कोरोना को हराना है : नियमित शंख बजाने वालों को नहीं हुआ कोरोना
कोरोना से जो भी बीमार पड़े हैं उन्हें सबसे पहले फेफड़े का संक्रमण होता है। सांस लेने में परेशानी होती है क्योंकि उनका श्वसन तंत्र कमजोर हो जाता है। ऐसा देखा गया है कि इस बार वे लोग कोरोना से संक्रमित नहीं हुए जो नियमित रूप से शंख बजाते हैं।
जमशेदपुर, जासं। कोविड-19 या कोरोना से जो भी बीमार पड़े हैं, उन्हें सबसे पहले फेफड़े का संक्रमण होता है। सांस लेने में परेशानी होती है, क्योंकि उनका श्वसन तंत्र कमजोर या क्षतिग्रस्त हो जाता है। ऐसा देखा गया है कि इस बार वे लोग कोरोना से संक्रमित नहीं हुए, जो नियमित रूप से शंख बजाते हैं।
झारखंड के जमशेदपुर के साकची शीतला मंदिर के पुजारी पंडित राजू वाजपेयी ने बताया कि उनके यहां नियमित रूप से शंख बजाने वाले किसी पुरोहित को कोरोना नहीं हुआ। उनकी जानकारी में शहर का किसी पुजारी या श्रद्धालु को कोरोना नहीं हुआ, जो नियमित रूप से शंख बजाते हैं। ऐसे लोगों को सांस संबंधी बीमारी भी नहीं होती। फेफड़ा मजबूत रहता है। धर्मरक्षिणी पौरोहित्य महासंघ, जमशेदपुर के अध्यक्ष पं. विपिन कुमार झा ने बताया कि शंख बजाने से खुद ब खुद अनुलोम-विलोम हो जाता है। हां, जो कभी-कभी शंख बजाते हैं, उन्हें हो सकता है। वैसे उनकी जानकारी में ऐसे लोग भी नहीं मिले हैं, जो कोरोना से संक्रमित हुए हों।
ये भी रहे कोरोना से महफूज
दूसरी ओर बैंड पार्टी में क्लारनेट या ट्रम्पेट बजाने वाले भी कोरोना से दूर रहे हैं। झंकार बैंड के मो. युनूस बताते हैं कि इस बाजे में हवा का दबाव से ही ध्वनि निकलती है। इससे भी बड़ी बात कि अंदर से सांस लेकर हवा को नियंत्रित करते हुए वाद्ययंत्र बजाना पड़ता है। लिहाजा फेफड़ा से लेकर पूरा श्वसन तंत्र मजबूत रहता है। हालांकि कोरोना की वजह से उनका कारोबार करीब डेढ़ साल से बंद पड़ा है। वैसे भी मानसून आने से पहले बैंड पार्टी के कलाकार-कारीगर खेती करने चले जाते हैं। यहां ज्यादा कलाकार-कारीगर गया, नालंदा, बिहार शरीफ आदि के हैं। उनकी जानकारी में क्लारनेट-ट्रंपेट बजाने वाले किसी को कोरोना नहीं हुआ है। एेसे में हमें इन उपायों को अपने दैनिक जीवन में अपनाना चाहिए। इससे हमें बीमारी को दूर रखने में मदद मिलेगी।