इनसे सीखेंः कोरोना के खिलाफ जंग में झारखंड के इस गांव की महिलाओं ने संभाला मोर्चा
हमें तो पोटका प्रखंड के इस गांव के सीख लेनी चाहिए जहां की महिलाएं कोरोना के खिलाफ जंग में मोर्चा संभाली हुई है। महिलाएं गांव में कोरोना के नियमों को कड़ाई से लागू करवाती है।यही कारण है कि इस गांव में अभी तक एक भी कोरोना संक्रमित मरीज नहीं है।
जमशेदपुर, जितेंद्र सिंह। हर तरफ उदासी का गुबार। सिससता शहर और उखड़ती सांसे। अस्पतालों में बेड की कमी और श्मशानों में शव रखने की जगह नहीं। कोरोना पर काबू पाने के लिए झारखंड जैसी पाबंदियां लागू हैं। आज अगर हम शहरी कोविड-19 के दिशा-निर्देशों का सही से पालन करते तो ऐसी स्थिति नहीं आती। ना तो कोई अपनों के ना होने पर विलाप करता और ना ही जीवनदायिनी आक्सीजन के लिए भटकना पड़ता।
हमें तो पोटका प्रखंड के इस गांव के सीख लेनी चाहिए, जहां की महिलाएं कोरोना के खिलाफ जंग में मोर्चा संभाली हुई है। पोटका प्रखंड के 13 किलोमीटर दक्षिण में बसा गंगाडीह पंचायत का मघुसाई टोला बाना घुट्टू। महिला उत्पादक समूह की महिलाएं गांव में कोरोना के नियमों को कड़ाई से लागू करवाती है। गांव से कोई बाहर निकलता है तो मास्क जरूर लगाता है। काम से वापस आने के दौरान गांव के बाहर चापाकल में मिट्टी या फिर साबुन से हाथ धोना अनिवार्य है। अगर कोई मजदूर परदेस से अपने गांव आता है तो बानाघुट्टू प्राथमिक विद्यालय में ठहराया जाता है। गांव में बाहरी लोगों का प्रवेश वर्जित है। अगर कोई बाहरी आता भी है तो उनसे पूछताछ की जाती है। यही कारण है कि इस गांव में अभी तक एक भी कोरोना संक्रमित मरीज नहीं है।
परदेस से लौटनेवाले स्कूल में ठहरते
पंचायत की मुखिया पानो बास्के कहती हैं, बनाघुट्टू में महिलाएं अपने गांव को कोरोना मुक्त करने का संकल्प ली हुई है। कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए बनाए गए नियमों का पूरा गांव पालन करता हैं। अगर किसी को बातचीत करनी है तो शारीरिक दूरी बनाए रखता है। मेरी यही प्राथमिकता है कि हमारा गांव कोरोना संक्रमण मुक्त हो। अगर कोई परदेस में नौकरी कर गांव लौटता है तो उसे स्कूल में ठहराया जाता है। कोविड रिपोर्ट निगेटिव आने के बाद ही उसे गांव में प्रवेश दिया जाता है।
जीवन रहेगा तो जिंदगी चलेगी
महिला उत्पादक समूह की महिला दिकुमाई टुडू कहती है, हमलोग मास्क पहनकर गांव से बाहर जाते हैं। जब वापस लौटते हैं गांव के बाहर चापाकल में साबुन या मिट्टी से हाथ धोते हैं और पानी से चेहरा साफ करते हैं। दिकुमाई लॉकडाउन का समर्थन करती दिखती है। वह कहती है, सरकार ने सही काम किया है। पहले तो जीवन बचाना है। जीवन रहेगा तो जिंदगी चलेगी। वह कहती हैं, बाबू हम सब मजदूर किसान हैं। सब्जी उपजाते हैं और बेचते हैं। लेकिन लॉकडाउन में मुश्किल हो रही है। यहां तक कि खेती में जो पैसा लगाया वह भी नहीं निकल पा रहा है।
महिलाएं हर दो दिन पर करतीं बैठक
गांव की सुरक्षा में महिला उत्पादक समूह की दीकुमाई के अलावा बरियार टुडू, तुलसी मुर्मू, फुलमनी मुर्मू सहित दर्जन भर महिलाएं लगी हुई हैं। गांव के ग्राम प्रधान प्रधान टुडू कहते हैं, यहां तो कोरोना नियमों का पालन कराने का जिम्मा महिलाओं ने ही उठा लिया है। हमें इन महिलाओं पर गर्व है। अगर बाहर से कोई आता है तो सबसे पहले मुझे सूचित किया जाता है।
कोरोना संक्रमण की स्थिति को लेकर महिलाएं हर एक-दो दिन में बैठक करती है और सरकार द्वारा दिए गए दिशा निर्देशों को सबको बताती है ताकि इसका पालन हो सके। अगर हम शहरवासी इस कम पढ़े-लिखे ग्रामीणों से सीख ले लें, तो अभी भी कोरोना के खिलाफ जंग में जीत हासिल कर सकते हैं।