Father’s Dayः किसी की छूट गई थी पढ़ाई तो किसी के सिर से उठ गया था पिता का साया, इन्होंने दिया सहारा तो संवर गया जीवन

जमशेदपुर शहर में ऐसी कई मिसाल है जिसमें दयालु प्रकृति के लोग सैकड़ों बच्चों को ना केवल पढ़ रहे हैं बल्कि कुछ तो उनके घरेलू खर्च भी उठा रहे हैं। ऐसे लोगों की कहानी बता रहे हैं जो अनाथ-असहाय बच्चों के लिए पिता से बढ़कर भूमिका निभा रहे हैं।

By Rakesh RanjanEdited By: Publish:Sun, 20 Jun 2021 09:11 PM (IST) Updated:Sun, 20 Jun 2021 09:11 PM (IST)
Father’s Dayः किसी की छूट गई थी पढ़ाई तो किसी के सिर से उठ गया था पिता का साया, इन्होंने दिया सहारा तो संवर गया जीवन
जिंदगी में दुख, समस्या आती है लेकिन उससे घबराना नहीं बल्कि लड़ना चाहिए।

जमशेदपुर, जासं। हर पिता अपने बच्चे को आगे बढ़ता देखना चाहता है, लेकिन तब जीवन कठिन हो जाता है, जब पिता असमर्थ हो जाएं। ऐसे समय में बच्चे हताश-निराश हो जाते हैं, लेकिन भले लोगों की भी कमी नहीं है। कोई न कोई इन बच्चों को पिता की तरह सहारा देने के लिए आगे आ जाते हैं, तो बेटों का जीवन भी संवर जाता है।

झारखंड के जमशेदपुर शहर में ऐसी कई मिसाल है, जिसमें दयालु प्रकृति के लोग सैकड़ों बच्चों को ना केवल पढ़ रहे हैं, बल्कि कुछ तो उनके घरेलू खर्च भी उठा रहे हैं। पितृ दिवस या फादर्स डे के अवसर पर हम शहर के कुछ ऐसे लोगों की कहानी बता रहे हैं, जो अनाथ-असहाय बच्चों के लिए पिता से बढ़कर भूमिका निभा रहे हैं।

पैसे के अभाव में छूट गई थी पढ़ाई, वह एनआइटी के फाइनल ईयर में पहुंचा

आप कल्पना कीजिए कि आज से 14 वर्ष पहले पैसे के अभाव में जिस बच्चे की पढ़ाई छूट गई थी। स्कूल से नाम कट गया था, वह लड़का अभी आदित्यपुर स्थित एनआइटी में मैकेनिकल इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष में पढ़ रहा है। यह बानगी है उस मददगार की, जो आज 51 बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठा रहे हैं। शहर के कांट्रैक्टर शिवशंकर सिंह बिना प्रचार-प्रसार के पिछले 14 वर्ष से यह काम कर रहे हैं। सिंह बताते हैं कि 2007 में एक ड्राइवर दुर्घटनाग्रस्त होकर शारीरिक रूप से अपंग हो गया था। ऐसे में उसकी आजीविका भी चली गई। आर्थिक संकट आ गया, जिससे उसके बच्चे की पढ़ाई छूट गई। स्कूल से नाम कट गया था। उसने मुझे बताया तो मैंने कहा, चलो मैं उसकी पढ़ाई का पूरा खर्च उठाऊंगा। तब से उस आदिवासी छात्र की पढ़ाई का खर्च उठा रहा हूं। उसे इंजीनियरिंग की तैयारी कराने में प्रेरणा क्लासेस के प्रमोद दुबे ने भी काफी मदद की। मैं जिस पेशे में हूं, उसमें करीब छह सौ मजदूर जुड़े हैं। अधिकतर बच्चे इन मजदूरों के हैं। इसी तरह कई लोग साथ जुड़ जाते हैं। वैसे सभी बच्चों की फीस मैं सीधे स्कूल को देता हूं। कभी स्कूल से ऐसे बच्चों की सूचना मिलती है, तो कभी दोस्त-परिचित बताते हैं।

कोरोना से अनाथ हुए बच्चों के खेवनहार बने बागबेड़ा के पारस

कोरोना की दूसरी लहर ने 44 वर्षीय सुभाष नाग और उनकी पत्नी को मौत की नींद सुला कर दो बेटी और एक बेटे को अनाथ कर दिया। माता-पिता की अचानक मृत्यु ने दोनों बेटी और बेटे को अंदर से तोड़ दिया। सोनारी की झबरी बस्ती में अपने परिवार के साथ रहने वाले सुभाष नाग और उनकी पत्नी दोनों का देहांत कोरोना के कारण हो पिछले महीने हो गया । स्वर्गीय सुभाष नाग की दो बेटी और एक बेटा है। उनका घर चलाने वाला अभी कोई नहीं है। सुभाष युवा मंच के अध्यक्ष पारस नाथ मिश्रा बच्चों को राशन और आर्थिक सहयोग भी प्रदान कर रहे हैं। उनकी मदद भविष्य में भी करने का आश्वासन दिया। उन्होंने कहा कि वे इन सभी बच्चों की पढ़ाई का खर्च भी उठाएंगे। दोनों बेटी जमशेदपुर वीमेंस कॉलेज में पढ़ती है। उन्होंने कहा कि मेरी कोशिश होगी कि दोनों बहन और भाई को परिवार की तरह सहयोग और मार्गदर्शन करता रहूं।

