9/11 को ही अमेरिका में स्वामी विवेकानंद ने दिया था विश्व बंधुत्व का संदेश, फिर इसी तारीख को मिला विश्‍व विध्वंस का संदेश

सदैव हिटलर का उदाहरण देनेवाले वामपंथी यह क्यों नहीं बताते कि हिटलर की तुलना में वामपंथी विचारधारा के स्टैलिन ने अधिक लोगों को मारा है। स्टैलिन ने दो करोड़ लोगों को मारा तो माओ ने तीन करोड़ चीनी लोगों को मारा है।

By Rakesh RanjanEdited By: Publish:Mon, 13 Sep 2021 05:15 PM (IST) Updated:Mon, 13 Sep 2021 05:15 PM (IST)
9/11 को ही अमेरिका में स्वामी विवेकानंद ने दिया था विश्व बंधुत्व का संदेश, फिर इसी तारीख को मिला विश्‍व विध्वंस का संदेश
‘डिस्मेंटलिंग ग्लोबल हिंदुत्व’ का प्रचार करने वाले भी हिंदुत्व से अनजान

जमशेदपुर, जासं। 128 वर्ष पूर्व 9/11 को अमेरिका के शिकागो में विश्व धर्म महासभा हुई थी, जिसमें स्वामी विवेकानंद ने बताया था कि हिंदू संस्कृति विश्‍वबंधुत्व का संदेश देती है। उसी अमेरिका में 20 वर्ष पूर्व 9/11 के आतंकवादी आक्रमण से यह सिद्ध हुआ कि अन्य संस्कृति विश्‍व विध्वंस का संदेश देती है। यह दो संस्कृतियों का भेद है।

हिंदू जनजागृति समिति द्वारा आयोजित ऑनलाइन संवाद 'हिन्दुत्व ही विश्‍वबंधुत्व का खरा आधार' विषय पर लेखक व प्रवचनकर्ता डा. सच्चिदानंद शेवडे ने कहा कि आज हम देख रहे हैं कि अफगानिस्तान में तालिबान द्वारा महिलाओं के साथ किस प्रकार का आचरण किया जा रहा है। विश्‍व में 85 आतंकवादी संगठन हैं। उनमें प्रधान इस्लामी, ईसाई और कम्युनिस्ट विचारधारा के संगठन हैं। इनमें एक भी हिंदू संगठन नहीं है। विश्‍व की चौथी सबसे बड़ी जनसंख्या हिंदुआें की है। कश्मीर से साढ़े चार लाख हिंदुआें को विस्थापित करने पर भी उनमें से एक भी व्यक्ति आतंकवादी नहीं बना, क्योंकि हिंदू सहिष्णु हैं। हिंदुओं ने कभी किसी के गले पर तलवार रखकर और हाथ में धर्मग्रंथ लेकर धर्मविस्तार नहीं किया। 'संघर्ष नहीं, सहयोग चाहिए', 'नाश नहीं, स्वीकार चाहिए', 'विवाद नहीं, संवाद चाहिए', इन त्रिसूत्रों के आधार पर हिंदू धर्म विश्‍वबंधुत्व की प्रेरणा देता है।

‘डिस्मेंटलिंग ग्लोबल हिंदुत्व’ का प्रचार करने वाले भी हिंदुत्व से अनजान

डा. शेवडे ने आगे कहा कि हिंदू धर्म विश्‍वबंधुत्व का आचरण करता है और उसी की सीख देता है। तब भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदू धर्म के विरोध में 'डिस्मेंटलिंग ग्लोबल हिंदुत्व' परिषद आयोजित की जा रही है। उसमें सहभागी किसी भी वक्ता का हिंदू धर्म संबंधी अध्ययन नहीं है। सभी वामपंथी विचारों के वक्ता सहभागी हुए हैं। इनमें भारत से आयशा किदवई, आनंद पटवर्धन, बानु सुब्रह्मण्यम, मोहम्मद जुनैद, मीना कंदास्वामी, नेहा दीक्षित इत्यादि सहभागी हुए हैं। ऐसी परिषद वे हिंदुओं के विरोध में ले सकते हैं। इससे हिंदू सहिष्णु हैं, यही सिद्ध होता है। अन्य धर्मियों के विरोध में ऐसी परिषद लेने का साहस वामपंथियों में है क्या? उसका क्या परिणाम होता है, यह 'चार्ली हेब्दो' द्वारा सामने आया है। इस हिंदू विरोधी परिषद के कारण उल्टा हिंदू समाज ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संगठित हो रहा है। वामपंथियों को केवल विवाद निर्माण करने की आदत है। उन्हें विवाद का निवारण करना नहीं आता। इसलिए उनके रशिया जैसे बड़े देश के टुकड़े-टुकड़े हो गए हैं। अनेकों की आवाज दबानेवाले चीन के भी कल टुकड़े-टुकड़े होने की संभावना है। अन्यों को वैचारिकता और लोकतंत्र का उपदेश देनेवाले वामपंथियों के देश में कहां लोकतंत्र है? सदैव हिटलर का उदाहरण देनेवाले वामपंथी यह क्यों नहीं बताते कि हिटलर की तुलना में वामपंथी विचारधारा के स्टैलिन ने अधिक लोगों को मारा है। स्टैलिन ने दो करोड़ लोगों को मारा, तो माओ ने तीन करोड़ चीनी लोगों को मारा है। यह सत्य लोगों को ज्ञात होना चाहिए।

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