ओवरलोडिंग से सड़कें बदहाल, बस में क्षमता से अधिक यात्री पर लगता जुर्माना

बसों पर ओवरलोडिंग का अधिनियम या एक्ट 1939 से ही लागू है। इसके तहत पहले कार्रवाई व जुर्माना भी लगता है। इसके बाद इस एक्ट में 1988 और 1995 में भी संशोधन हुआ। अभी हेमंत सरकार ने 2019 में भी संशोधन किया गया है।

By Rakesh RanjanEdited By: Publish:Wed, 22 Sep 2021 04:55 PM (IST) Updated:Wed, 22 Sep 2021 04:55 PM (IST)
ओवरलोडिंग से सड़कें बदहाल, बस में क्षमता से अधिक यात्री पर लगता जुर्माना
जमशेदपुर के मानगो बस स्टैंड की फाइल फोटो।

जमशेदपुर, जागरण संवाददाता। ओवरलोडिंग की बात आते ही जेहन में माल लदे ट्रक, ट्रेलर, डंपर आदि आंखों के सामने घूम जाते हैं। क्षमता से अधिक माल लेकर जा रहे ये वाहन चढ़ाई पर धीमी गति से चरमराते हुए गुजरते हैं। कई बार ऐसी स्थिति बसों की भी होती है, जब उनकी छत पर माल और अंदर क्षमता से अधिक यात्री भरे हों। कई बार ऐसे वाहन पलट भी जाते हैं, जिसमें जान-माल की भी क्षति होती है। यह बहुत कम लोग जानते हैं कि ओवरलोडिंग एक्ट बसों पर भी लागू है, लेकिन अमूमन इस पर जांच व कार्रवाई की बात कम ही सामने आती है।

इस कानून में सीट क्षमता से अधिक यात्री बैठाने पर प्रति व्यक्ति 200 रुपये जुर्माना लगता है। जमशेदपुर बस ऑनर्स वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष राम उदय प्रसाद सिंह उर्फ उदय शर्मा बताते हैं कि बसों पर ओवरलोडिंग का अधिनियम या एक्ट 1939 से ही लागू है। इसके तहत पहले कार्रवाई व जुर्माना भी लगता है। इसके बाद इस एक्ट में 1988 और 1995 में भी संशोधन हुआ। अभी हेमंत सरकार ने 2019 में भी संशोधन किया गया है। यह अलग बात है कि 2019 के बाद कोरोना आ गया, जिससे इसका अनुपालन नहीं हुआ। कोरोना से पहले पुरुलिया, चांडिल व पटमदा की कौन कहे आरा-बक्सर की बसों में भी बेंच लगाकर यात्री ढोए जाते थे। लगन व होली-दशहरा के मौके पर लंबी दूरी की बसों में भी यात्री ठूंस-ठूंस कर भरे जाते थे। छत पर भी बस की सीट से ज्यादा यात्री सफर करते थे।

ओवरलोडिंग में कड़ाई पर ही चली गई थी मुंडा सरकार

जानकार बताते हैं कि ओवरलोडिंग में कड़ाई करने पर ही तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की सरकार गिर गई थी, जिसके बाद मधु कोड़ा मुख्यमंत्री बने थे। उस वक्त जमशेदपुर में ओवरलोडिंग की जांच करने के लिए मजिस्ट्रेट की चार-चार गाड़ी दिन-रात दौड़ती रहती थी। लाल रंग की जीप होने से इसका नाम लाल-गाड़ी पुकारा जाता था। जिले के हर प्रवेशद्वार पर चौक-चौराहे पर मजिस्ट्रेट तैनात रहते थे। इसके अलावा डीटीओ व एमवीआइ के साथ ट्रैफिक पुलिस का भी पूरा ध्यान ओवरलोडिंग पर ही रहता था। हर दिन हजारों-लाखों का वारा-न्यारा होता था। मधु कोड़ा की सरकार आने के बाद इसमें नरमी बरती जाने लगी। हालांकि अब भी यदा-कदा जांच होती है, लेकिन कोरोना में तो अब बसों की पूरी सीट भी नहीं भर रही है।

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