Indian Railways : राजधानी, शताब्दी नहीं बल्कि ये बन गई है रेलवे की स्पेशल ट्रेन, जानिए क्या है इसकी खासियत

Indian Railways Special Train. रेलवे के लिए वर्तमान में राजधानी या शताब्दी नहीं बल्कि ये ट्रेन खास बन चुकी है। कोरोना महामारी के दौर में राजधानी एक्सप्रेस से कहीं ज्यादा आक्सीजन एक्सप्रेस को अहमियत दी जा रही है।

By Rakesh RanjanEdited By: Publish:Mon, 10 May 2021 03:52 PM (IST) Updated:Mon, 10 May 2021 08:13 PM (IST)
Indian Railways : राजधानी, शताब्दी नहीं बल्कि ये बन गई है रेलवे की स्पेशल ट्रेन, जानिए क्या है इसकी खासियत
ग्रीन कॉरिडोर से गुजरती है ट्रेन, सिग्नल के लिए नहीं करना पड़ता है इंतजार।

जमशेदपुर, जासं। Indian Railways Oxygen Express रेलवे के लिए वर्तमान में राजधानी या शताब्दी नहीं बल्कि ये ट्रेन खास बन चुकी है। आक्सीजन एक्सप्रेस इन दिनों स्पेशल ट्रेन बन चुकी है जो कोरोना संक्रमित मरीजों के लिए संजीवनी बन चुके लिक्विड मेडिकल आक्सीजन लेकर चलती है।

कोरोना महामारी के दौर में राजधानी एक्सप्रेस से कहीं ज्यादा आक्सीजन एक्सप्रेस को अहमियत दी जा रही है। भले ही यह मालगाड़ी हो लेकिन इस ट्रेन को विदा करने के लिए रेलवे के वरीय अधिकारियों की फौज रहती है। यही नहीं इस ट्रेन में चीफ लोको इंस्पेक्टर, मैकेनिकल विभाग की टीम सहित ट्रेन को सुरक्षा देने के लिए आरपीएफ के जवान भी तैनात रहते हैं ताकि रास्ते में किसी भी तरह की परेशान आए तो उसका त्वरित समाधान किया जा सके।

ग्रीन कॉरिडोर से गुजरती है ट्रेन

कोरोना महामारी के कारण कई शहरों में आक्सीजन की किल्लत हो गई है। ऐसे में रेलवे बोर्ड उन स्थानों से आक्सीजन की ढुलाई कर रही है जहां आक्सीजन का उत्पादन होता है। मरीजों की जान बचाने के लिए आक्सीजन समय पर पहुंचे। इसके लिए रेलवे ने देश भर में ग्रीन कॉरिडोर सर्किट बनाया है। इसके लिए विशेष इंतेजाम किए गए हैं। जब ट्रेन प्रारंभ होने वाले स्टेशन से गुजरती है तो उसकी आगे की लाइन क्लियर रहे, इसकी पहले से व्यवस्था की जाती है और आगे सभी स्टेशनों से आक्सीजन एक्सप्रेस को ग्रीन सिग्नल मिलते जाता है। जिसके कारण यह बिना रुके आगे बढ़ती रहती है।

लगता है लाइट इंजन चला रहे हैं

मालगाड़ी में अक्सर कोयला, आयरन ओर या दूसरे खाद्यान्न लदे डिब्बे होते हैं जिसमें 60 से 70 वैगन होते हैं। इसका वजन भी 5000 टन होता है इसलिए इन मालगाड़ियों को चलाने में न सिर्फ इंजन पर जोर पड़ता है बल्कि ड्राइवर भी काफी तनाव में होते हैं। उन्हें लगता है कि कहीं कपलिंग न टूट जाए या कोई डिब्बा पीछे न छूट जाए। लेकिन आक्सीजन एक्सप्रेस में पांच से सात डिब्बे ही होते हैं और हर डिब्बे में यदि मोबाइल कंटेनर है तो उसका कुल वजन 32 टन से ज्यादा नहीं होता। ऐसे में 10 डिब्बे भी हैं तो कुल वजन 320 टन से अधिक नहीं रहता। ऐसे में ड्राइवर को लगता है कि वे लाइट इंजन चला रहे हैं।

