विश्व बैंक की मदद से बनी थी जमशेदपुर की मोहरदा जलापूर्ति योजना, 16 वर्ष बाद सरयू राय ने निकाला बड़ा घोटाला

वर्ष 2005 में विश्व बैंक की वित्तीय मदद से मोहरदा पेयजल परियोजना का निर्माण हुआ था जिस पर करीब 28 करोड़ रुपये की लागत आई थी। 16 वर्ष बाद जमशेदपुर पूर्वी के विधायक सरयू राय को इसमें घोटाला ही घोटाला नजर आ रहा है।

By Rakesh RanjanEdited By: Publish:Tue, 15 Jun 2021 10:38 AM (IST) Updated:Tue, 15 Jun 2021 10:38 AM (IST)
विश्व बैंक की मदद से बनी थी जमशेदपुर की मोहरदा जलापूर्ति योजना, 16 वर्ष बाद सरयू राय ने निकाला बड़ा घोटाला
तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने 2006 में इसका शिलान्यास किया।

जमशेदपुर, जासं। झारखंड के जमशेदपुर के बिरसानगर में वर्ष 2005 में विश्व बैंक की वित्तीय मदद से मोहरदा पेयजल परियोजना का निर्माण हुआ था, जिस पर करीब 28 करोड़ रुपये की लागत आई थी। 16 वर्ष बाद जमशेदपुर पूर्वी के विधायक सरयू राय को इसमें घोटाला ही घोटाला नजर आ रहा है।

सरयू ने झारखंड सरकार के नगर विकास एवं आवास विभाग के सचिव को पत्र लिखकर पूरे मामले की जांच के साथ-साथ खामियों को अविलंब सुधारने की आवश्यकता जताई है। विधायक ने सचिव को बताया कि इसके निर्माण के लिए तत्कालीन झारखंड सरकार ने जुस्को को अनापत्ति प्रमाण पत्र नहीं दिया और 28 करोड़ रुपये की लागत से इसका निर्माण स्वयं करने का निर्णय लिया। तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने 2006 में इसका शिलान्यास किया। परियोजना 2008 में पूरी होनी थी, परंतु किन्हीं कारणों से विलंब हुआ और यह महत्वाकांक्षी परियोजना 2013 में आंशिक रूप से पूरी हुई। परियोजना के पोषण क्षेत्र की जनता के बीच पानी का कनेक्शन लेने के लिये फार्म बंटे, जलापूर्ति आरंभ हुई, पर परियोजना सुचारू रूप से परिचालित नहीं हो सकी। इसके विरूद्ध पानी की आपूर्ति और गुणवता को लेकर शिकायतों का अंबार लग गया। तब जाकर सरकार ने 2017 में इसके परिचालन, उन्नयन व रखरखाव के लिए उसी जुस्को के साथ समझौता किया, जिसे उसने 2005 में निर्माण की अनुमति नहीं दी थी। इससे करीब डेढ़ लाख लोगों को पेयजल देने का लक्ष्य था।

पहले था पेयजल स्वच्छता विभाग का जिम्मा

पहले योजना का परिचालन, उन्नयन एवं रख-रखाव करने का जिम्मा सरकार के पेयजल एवं स्वच्छता विभाग के जिम्मे था। परिचालन, रखरखाव तथा जलापूर्ति के संबंध में आम जनता के असंतुष्ट होने के कारण यह परियोजना जुस्को के हवाले की गई। वर्ष 2017 के जून महीने में इसके लिए जुस्को और जमशेदपुर अक्षेस के बीच एक समझौता हुआ। जुस्को ने उस समय कहा था कि इस परियोजना की अधोसंरचना को उन्नत किया जाएगा और पेयजल गुणवत्ता में दो महीने के भीतर सुधार किया जाएगा। इसके बाद जुस्को और सरकार ने समझौता शर्तों के अनुरूप इस परियोजना पर कितना व्यय किया, इसकी जानकारी मुझे नहीं है। अपुष्ट सूचना के अनुसार इस पर कुल 35 से 40 करोड़ रुपए से अधिक का व्यय हुआ है।

