Durga Puja: प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की याद दिलाता है चक्रधरपुर का मशाल जुलूस
Durga Puja 1857 ई. में अंग्रेज सरकार के विरुद्ध विद्रोह का बिगुल पोड़ाहाट क्षेत्र में भी बज उठा। पोड़ाहाट नरेश महाराजा अर्जुन सिंह ने इस क्षेत्र में स्वतंत्रता आन्दोलन का नेतृत्व किया। मां दुर्गा के रूपों में नगर की जनता इतिहास के पन्नों को जीवंत होते देखती है।
दिनेश शर्मा, चक्रधरपुर। मां दुर्गा के रूपों में नगर की जनता इतिहास के पन्नों को जीवंत होते देखती है। समिति का विसर्जन जुलूस अपने आप में अनोखा तो है ही, इसमें लोग प्रथम स्वतंत्रता आन्दोलन की झलक भी देखते हैं। औपचारिक रूप से सन् 1912 में नगर की जनता को पूजन-अर्चन का भार सौंपे जाने के काफी पहले राजघराने की स्थापना, लगभग आठ सौ वर्ष पूर्व से ही यहां शक्ति के रूप मां दुर्गा की पूजा विधिपूर्वक की जाती रही है।
वर्तमान में पुराना बस्ती स्थित गुंडिचा मंदिर में आयोजित की जाने वाली दुर्गा पूजा आज भी श्रद्धालुओं एवं देशप्रेमियों की निगाहों में विशेष स्थान रखती है। समिति ने तमाम सरकारी निर्देशों का अनुपालन करते हुए दुर्गोत्सव का आयोजन करने व परम्परा के अनुसार विसर्जन जुलूस निकालने की घोषणा कर दी है। सन् 1857 ई. में अंग्रेज सरकार के विरुद्ध विद्रोह का बिगुल सम्पूर्ण देशभर की भांति पोड़ाहाट क्षेत्र में भी बज उठा। पोड़ाहाट नरेश महाराजा अर्जुन सिंह ने इस क्षेत्र में स्वतंत्रता आन्दोलन का नेतृत्व किया। अंग्रेजों के साथ संघर्ष के उपरांत किंवदंती बन चुके अप्रतिम स्वतंत्रता सेनानी जग्गू दीवान एवं अन्य 42 आजादी के दीवानों को अंग्रेजों ने पकड़कर फांसी दे दी गई थी। महाराज अर्जुन सिंह कई महीनों से भूमिगत रहते हुए लगातार छापामार युद्ध लड़ रहे थे। एक ओर तोप-बंदूक, दूसरी ओर तीन-धनुष व तलवार, फिर भी आजादी के दीवानों ने अंग्रेजों को लोहे के चने चबवा दिए।
अंग्रेजों ने कर रखी थी नाकेबंदी
ऐसे ही मौके पर मां दुर्गा की पूजा का समय आ गया। परम्परा निर्वाह हेतु महाराजा अर्जुन सिंह को पूजास्थल (राजमहल) पर उपस्थित होना था। इस तथ्य की जानकारी मिलने पर अंग्रेजों ने राजमहल की नाकेबन्दी कर रखी थी। दुर्गोत्सव के अवसर पर जनता भी परम्परा निर्वाह हेतु कटिबद्ध आजादी के दीवानों के नेतृत्वकर्ता महाराज अर्जुन सिंह की अगली कार्रवाई देखने-जानने के लिए बेचैन थी। विजयादशमी के दिन शाम के धुंधलके में अचानक दसों दिशाओं से असंख्य लोग पारम्परिक अस्त्र-शस्त्र से लैश होकर राजमहल के इर्द-गिर्द पहुंचे। महाराजा अर्जुन सिंह भी तमाम फौजी नाकेबन्दी को धता बताते हुए अचानक पूजा मंडप में अवतरित हुए। पूजनोपरांत विसर्जन जुलूस हेतु हजारों मशालें एक साथ प्रज्जवलित हुई। 'जय मां दुर्गे' के गगनभेदी नारों से पोड़ाहाट का वायुमंडल गुंजायमान हो उठा और आजादी के दीवाने शक्ति उपासक के रूप में निकल पड़े। असंख्य हिन्दु श्रद्धालुओं की भीड़ देखकर अंग्रेज सेना की टुकड़ी स्तब्ध रह गई।
महाराजा हो गए थे भूमिगत
जुलूस के साथ चलते-चलते महाराजा अर्जुन सिंह पुन: भूमिगत हो गए और आजादी की लड़ाई जारी रखी। मशाल जुलूस महाशक्तिमयी मां दुर्गा का प्रतीक है। यह परम्परा आज भी अनवरत जारी है। बाद में (फरवरी 1859 ई.) महाराजा अर्जुन सिंह को सरायकेला राजा द्वारा जयचंदी भूमिका अदा करते हुए दी गई गुप्त सूचना के आधार पर एक पहाड़ी की घेरेबन्दी कर अंग्रेजों द्वारा गिरफ्तार कर लिया। वयस्क होने पर महाराजा अर्जुन सिंह के पुत्र नरपत सिंह को अंग्रेजों द्वारा पोड़ाहाट का शासन सौंप दिया गया। राजा नरपत सिंह ने सन् 1912 ई. में आदि शक्ति मां दुर्गा के पूजनोत्सव का दायित्व नगर की जनता को सौंपा। बिना भव्य पांडाल एवं तामझाम के आदि पूजा समिति जिले भर के श्रद्धालुओं की आस्था का केन्द्र रहा है। पिछले 164 वर्षो से मां दुर्गे की प्रतिमा श्रद्धालुजन मशाल जुलूस के साथ अपने कंधों पर लेकर निकलते हैं। मशाल जुलूस का यह दृश्य देखने दूर-दराज के लोग प्रतिवर्ष विजयादशमी के दिन पहुंचते हैं।