अनोखा है झारखंड का यह शहर, दुकानें बंद हो जातीं हर दोपहर
दुकानदारों में एक और भाषा प्रचलन में है जो दुकान बंद करने को दुकान बढ़ाना कहते हैं। बंद शब्द को अशुभ माना जाता है। छोटा शहर होने की वजह से बोलचाल की भाषा बहुत जल्द प्रचलित हो जाती है। आमतौर पर दुकान बढ़ाने की बात गुजराती करते हैं।
वीरेंद्र ओझा, जमशेदपुर। कोरोना को लेकर लागू अनलॉक-2 से ही झारखंड सरकार ने दुकानों को खोलने का समय दोपहर दो बजे से बढ़ाकर शाम चार बजे कर दिया है, लेकिन यहां की अधिकतर दुकानें अब भी दोपहर दो बजे ही दुकानें बंद हो जा रही हैं। इसके पीछे किसी का आदेश या बंदिश नहीं है, बल्कि वर्षों से चली आ रही परंपरा है।
दरअसल, झारखंड के जमशेदपुर शहर की दिनचर्या टाटा स्टील व टाटा मोटर्स के कर्मचारियों की दिनचर्या के अनुसार चलती है। यहां के कर्मचारी ए, बी व सी शिफ्ट की डूयूटी करते हैं, जो सुबह छह, दोपहर दो और रात 10 बजे से शुरू होती है। कुछ कर्मचारी सुबह सात से शाम चार की जेनरल शिफ्ट डूयूटी करते हैं। ऐसे में यहां सुबह में लोग थोड़ी बहुत खरीदारी करते हैं, जबकि शाम को बाजार में सबसे ज्यादा चहल-पहल रहती है।
ये कहते सोंथालिया
शहर के पुराने व्यापारियों में सोंथालिया परिवार के सुरेश सोंथालिया (राष्ट्रीय सचिव, कैट) बताते हैं कि यह शहर देश के दूसरे शहरों से काफी अलग है। यहां बिष्टुपुर व साकची ही नहीं, कदमा-सोनारी, गोलमुरी व जुगसलाई के भी कई दुकानें दोपहर एक बजे बंद करके घर भोजन करने जाते हैं। इसके बाद शाम चार बजे दुकान खोलते हैं। यह परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है। अब यहां मॉल खुलने से थोड़ा बदलाव हुआ है, लेकिन पुराने व्यापारी अब भी इसी ढर्रे पर चल रहे हैं। यहां दोपहर दो बजे के बाद दुकान खुला रखने का कोई फायदा नहीं है।
चार बजे तक दुकानें खोलने की अनुमति का फायदा नहीं
सिंहभूम चैंबर के महासचिव भरत वसानी की भी बिष्टुपुर में दुकान है। उनका कहना है कि जमशेदपुर में सरकार को शाम छह बजे तक दुकान खोलने की अनुमति देनी चाहिए, वरना दो बजे तक ही ठीक था। चार बजे का समय यहां के लिए बेमानी है।
मानगो के किराना दुकानदार सत्येंद्र प्रसाद बताते हैं कि वह भी दो बजे दुकान बंद करके घर चले जाते हैंं। जब ग्राहक ही नहीं आएगा तो यहां बैठकर समय क्यों बर्बाद करेंगे। दो बजे भी ड्यूटी से घर लौटने वाले कर्मचारी थोडा-बहुत खरीदारी करते हैं, वरना वह भी नहीं।
बंद नहीं बढ़ा देते दुकान
शहर के दुकानदारों में एक और भाषा प्रचलन में है, जो दुकान बंद करने को दुकान बढ़ाना कहते हैं। बंद शब्द को अशुभ माना जाता है। छोटा शहर होने की वजह से बोलचाल की भाषा बहुत जल्द प्रचलित हो जाती है। आमतौर पर दुकान बढ़ाने की बात गुजराती करते हैं। धीरे-धीरे इसे मारवाड़ी समुदाय ने भी अपना लिया। सकारात्मक भाव होने से इसे अन्य लोग भी इसे इस्तेमाल करते हैं।