जानिए, 50 रुपये प्रतिमाह वेतन पाने वाला यह शख्स कैसे बन गया टाटा स्टील का चेयरमैन

रुसी मोदी भारतीय उद्योग जगत का का चमकता सितारा असमय ही अस्त हो गया था। टाटा स्टील के पूर्व प्रबंध निदेशक रुसी मोदी आज ही के दिन सात साल पूर्व कोलकाता में अंतिम सांसें ली थी। कभी रुसी मोदी व टाटा स्टील एक दूसरे के पर्याय माने जाते थे।

By Jitendra SinghEdited By: Publish:Sat, 15 May 2021 06:03 AM (IST) Updated:Sun, 16 May 2021 09:59 AM (IST)
जानिए, 50 रुपये प्रतिमाह वेतन पाने वाला यह शख्स कैसे बन गया टाटा स्टील का चेयरमैन
जानिए, 50 रुपये प्रतिमाह वेतन पाने वाला यह शख्स कैसे बन गया टाटा स्टील का चेयरमैन

जमशेदपुर, जितेंद्र सिंह। Rusi Modi रुसी मोदी, भारतीय उद्योग जगत का का चमकता सितारा असमय ही अस्त हो गया था। टाटा स्टील के पूर्व प्रबंध निदेशक रुसी मोदी आज ही के दिन सात साल पूर्व कोलकाता में अंतिम सांसें ली थी। कभी रुसी मोदी व टाटा स्टील (पूर्ववर्ती टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी, टिस्को) एक दूसरे के पर्याय माने जाते थे। किसी ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि कभी टाटा स्टील में 50 रुपये वेतन पर फोरमैन की नौकरी करने वाला रुस्तमजी होमुसजी मोदी कंपनी के शीर्ष पद पर विराजमान होगा। यह टाटा की संस्कृति है। एक बार में 16 अंडों का आमलेट खाने वाले रुसी मोदी अपनी शर्तों पर जीने के लिए जाने जाते थे। वह भारत के दुर्लभ कॉरपोरेट नायक थे। 

पिता सर मोदी उत्तर प्रदेश के गर्वनर थे

रुसी मोदी मुंह में चांदी का चम्मच लेकर पैदा हुए थे। उनके पिता सर होमी मोदी बॉम्बे प्रेसिडेंसी व उत्तर प्रदरेश के गर्वनर रहे। वह भारतीय विधानसभा के भी सदस्य रहे। युवा रुसी मोदी ने लंदन के हैरो स्कूव आक्सफोर्ड के क्राइस्ट चर्च कॉलेज से अपनी पढ़ाई पूरी की।

मेरे बेटे को सबसे निचले स्तर की नौकरी दो

कहते हैं, पैरवी पुत्रों को बड़ी आासानी से नौकरी मिल जाती है। यहां तक कि किसी कंपनी को बोर्ड आफ डायरेक्टर में रख लिया जाता है। लेकिन रुसी मोदी के पिता अलग मिट्टी के बने थे। सर होमी मोदी के दूसरे बेटे थे रुसी मोदी। पिता ने रुसी मोदी को नौकरी के लिए जेआरडी टाटा के पास भेज दिया। जेआरडी ने सर होमी से पूछा, भाई, तेरे बेटे को कौन सी नौकरी दूं। होमी ने पूछा, तुम्हारें यहां सबसे नीचे स्तर की कौन सी नौकरी है। जेआरडी बोले-फोरमैन की। सर होमी ने तुरंत ही उसे फोरमैन की नौकरी देने को कहा। रुसी मोदी बड़े फख्र से यह बात कहा करते थे, मैं फोरमैन से चेयरमैन बना हूं।

जमशेदपुर में जेआरडी टाटा को बैज पहनाते रुसी मोदी (फाइल फोटो)

50 पैसा दैनिक वेतन मिलता था

1939 में रुसी मोदी ने प्रशिक्षु के तौर पर टिस्को में काम शुरू किया। तब उन्हें 50 पैसा प्रतिदिन मिला करता था। बाद में स्थायी होने के बाद फोरमैन के रूप में काम करना शुरू किया। तब उन्हें वेतन 50 रुपये मिला करता था। अपनी मेहनत व लगन की बदौलत रुसी मोदी 1993 में टिस्को (टाटा स्टील) के चेयरमैन चुने गए।

1918 में मुंबई में हुआ था जन्म

रुसी मोदी का जन्म 1918 में मुंबई में हुआ था। उनके भाई पीलू मोदी लोकसभा सदस्य रह चुके थे और छोटे भाई काली मोदी डायनर्स क्लब की स्थापना की थी। रुसी मोदी का विवाह सिलू मुगासेठ से हुई थी। उनकी कोई संतान नहीं थी।

फुर्सत के क्षण में बच्चों के साथ रुसी मोदी (फाइल फोटो)

