स्वतंत्रता के सारथी : बुजुर्गों की आवाज बनें 82 वर्षीय शिवपूजन Jamshedpur News

बुजुर्गों की स्वतंत्रता के सारथी बने। उनके अधिकारों के लिए आज तक लड़ रहे है तथा अब तक वे 21 हजार बुजुर्गों को वरिष्ठ नागरिक समिति के माध्यम से जोड़ चुके हैं।

By Vikas SrivastavaEdited By: Publish:Sun, 09 Aug 2020 08:37 PM (IST) Updated:Mon, 10 Aug 2020 08:48 AM (IST)
स्वतंत्रता के सारथी :  बुजुर्गों की आवाज बनें 82 वर्षीय शिवपूजन Jamshedpur News
स्वतंत्रता के सारथी : बुजुर्गों की आवाज बनें 82 वर्षीय शिवपूजन Jamshedpur News

जमशेदपुर (जासं) । उम्र 82 वर्ष। नाम शिवपूजन सिंह। मानगो पारसनगर में अपने पूरे परिवार के साथ रहते हैं।टाटा स्टील से सेवानिवृत्ति के बाद लगातार बुर्जुगों की आवाज बुलंद कर रहे हैं। बुजुर्गों की स्वतंत्रता के सारथी बने। उनके अधिकारों के लिए आज तक लड़ रहे है तथा अब तक वे 21 हजार बुजुर्गों को वरिष्ठ नागरिक समिति के माध्यम से जोड़ चुके हैं। बकौल शिवपूजन सिंह वे वर्ष 2004 में टाटा स्टील से सेवानिवृत्त हुए थे। उसके बाद शहर के बुजुर्गों की स्थिति को देखकर कुछ करने का मन हुआ। यहां के बुजुर्ग अपने बेटों से ही अत्याचार के शिकार हो रहे थे। इस कारण उन्होंने सबसे पहले वरिष्ठ नागरिक समिति की स्थापना वर्ष 2004 में की। इसके संस्थापक अध्यक्ष बने।

सबसे पहले पूर्वी सिंहभूम प्रशासन से बुजुर्गों के एक पार्क आवंटित करने की मांग की। उसके बाद उन्हें मानगो बस स्टैंड के पास गांधी घाट पार्क मिला। इसका संचालन अभी समिति की देखरेख में हो रहा है। उसके बाद ओल्ड एज होम की मांग की गई। यह मांग भी प्रशासन ने मान ली। फिर शहर में सीनियर सिटीजन एक्ट को लागू करवाया। इसके लागू होते ही ओल्ड एज होम में रहने वाले बुजुर्ग को मासिक खर्च मिलने लगा। बुजुर्गों का सारा बायोडाटा सीनियर सिटीजन कार्ड में उपलब्ध रहता है। इसके माध्यम से पेंशन एवं अन्य मामलों का भी निस्तारण होता है। इस लड़ाई में उनका पूरा परिवार साथ देता है, यह उनके लिए खुशी की बात है।

 एक घंटे की शार्ट फिल्म के बाद असाध्य रोग का नियम बदला

मानगो निवासी शिवपूजन सिंह ने बताया कि कई बुजुर्गों की असाध्य बीमारी का इलाज नहीं हो पाता था। सरकार ने इसके लिए अर्हता बीपीएल कार्ड रखी थी। इस नियम को समिति के प्रयास से बदलवाया गया। इसके लिए एक घंटे की फिल्म आह बनाई गई, जिसमें कई ऐसे बुजुर्गों को दिखाया गया जो असाध्य रोग से ग्रसित थे और वे इलाज नहीं करवा पा रहे थे। उनके पास बीपीएल कार्ड नहीं थी। लंबी लड़ाई के बाद सरकार ने नियम बदला। बदले हुए नियम में असाध्य बीमारी सहायता निधि से इलाज के लिए 72 हजार रुपये का वार्षिक आय वाले लोगों को जोड़ा गया। इससे कई बुजुर्गों का इलाज हो पाया। उनकी संस्था कई तरह के सामाजिक कार्य भी करती है।

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