Green Steel: डीआरआइ तकनीक से ग्रीन स्टील बनाएगी टाटा स्टील, कार्बन उत्सर्जन होगा कम

स्टील का निर्माण दो तरीकों से होता है। पहला कोयले से और दूसरा प्राकृतिक गैस और हाइड्रोजन से। स्टील निर्माण की प्रक्रिया में पहले कच्चे लोहे को 800 से 1200 डिग्री सेल्सियस में गर्म किया जाता है। डीआरआइ का इस्तेमाल होने से ब्लास्ट फर्नेस की आवश्यकता नहीं होती।

By Rakesh RanjanEdited By: Publish:Sun, 14 Nov 2021 05:00 PM (IST) Updated:Sun, 14 Nov 2021 05:00 PM (IST)
Green Steel: डीआरआइ तकनीक से ग्रीन स्टील बनाएगी टाटा स्टील, कार्बन उत्सर्जन होगा कम
टाटा स्टील भविष्य में डीआरआइ तकनीक द्वारा स्टील का निर्माण करेगी।

निर्मल प्रसाद, जमशेदपुर : टाटा स्टील भविष्य में डायरेक्ट रिड्यूस्ड आयरन (डीआरआइ) तकनीक द्वारा स्टील का निर्माण करेगी। फिलहाल टाटा स्टील के नीदरलैंड प्लांट में इस दिशा में पहल शुरू हो चुकी है। टाटा स्टील प्रबंधन इस नई तकनीक का मूल्यांकन कर रहा है। भारत में स्टील का निर्माण वर्तमान में पारंपरिक रूप से कोयले के द्वारा होता है। इसके कारण काफी मात्रा में कार्बन का उत्सर्जन होता है। ऐसे में टाटा स्टील कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए ग्रीन स्टील के निर्माण की ओर कदम बढ़ा रही है।

क्या होता है डीआरआइ तकनीक

स्टील का निर्माण दो तरीकों से होता है। पहला कोयले से और दूसरा प्राकृतिक गैस और हाइड्रोजन से। स्टील निर्माण की प्रक्रिया में पहले कच्चे लोहे को 800 से 1200 डिग्री सेल्सियस में गर्म किया जाता है। डायरेक्टर रिड्यूस्ड आयरन (डीआरआइ) का इस्तेमाल होने से पारंपरिक ब्लास्ट फर्नेस की आवश्यकता नहीं होती है। डीआरआइ तकनीक से उत्पादित गर्मी का उपयोग कर इलेक्ट्रिक आर्क फर्नेस का उपयोग कर स्टील बनाया जाता है। इससे कोयले की अपेक्षा कार्बन उत्सर्जन भी काफी कम होता है। इस विधि से कोयले की निर्भरता भी कम होगी। कार्बन उत्सर्जन पर यूरोप में देना पड़ता है टैक्सवर्तमान में टाटा स्टील को अपने यूरोप स्थित प्लांट में कार्बन उत्सर्जन पर प्रति टन 10 से 15 पाउंड का टैक्स देना पड़ता है जो बढ़कर 65 पाउंड हो गया है। कंपनी प्रबंधन का अनुमान है कि एक दशक बाद यह बढ़कर 100 पाउंड तक होने की उम्मीद है। जो सीधे कंपनी के उत्पादन लागत से जुड़ता है। ऐसे में टाटा स्टील अपने यूरोप प्लांट में ग्रीन स्टील निर्माण की ओर कदम बढ़ा रही है। टाटा स्टील का नीदरलैंड प्लांट दुनिया का सबसे अधिक कार्बन कुशल संयंत्र में से एक है। साथ ही कंपनी कोल के बजाए हाइड्रोजन या प्राकृतिक गैस को विकल्प के रूप में इस्तेमाल करने की योजना बना रही है। इसके लिए इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण किया जा रहा है। इसके लिए नीदरलैंड सरकार भी कंपनी को उचित दर पर हाइड्रोजन की आपूर्ति करेगी।

बढ़ेगी उत्पादन लागत

टीवी नरेंद्रन का मानना है कि यूरोप में जब उत्पादन लागत बढ़ेगी तो इसका असर सरकार और कस्टमर, दोनों पर पड़ेगा। लेकिन टेक्नोलॉजी भी विकसित होगी और समय के साथ 100 से 150 डॉलर की लागत में भी कमी आएगी। वर्ष 2030 के लिए निर्धारित लक्ष्यों के साथ हम इस दिशा में पहल कर रहे हैं।

भारत में होनी चाहिए इस तरह की पहल : नरेद्रन

पिछले दिनों पत्रकार सम्मेलन में टाटा स्टील के सीईओ सह एमडी टीवी नरेंद्रन ने भी डीआरआइ तकनीक से स्टील का निर्माण करने की बात कही थी। उनका कहना है कि ग्रीन स्टील के लिए यूरोप में सरकार भी पहल कर रही है। यूरोप से सीख लेते हुए इस तरह की पहल भारत में होनी चाहिए। मुझे उम्मीद है कि 2030 के बाद वर्ष 2070 के लिए तय लक्ष्यों में इस पर नई नीतियों को सरकार विकसित करेगी। हमें अपने उद्योग को कार्बन मुक्त बनाना होगा। इसका एकमात्र उपाय स्क्रैप का अधिक से अधिक इस्तेमाल करना है।

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