कभी रुसी को जेआरडी का उत्तराधिकारी माना जाता था

उनकी महत्वाकांक्षा व सफल होने की उग्र इच्छा शक्ति ने कंपनी के शीर्ष पद पर पहुंचा दिया। और यही कारण है कि रुसी मोदी को कभी जेआरडी टाटा का उत्तराधिकारी कहा जाने लगा था। जेआरडी टाटा मोदी पर कितना विश्वास करते थे, इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने 1984 में वह टिस्को के चेयरमैन पद से इस्तीफा दे दिया ताकि रुसी मोदी उस पद पर बैठ सके।

जेआरडी टाटा के साथ रुसी मोदी (दाएं) (फाइल फोटो)

शक्तिशाली कॉरपोरेट क्षत्रप बन चुके थे रुसी मोदी

1970 के दशक में रूसी मोदी के अलावा टाटा केमिकल्स के दरबारी सेठ, इंडियन होटल्स के अजीत केरकर टाटा समूह के साम्राज्य के शक्तिशाली क्षत्रप बन चुके थे। लेकिन रतन टाटा ने जैसे ही टाटा ग्रुप की बागडोर संभाली, इन क्षत्रपों की आजादी छिन गई। जेआरडी टाटा के युग में इन लोगों को काम करने की पूरी आजादी थी। धीरे-धीरे इन क्षत्रपों का पंख काटकर नियंत्रित किया जाने लगा। कैरियर की सूर्यास्त के समय अधिकतर ने टाटा समूह का साथ छोड़ दिया, लेकिन रुसी मोदी ने जमकर विरोध किया। 1992 में भारत में आर्थिक बदलाव हो रहे थे। भारतीय बाजार पूरी दुनिया के लिए खुलने लगे थे। ऐसे में टिस्को के सामने वैश्विक चुनौती थी। उसे वैश्विक बाजार में अपनी पहचान बनानी थी। लेकिन यह सब संभव नही हो पा रहा था। जरूरत से अधिक कर्मचारी, पुरानी तकनीक के भरोसे कंपनी वैश्विक प्रतिस्पर्धा में कहीं ठहर नहीं पा रही थी। कंपनी को फिर से पटरी पर लाने के लिए परिवर्तन जरुरी था।

 

               टाटा स्टील, जमशेदपुर के अपने कार्यालय में रुसी मोदी (फाइल फोटो)

टाटा समूह ने रुसी को बाहर का रास्ता दिखा दिया

1992 में जेआरडी टाटा जीवित थे और रुसी मोदी देश के विख्यात मैनेजर माने जाते थे। उन्हें मैनपावर व मैनेजमेंट में महारत हासिल थी। वह टिस्को के चेयरमैन थे और कंपनी नई ऊचाइयों को छू रही थ। लेकिन 1992 में टाटा समूह की जिम्मेवारी रतन टाटा के कंधों पर आ गया। उस समय जेजे ईरानी रतन टाटा के साथ मिलकर टाटा समूह की जिम्मवारी निभा रहे थे। उस समय टाटा समूह की सबसे अहम कंपनी टिस्को (टाटा स्टील) थी और जेआरडी चाहते थे, इसकी कमान भी रतन टाटा को मिल जाए। लेकिन रास्ते में एक रोड़ा था-रुसी मोदी। टाटा समूह ने रुसी मोदी को दरकिनार करने के लिए उनकी कार्यकारी शक्तियों को छीन लिया। उन्हें शक्तिविहीन कर चेयरमैन के पद पर प्रमोट कर दिया गया। एक झटके में रुसी मोदी अर्श से फर्श पर आ गिरे।

रतन टाटा (बाएं), जेआरडी टाटा (बीच में) तथा टाटा स्टील के तत्कालीन चेयरमैन

रुसी मोदी (दाएं) -फाइल फोटो

अपने उत्तराधिकारी को कहा था जोकर

रतन टाटा की निगरानी में मोदी के उत्तराधिकारियों ने कंपनी का पुनर्गठन किया। यह कहने की बात नहीं कि टाटा स्टील अब वैश्विक ब्रांड बन चुका है। शुरुआत में रुसी मोदी ने इन बदलाव को स्वीकार नहीं किया और अपने उत्तराधिकारियों को जोकर तक कह दिया था। हालांकि बाद में उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि उत्तराधिकारियों ने शानदार काम किया।

जमशेदपुर में एक कार्यक्रम के दौरान जेआरडी टाटा (दाएं) के साथ रुसी मोदी। -फाइल फोटो