पत्नी की मौत के बाद दो छोटे बच्चों को दिया माता और पिता दोनों का प्यार

मेरी शादी 19 साल की उम्र में 1990 को बड़े धूमधाम से हुई थी। परिवार में एक साल बाद एक पुत्र ने जन्म लिया। घर में खुशी का ठिकाना नहीं था। पांच साल बाद एक पुत्री ने जन्म लिया। इस तरह एक पूरा परिवार का सपना मेरा और मेरी पत्नी दोनों का सपना एक लड़का व एक लड़की होने के साथ ही पूरा हाे गया। इसी बीच 1998 को पांच साल का बेटा व दो साल की बेटी को छोड़कर मेरी पत्नी स्वर्ग सिधार गई। उस समय मेरा उम्र 26 साल था। दो छोटे बच्चों को देखकर मेरे माता-पिता, रिश्तेदार सभी ने कहा कि दूसरी शादी कर लो। मैंने भी दृढ निश्चय कर लिया था कि चाहे कुछ भी हो जाए, मैं दूसरा शादी नहीं करूंगा। क्योंकि मेरी पत्नी का आठ साल का साथ ने जिंदगी भर का प्यार भरी याद छोड़ गई थी। मैंने निश्चय किया कि मैं अपने पुत्र और पुत्री दोनों को माता और पिता दोनों का प्यार दूंगा। मैं दोनों पुत्र व पुत्री को ग्रेजुएशन करा कर शादी कर दिया। बेटी ससुराल में है और पुत्र अभिषेक पांडेय व बहू के साथ पारडीह स्थित अपने आवास पर खुशी से रह रहा हूं।

- धर्मवीर पांडेय, पारडीह

सोनारी की रहने वाली ऐश्वर्या के पापा निभा रहे डबल रोल, वर्ष 2011 में मां छोड़ गई साथ

 जब मैं 16 साल की थी, तब सोचा भी नहीं था कि मां मुझे अकेला छोड़ जाएगी। इस दुनिया को अलविदा कह जाएगी। उनके जाने से मेरी जिंदगी में अंधेरा छा गई लेकिन पापा (रंजन कुमार श्रीवास्तव) ने मुझे संभाला और इस मुकाम तक पहुंचा। मेरी हर ख्वाहिशें पूरा किया। मेरी खुशी के लिए सब कुछ सह जाते, उनके जैसा नहीं कोई अच्छा, ऐसा हैं मेरे प्यारे पापा...। मेरे दिल में रहते हैं पापा...। यह शब्द सोनारी की रहने वाली ऐश्वर्या श्रीवास्तव की है, जो फिलहाल यूपीएससी (संघ लोक सेवा आयोग) की तैयारी कर रही है। ऐश्वर्या श्रीवास्तव कहती है कि जब वह 11वीं में पढ़ रही थी। वह दौर काफी नाजुक होता है। दुनिया समझना शुरू ही किया था कि इसी बीच मां (संगीता देवी) का वर्ष 2011 में निधन हो गया। तब मेरे ऊपर पहाड़ सा टूट पड़ा। लेकिन, पापा ने हिम्मत बढ़ाया। मुझे प्रेरित किया और मुझे पढ़ने के लिए जयपुर भेजा। मैंने हॉस्टल में रहकर इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की। फिलहाल मैं यूपीएससी की तैयारी कर रही हूं। इसके लिए कठिन परिश्रम कर रही हूं। ऐश्वर्या कहती है कि उसे देश के लिए कुछ करने की चाहत है। इसी सोच के साथ आगे बढ़ रही हूं।

गरीब बच्चों को मुफ्त में पढ़ा रही है ऐश्वर्या

ऐश्वर्या श्रीवास्तव गरीब बच्चों को मुफ्त में पढ़ाती है। वह रोटी बैंक से भी जुड़ी हुई है। ऐश्वर्या कहती हैं कि रोटी बैंक की ओर से गरीबों को मुफ्त में भोजन कराया जाता है। इस अभियान से मेरे पापा भी जुड़े हुए हैं। मैं भी पापा के साथ जाने लगी। इस दौरान देखा कि खाना खाने के लिए काफी सारे गरीब बच्चे भी आते हैं। तब मैंने रोटी बैंक के संचालक मनोज मिश्रा से संपर्क किया और उन बच्चों को पढ़ाने का बीड़ा उठाया। उन बच्चों के लिए सीतारामडेरा स्थित छाया नगर में एक जगह भी चयनित की गई है, जहां पर सारे बच्चे आते हैं। उन्हें मुफ्त में किताब-कॉपी का वितरण भी किया जाता है। ऐश्वर्या के पिता रंजन श्रीवास्तव एक निजी कंपनी में कार्यरत हैं।

दुख से लड़ा और बेटी को पढ़ाया

रंजन कुमार श्रीवास्तव कहते हैं कि जब पत्नी का निधन हुआ तब अंदर से टूट चुका था लेकिन मेरे सामने बेटी थी, जो मेरी हिम्मत बढ़ा रही थी। सोचा कि अगर मैं हार जाऊंगा तो मेरी बेटी को कौन संभालेगा। जिंदगी में सुख-दुख आते रहता है। उसके बाद मैं भी संभला और बेटी का भी हिम्मत बढ़ाया। धीरे-धीरे घटना पुरानी होती गई। रंजन कहते हैं कि जिंदगी में दुख, समस्या आती है लेकिन उससे घबराना नहीं बल्कि लड़ना चाहिए।

-प्रस्तुतिः अमित तिवारी।

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