नहीं हुइ संतोषजनक प्रगति

जुस्को और सरकार के बीच मोहरदा पेयजलापूर्ति परियोजना के संचालन, उन्नयन, रखरखाव के बारे में हुए समझौते का पांच वर्ष पूरा हो चुका है। कतिपय क्षेत्रों में परियोजना का उन्नयन हुआ है, पाइपलाइन बिछाया गया है, परन्तु पेयजल आपूर्ति के बारे में संतोषजनक प्रगति नहीं हुई है। इस बीच कोई भी दिन ऐसा नहीं गुजरता है, जिस दिन परियोजना क्षेत्र के लोग पेयजल गुणवत्ता, आपूर्ति आदि के बारे में तथा समय पर आपूर्ति नहीं होने के कारण कोई न कोई शिकायत नहीं करते हैं। इस क्षेत्र के लोगों की शिकायत है कि परियोजना से उन्हें पीने योग्य साफ पानी की आपूर्ति नहीं हो रही है और समय पर निश्चित घरों में पानी की आपूर्ति भी नहीं हो पा रही है। यह आम जनता की ओर से परियोजना के बारे में एक गंभीर शिकायत है, सरकार द्वारा इसे संज्ञान में लेना आवश्यक है।

तेज बारिश के बाद इंटेकवेल में फंस जाता नदी का कचरा

इस क्षेत्र से प्रतिनिधि चुने जाने के बाद से इस क्षेत्र में मेरे लिए मानसून का यह दूसरा मौसम है। विगत दिनों ‘यास’ तुफान के कारण भी स्वर्णरेखा नदी का जल प्रवाह काफी बढ़ गया था। उस समय से दो दिन तक पेयजलापूर्ति ठप हो गई थी। नदी में जब भी जलस्तर एवं प्रवाह बढ़ता है तो एक से तीन दिन के लिए परियोजना का संचालन ठप हो जाता है। आज तीसरा दिन है, जब इस परियोजना से पेयजल की आपूर्ति ठप है। परियोजना क्षेत्र में पानी के बिना हाहाकार मचा हुआ है।

डिजायन पर सवाल

जुस्को के अधिकारियों द्वारा यह तर्क दिया जाता है कि नदी में जल प्रवाह बढ़ने के साथ ही पूरे जमशेदपुर एवं मानगो से प्लास्टिक युक्त कूड़ा-कचरा का अंबार नदी से बहकर परियोजना के पंप हाउस तक आता है, जिसके कारण इंटेकवेल से पानी खींचने वाली पंप मशीन में कचरा फंस जाता है और मशीन बंद हो जाती है। इसके कारण जलापूर्ति ठप हो जाती है। मशीन को ठीक करने के लिए उन्हें काफी मशक्कत करनी पड़ती है। जुस्को के अधिकारियों के अनुसार उन्होंने मशीन के चारों ओर नदी के भीतर जाली भी लगवाया है, परंतु यह व्यवस्था कूड़ा-कचरा को मशीन में फंसने से नहीं रोक पा रही है। जुस्को के अधिकारी कहते हैं कि इस परियोजना की डिजाइन सही नहीं है। जिस स्थान पर इंटेकवेल बनाकर नदी से पानी खींचा जाता है, वह स्थान भी इसके लिए उपयुक्त नहीं है।

ठप हो सकती परियोजना

आज जुस्को के एक वरीय अधिकारी ने मुझे बताया कि यह परियोजना कब पूरी तरह ठप हो जाएगी और जमशेदपुर की एक बड़ी आबादी पेयजल के लिए त्राहिमाम करने लगेगी, कहा नहीं जा सकता। उनके अनुसार एक वैकल्पिक योजना बनाना जरूरी हो गया है, ताकि इस परियोजना के डिजाइन एवं स्थल की कमियों से होने वाले नुकसान की भरपाई हो सके। उपर्युक्त विवरण के आलोक में आपसे निवेदन है कि जुस्को, जमशेदपुर अक्षेस और पेयजल एवं स्वच्छता विभाग के तकनीकी अधिकारियों की एक संयुक्त बैठक बुलाने की पहल की जाए। मोहरदा पेयजल परियोजना की पिछली डिजाइन कितनी सही और कितनी गलत है, इसके बारे में विश्लेषण करके इसकी खामियां जितनी जल्दी दूर हो सकती है, उतनी जल्दी उन्हें दूर करने का प्रयत्न किया जाए। यदि तकनीकी अधिकारियों को लगता है कि एक वैकल्पिक परियोजना नए सिरे से तैयार करना अपरिहार्य है तो इसके लिए भी जनहित में आवश्यक पहल यथाशीघ्र की जाए।

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