ऐसे थे कुंजल लकड़ा: जानिए उस शख्स की कहानी जिसने 1966 में गुंडा पार्टी को बिरसानगर से खदेड़ा था Jamshedpur News
कुंजल लकड़ा रांची के अनगड़ा में जन्मे और टेल्को अप्रेंटिस बनकर जमशेदपुर आए थे। उन्होंने गुंडा पार्टी को बिरसानगर से खदेड़ा था। मालिकाना के लिए अंतिम समय तक संघर्ष करते रहे।
जमशेदपुर, जासं। Kunjal lakra no more बिरसा सेवा दल पंचायत समिति के अध्यक्ष व बिरसानगर वेलफेयर सोसाइटी के सचिव व समाजसेवी कुंजल लकड़ा (75)नहीं रहे। उनका निधन बुधवार शाम को बिरसानगर स्थित आवास पर हो गया। वे अपने पीछे तीन बेटे व एक बेटी सहित भरा पूरा परिवार छोड़ गए हैं। कुंजल लकड़ा ने ही बिरसानगर को बसाया था। वे 1965 से 2002 तक टेल्को वकर्स यूनियन में कमेटी मेंबर थे। इसके अलावा युनिवर्सल पीस मिशन युनाइटेड सत्संग से भी जूड़े रहे।
गुंडा पार्टी के दमन से परेशान आसपास के लोग और बिरसा सेवा दल के लोगों ने मिलकर 6 जून 1966 को गुंडा पार्टी के कैंप पर बहुत बड़ा हमला किया। कैंप का हेड फूलकांत मिश्रा बहुत बड़ा लठैत था। उसके हाथ में लाठी बिजली की तरह नाचती थी। कोई भी वार उसको छू नहीं पा रहा था। तब यादव लोहार ने फूलकांत के हाथ में तीर मारा। लाठी उसके हाथ से छूट गई और उसके शरीर में कई तीर लगे। इस लड़ाई में फूलकांत मिश्रा सहित गुंडा पार्टी के कई लोग मारे गए। इधर के भी कई लोगों की मौत हो गई। इसके बाद गुंडागर्दी बंद हो गई।
अंतिम दम तक रही मालिकाना नहीं मिलने की टीस
ताउम्र मालिकाना की लड़ाई लडऩे वाले कुंजल को अंतिम समय तक टीस था कि चार दशक की लड़ाई के बाद भी बस्तीवासियों को मालिकाना का हक नहीं मिल पाया।
कुंजल ने 1971 में बिरसानगर का किया था नामकरण
परिवार के सदस्यों के साथ कुंजल लकड़ा। फाइल फोटो
कुंजल लकड़ा ने अपने साथियों के साथ बिरसानगर का नामकरण किया था। 1970 के नवंबर में कुंजल अपने साथियों के साथ बांस और पुआल से घर बनाया। उनलोगों ने सुबह चार बजे घर बनाना शुरू किया और छह बजते-बजते घर बनकर तैयार हो गया। कुल तीन घर बने। इसके बाद हम लोग इसी घर में रहने लगे। 1971 में बिरसानगर का नामकरण हुआ। तब शहर छोटा था, जंगल अधिक थे।
रांची में जन्मे व पले-बढ़े
कुंजल लकड़ा का पैतृक आवास रांची के अनगड़ा थाना क्षेत्र के डिलुवाकोटा गांव में है। प्रारंभिक शिक्षा टाटीसिलवे स्कूल में हुई, संत लुईस स्कूल से मैट्रिक किया और रांची कॉलेज से प्री यूनिवर्सिटी किया। उस समय आबादी बहुत कम थी। गिनी-चुनी गाडिय़ां थीं। वे साइकिल से कंपनी आते-जाते थे।
लिखने के शौकीन थे कुंजल
कुंजल के बड़े बेटे मनोज लकड़ा ने बताया कि पिता को लिखने का बड़ा शौक था वे अपने पास बहुत सारे कलम भी रखा करते थे। उनके कई लेख अखबारों में भी छपते थे। मार्च 2015 में उनकी एक किताब प्रकाशित हुई थी जिसका शीर्षक बिरसानगर औरक 86 बस्तियों के उत्पत्ति का सच था। इसमें 86 बस्तियों के मालिकाना हक की लड़ाई से लेकर अंत तक के बारे में बताया गया है। इस किताब में उन्होनें बस्ती से जूड़े दस्तावेज भी दर्शाए है।
झारखंड पार्टी से 1985 में लड़े थे विधान सभा चुनाव
कुंजल 1985 में झारखंड पार्टी का उम्मीदवार बनकर जमशेदपुर पूर्वी से विधानसभा चुनाव भी लड़ चुके है।
2000 में अल्जाइमर की बीमारी से हुए ग्र्रसित
1998 में कंपनी से वीआरएस लेने के बाद सन् 2000 में कुंजल अलजाइमर की बीमारी से ग्र्रसित हो गए थे। इसके इलाज के लिए वे चेन्नई के रामचंद्रन अस्पताल गए हुए थे। यहां पर जांच के दौरान स्थिती गंभीर होने पर उन्हे आईसीयू में भर्ती कराया गया था।