मराठों से पहले मुंबई आए थे रतन टाटा के वंशज, परिस्थिति में ढलने के विशेष गुण ने पारसियों को हर क्षेत्र में रखा आगे

क्या आपको पता है कि मराठा से पहले रतन टाटा के वंशज पारसी मुंबई पहुंच चुके थे। पारसी जल्द ही दूसरों से घुल मिल जाते हैं। यही कारण है कि वे डच पुर्तगाली फ्रेंच व अंग्रेजी भाषा जल्द सीख गए।

By Jitendra SinghEdited By: Publish:Tue, 03 Aug 2021 06:00 AM (IST) Updated:Tue, 03 Aug 2021 09:24 AM (IST)
मराठों से पहले मुंबई आए थे रतन टाटा के वंशज, परिस्थिति में ढलने के विशेष गुण ने पारसियों को हर क्षेत्र में रखा आगे
मराठों से पहले मुंबई आए थे रतन टाटा के वंशज

जमशेदपुर, जासं। देश में पारसियों की आबादी सभी समुदाय से कम है। इसके बावजूद इन्होंने इतनी तरक्की कैसे कर ली, यह हर किसी के लिए उत्सुकता का विषय है। व्यवसाय, खेल, संगीत, अभिनय से लेकर राजनीति तक में पारसी जहां गए, सर्वश्रेष्ठ स्थान हासिल किया। आखिर यह कैसे हुआ। क्या है इनकी सफलता का राज।

आपको शायद पता नहीं होगा कि बंबई या मुंबई में पारसी मराठों से पहले आए थे। उस समय यह शहर एक बंदरगाह जैसा ही था, जहां डच, पुर्तगाली, फ्रेंच और ब्रिटिश काफी तादाद में थे। इनके बीच पारसी इस तरह घुल-मिल गए कि इन विदेशियों को भी पता नहीं चला। इनके बीच रहते हुए ना केवल इनकी भाषाएं सीख ली, बल्कि इनके सबसे प्यारे दोस्त भी बन गए। स्वभाव से शांत, नम्र, हंसमुख और मिलनसार स्वभाव ने किसी को पराया होने का अहसास ही नहीं होने दिया। सभी विदेशियों ने इनके व्यवहार से खुश होकर अपने हर कारोबार में ना केवल साझीदार बनाया, बल्कि हर क्षेत्र में आगे बढ़ने में मदद की। इन बातों का जिक्र नवीनतम पुस्तक 'द टाटा, फ्रेडी मर्करी एंड अदर बावस : एन इंटिमेट हिस्ट्री ऑफ द पारसी' में है।

1830 के दंगे के बाद दूसरे समुदाय के लोग बसाए गए

लंबे समय तक पारसी मुंबई की प्रमुख आबादी थे। अंग्रेजों के साथ अच्छी तरह से मिल-जुलकर रह रहे थे। इसी बीच 1830 के शुरुआती दिनों में दंगा हुआ। इसके बाद पारसी समुदाय और अंग्रेजों ने भी दूसरे शहर में बसने और बंबई में दूसरे समुदायों का लाने का फैसला किया।

महिलाएं शुरू से थीं आगे

पुस्तक के अंश 'ट्रेलब्लेज़िंग वूमेन' में लिखा है कि पारसी महिलाएं शुरू से ही हर क्षेत्र में आगे थीं। शिक्षा का स्तर तो बेजोड़ था। यही वजह है कि मुंबई में लड़कियों के स्कूल किसी भी अन्य शहर से काफी अधिक थे। पारसी जानते थे कि अगर वे प्रगति करना चाहते हैं, तो यह महत्वपूर्ण है कि महिलाएं पुरुषों के बराबर हों। उन्होंने लड़कियों के लिए काफी स्कूल खोले। वे अन्य समुदायों की तुलना में शिक्षा में बहुत आगे थीं और हर नए क्षेत्र में पहले प्रवेश करती थीं। यह परंपरा अब भी खत्म नहीं हुई है। आज भी वे बैंकर, उद्योगपति, खिलाड़ी और डॉक्टर हैं। उनकी सीमित संख्या को देखते हुए यह काफी उल्लेखनीय है।

आबादी घटने का कारण कम बच्चे होना और महिलाओं को दूसरे समुदाय में शादी करना

इतना सफल होने के बावजूद पारसियों की संख्या घटती जा रही है। पुस्तक में लिखा है कि ऐसा इसलिए है, क्योंकि इनके कम बच्चे होते हैं। महिलाएं इतनी शिक्षित होती हैं कि वे बड़े परिवार का नुकसान और छोटे परिवार का फायदा जानती हैं। उन्हें शुरू से यह बात पता है कि कम बच्चों की परवरिश अच्छे तरीके से की जा सकती है। उनके बड़े परिवार नहीं हैं। वे आम तौर पर तब तक शादी नहीं करते जब तक उनके पास एक निश्चित जीवन स्तर नहीं होता है। एक और प्रमुख कारण यह है कि पारसी महिलाओं के बच्चे जो अपने धर्म से बाहर शादी करते हैं, उन्हें स्वीकार नहीं किया जाता है।

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