टिस्को को बनाया भारतीय इस्पात उद्योग का अगुआ

सही मायनों में कहा जाए तो दो दशक से अधिक समय तक रुसी मोदी ने प्रबंध निदेशक व चेयरमैन के रूप में काम कर टाटा स्टील की जो मजबूत आधारशिला रखी थी, बाद के उत्तराधिकारियों ने उस पर खड़ा होकर ही सफलता की नई गाथा रची। बोर्ड रूम में कड़वी लड़ाई के पहले तक मोदी ने अपना विजन और इच्छा के अनुसार कंपनी को चलाया। मोदी ने अपने कार्यकाल में टाटा स्टील को न सिर्फ नई ऊंचाई तक पहुंचाया बल्कि प्रबंधन व मजदूर के बीच समन्वय भी स्थापित कर रखा। उनके कार्यकाल में एक तरफ टिस्को ने खुद को भारतीय इस्पात उद्योग में लीडर के रूप में स्थापित किया तो दूसरी ओर कॉरपोरेट इंडिया को यह बतला भी दिया कि मानव संसाधन का किस तरह शानदार उपयोग किया जा सकता है। बिहार व बंगाल की सीमा पर अवस्थित जमशेदपुर में शुरू से ही राजनीतिक चेतना रही। इसके बावजूद बिना कोई हड़ताल व बंद के कंपनी को चलाया। ऐसे समय में जब बिहार व बंगाल में हड़ताल व बंद के कारण एक के बाद एक कर कंपनियां बंद हो रही थी।

जमशेदपुर स्थित टाटा स्टील कंपनी

मोरारजी देसाई के खिलाफ मजदूरों के साथ सड़क पर उतर गए थे मोदी

1979 में जब जनता पार्टी की सरकार के प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने टिस्को का राष्ट्रीयकरण की धमकी दी तो रूसी मोदी ही कंपनी के मजदूरों के साथ जमशेदपुर के सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। उस समय कंपनी में भारत सरकार की 47 फीसद हिस्सेदारी थी।

बाद में माना, रतन टाटा था सही विकल्प

लेकिन जब वह टिस्को से उत्तराधिकार की लड़ाई हार गए तो यह माना जाने लगा, कंपनी के शीर्ष पद पर उनकेे दिन गिने चुने ही रह गए हैं। शुरू से ही कभी न हारने की जीवटता रखने वाले इस शख्स ने हार नहीं मानी और लड़ाई जारी रखने की ठानी। जब वह लंदन में थे तभी कंपनी बोर्ड ने उन्हें बर्खास्त कर दिया। हालांकि बाद में रतन टाटा व रुसी मोदी के बीच कटुता कम हुई और रुसी मोदी ने स्वीकार भी किया कि रतन टाटा समूह के चेयरमैन के रूप में सही विकल्प थे।

जेआरडी टाटा के साथ रतन टाटा (दाएं) -फाइल फोटो

एयर इंडिया में भी किया काम

टिस्को से बाहर होने के बाद रुसी मोदी ने एयर इंडिया व इंडियन एयरलाइंस में अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। वह जमशेदपुर से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव भी लड़े। टिस्को से बाहर निकलने के बाद अपने सर्मथक आदित्य कश्यप को टिस्को में शीर्ष पद पर बैठाना चाहा, लेकिन रतन टाटा ने जेेजे ईरानी को प्राथमिकता दी। बाद में आदित्य कश्यप के साथ मिलकर व्यापारिक घराने की स्थापना की। लेकिन आदित्य कश्यप की असामयिक निधन के बाद वह टूट गए।

आइंस्टीन के साथ बजाया था पियानो

रुसी मोदी जब इंग्लैंड के आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में पढ़ रहे थे तो उन्हें महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंसटीन से मिलने का मौका मिला। संगीत के शौकान रुसी मोदी ने इस दौरान आइंसटीन के साथ पियानो भी बजाया था।

 

पियानो बजाते रुसी मोदी - फाइल फोटो

रुसी का मैनेजमेंट फंडा, इंसान को मशीन मत समझो

रुसी हमेशा कहा करते थे-इंसान को कभी मशीन की तरह नहीं समझना चाहिए। उसे मशीन की तरह हांकना बंद करो। अरे वह इंसान हैं। उसके भीतर भी अहसास है, जज्बात है जो हमारे और आपके भीतर है। दूसरी बात वह हमेशा कहा करते थे, कभी सिपाही को भूलकर भी मत मारो। सिपाही तो जनरल बन सकता है, लेकिन जनरल कभी सिपाही नहीं बन सकता।

जमशेदपुर में कुत्तों के साथ रुसी मोदी -फाइल फोटो

कुत्तों को बिस्मार्क व गैरी बाल्डी नाम दिया था

बिस्मार्क व गैरी बाल्डी को जर्मनी व इटली को एक प्लेटफॉर्म पर लाने वाला नायक माना जाता था। वह उनसे इतने प्रभावित थे कि कुत्तों का नाम उनके नाम पर रख दिया था।

जमशेदपुर से लड़ा था निर्दलीय चुनाव

रूसी मोदी वर्ष 1998 के आमचुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार थे। उनकी टक्कर भाजपा की आभा महतो से थी। मोदी ने जमकर प्रचार किया, पैसे भी खूब खर्च किए। इसके बावजूद आभा महतो से 97433 वोट से हार गए थे।

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