सड़क न सिचाई का साधन, 15 किमी. दूर उठाने जाते हैं राशन
चाकुलिया प्रखंड के लोधाशोली पंचायत अंतर्गत पश्चिम बंगाल सीमा से सटा गांव है अमलागोड़ा। प्रखंड मुख्यालय से भले ही इस गांव की दूरी महज 3 किलोमीटर हो पर विकास के मामले में अभी यह कोसों दूर है..
संवाद सूत्र, चाकुलिया : चाकुलिया प्रखंड के लोधाशोली पंचायत अंतर्गत पश्चिम बंगाल सीमा से सटा गांव है अमलागोड़ा। प्रखंड मुख्यालय से भले ही इस गांव की दूरी महज 3 किलोमीटर हो पर विकास के मामले में अभी यह कोसों दूर है। आलम यह है कि चाकुलिया से अमलागोड़ा तक 3 किमी के सफर में ही रास्ते में अनगिनत गड्ढे मिल जाते हैं। गांव तक जाने वाली यह सड़क वर्षो से जर्जर है। वर्ष 2011-12 में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत आमलागोड़ा तक जाने वाली सड़क का निर्माण हुआ था। लेकिन निर्माण कार्य इतना घटिया था कि चंद महीनों में ही सड़क टूटने लगी थी। डेढ़ दो साल में तो पूरी सड़क टूटकर गड्ढे में तब्दील हो गई। नुकीले पत्थरों एवं गड्ढों में हिचकोले खाते ग्रामीण कहने लगे कि इससे बेहतर तो पहले वाली मिट्टी मुरूम सड़क ही थी। निर्माण के बाद न तो सड़क का रखरखाव किया गया और ना ही फिर दोबारा इसकी मरम्मत हुई। तब से यह बदहाल सड़क ग्रामीणों का नसीब बनी हुई है। अमलागोड़ा गांव में करीब 120- 125 घर है एवं आबादी 600 के ऊपर। खास बात यह है कि इस गांव में करीब 20-25 घर आदिम जनजाति की श्रेणी में आने वाले सबरों के हैं। गांव के लोग अभी भी बुनियादी सुविधाओं से महरूम है। पेयजल एवं सिचाई की सुविधा भी यहां नहीं है। सरकारी बोरिग तो है पर उनका इस्तेमाल कुछ लोग निजी तौर पर करते हैं। स्वर्णरेखा परियोजना के तहत प्रस्तावित नहर आज तक यहां नहीं पहुंच पाई है। सबसे ताज्जुब की बात यह है कि गांव में किसी भी मोबाइल कंपनी का नेटवर्क नहीं पकड़ता जिससे दूरसंचार की सुविधा लोगों को नहीं मिल पाती। यहां से मात्र 2 किलोमीटर पूरब की तरफ जाने पर बंगाल की सीमा शुरू हो जाती है, जहां सड़क भी चकाचक है और नेटवर्क भी। अमलागोड़ा के लोगों की समस्या यहीं खत्म नहीं होती। ग्रामीणों को राशन के अनाज का उठाव करने तकरीबन 15 किमी दूर उदाल गांव जाना पड़ता है। दरअसल, अमलागोड़ा के डीलर का लाइसेंस रद्द होने के बाद ग्रामीणों को दूरस्थ गांव के डीलर से टैग कर दिया गया था। गांव के लोग कई बार किसी नजदीकी डीलर से राशन मुहैया करने की गुहार लगा चुके हैं, लेकिन नतीजा सिफर रहा है। अमलागोड़ा के सबरों की स्थिति खस्ताहाल : अमलागोड़ा गांव के सबर खस्ताहाल है। अधिकांश सबर अशिक्षित है। किसी तरह मजदूरी कर दो जून की रोटी जुटा पाते हैं। मजदूरी के लिए भी यह अक्सर बंगाल पलायन कर जाते हैं। गरीबी, अशिक्षा एवं नशापान के मकड़जाल में फंसे सबर असमय काल कवलित हो रहे हैं। गांव के प्रबुद्ध नागरिक राजकिशोर बारिक कहते हैं कि बीते कुछ वर्षों में सबरों की संख्या गांव में घट गई है। शराब एवं अन्य नशा की लत के कारण अल्प आयु में ही इनकी मौत हो जाती है।
गांव के युवा विमल परिहारी एवं विकास बारिक ने बताया कि बदहाल सड़क के कारण लोगों का जीना मुहाल हो गया है। कोरोना काल में पढ़ाई समेत अन्य सारी सुविधाएं ऑनलाइन की जा रही है। लेकिन हमारे गांव में किसी भी मोबाइल कंपनी का नेटवर्क ही नहीं पकड़ता। ऐसे में बच्चों को पढ़ाई से वंचित होना पड़ता है। इंटरनेट से जुड़ी अन्य सुविधाएं भी हमें नहीं मिल पाती।