि में बन रहे हैं। अभी तक छोटे राइस लाइट इंडिया में नहीं बन रहे हैं, लेकिन बड़े आकार में इनकी क्वालिटी और खूबसूरती चाइनीज से कम नहीं है।

कोरिया, जापान व चीन से आयात किए जा रहे चिप्स

मानगो के एक दुकानदार सुभाष बताते हैं कि भारत में जो झालर इस बार बिक रहे हैं, उसमें चाइनीज 60 और इंडियन 40 प्रतिशत है। हालांकि इन एलईडी बल्बों में लगने वाला चिप्स चीन, जापान व कोरिया से आयात किया जा रहा है, लेकिन एलईडी का प्लास्टिक मैटेरियल, तार, स्विच यहीं का है। उम्मीद है कि आने वाले एक-दो वर्ष में हम अब चीन पर निर्भर नहीं रहेंगे।

ये कह रहे कैट के सचिव

कनफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के राष्ट्रीय सचिव सुरेश सोंथालिया ने कहा कि चाइनीज लाइट का वर्चस्व पिछले करीब 15 वर्ष से रहा। इससे पहले कोलकाता व दिल्ली में दीवाली के झालर बनते ही थे। इस बीच आटोमोबाइल समेत अन्य इलेक्ट्रोनिक्स उपकरणों के लिए यहां एलईडी लाइट बन रहे थे, लेकिन दीपावली के लिए नहीं बनते थे। अब चूंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब से आह्वान किया है, उसका असर दिख रहा है। भारत में ऐसा कोई उत्पाद नहीं है, जो नहीं बन सकता। हां, कीमत में हम चीन से पिछड़ रहे थे। हो सकता है कि आगे भी हम चीन से कीमत में बराबरी नहीं कर सकते, लेकिन अब यहां उत्पादन हो रहा है, यही बड़ी बात है।

झालर की लंबाई : चाइनीज - भारतीय

राइस बल्ब : 65 -00

एलईडी 10 मीटर : 65-80

एलईडी 25 मीटर : 220-280

एलईडी 30 मीटर : 250-300

एलईडी 50 मीटर : 400-420

दीया 8 मीटर : 150-180

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