19 साल में पहली बार आक्सीजन एक्सप्रेस चलाया

टाटानगर रेलवे स्टेशन पर प्रतिनियुक्त ड्राइवर सीजी दास बताते हैं कि उन्हें 19 वर्षो से मेल व एक्सप्रेस ट्रेन चलाने का अनुभव हैं। वे डीजल व इलेक्ट्रिकल इंजन वाले दोनो तरह के इंजन चलाने का अनुभव रखते हैं। बकौल दास, तीन मई को जब मुझे पता चला कि मेरे इसी अनुभव के लिए मुझे आक्सीजन एक्सप्रेस चलाने का मौका मिल रहा है तो मैंने इसे हाथ से जाने नहीं दिया। अपने कैरियर में पहली बार मैंने इस तरह का ट्रेन चलाया। जिसमें सिंग्नल के लिए हमें कहीं भी रूकना नहीं पड़ा। हालांकि मैं कई बार ट्रेन लेकर मुरी गया हूं जिसमें हमारी ट्रेन की स्पीड 110 से 130 किलोमीटर प्रति घंटा रहती है और हम एक घंटा 45 मिनट पर पहुंच जाते हैं। लेकिन आक्सीजन एक्सप्रेस के लिए 60 किलोमीटर प्रति घंटा की स्पीड निर्धारित है इसलिए हमें मुरी पहुंचने में लगभग तीन घंटे 35 मिनट लगे और वहां हमने दूसरे ड्राइवर को ट्रेन हैंडओवर कर दिया।

हर तकनीकि समस्या के लिए मौजूद थे ट्रेन में विशेषज्ञ

सात मई को आक्सीजन एक्सप्रेस चलाने वाले ड्राइवर ईए खान बताते हैं कि इस ट्रेन के पीछे स्लीपर बोगी भी थी। इसमें मैकेनिकल डिपार्टमेंट, कैरेेज एंड वैगन, ओवर हेड वायर टेक्नीशियन सहित सभी तरह के विशेषज्ञों की टीम थी ताकि रास्ते में किसी तरह की तकनीकि समस्या आए तो ठीक किया जा सके। इसके अलावा इंजन में चीफ लोको इंस्पेक्टर एलएम मोहांती भी उपस्थित थे ताकि कहीं पर कोई आर्डर देना हो तो ड्राइवर को मेमो के लिए इंतजार न करना पड़े। अधिकारी साथ होंगे तो निर्णय को तुरंत अमल में लाया जा सके। ऐसी व्यवस्था तो राजधानी जैसी ट्रेनों में भी नहीं होती।

ट्रेन की सुरक्षा के लिए आरपीएफ भी तैनात

आक्सीजन एक्सप्रेस की सुरक्षा के लिए आरपीएफ की एक टीम भी साथ जाती है। जो न सिर्फ ट्रेन पर नजर रखती है बल्कि बीच-बीच में आक्सीजन का प्रेशर चेक करने वाली टीम के सदस्यों को भी सुरक्षा प्रदान करती है। दक्षिण पूर्व रेलवे ने आक्सीजन को जरूरतमंद राज्यों तक पहुंचाने के लिए ग्रीन कॉरिडोर बनाया है ताकि किसी तरह की परेशानी न हो। अब तक हमने 32 आक्सीजन ट्रेन के माध्यम से 1654 टन लिक्विड मेडिकल आक्सीजन की सप्लाई विभिन्न राज्यों में कर चुके हैं।

      -संजय घोष, प्रवक्ता, दक्षिण पूर्व रेलवे इंजन में किसी भी समस्या के त्वरित समाधान के लिए रहते है चीफ लोको इंस्पेक्टर ट्रेन में न हो तकनीकि खराबी इसलिए हमेशा मौजूद रहते हैं मैकेनिकल विभाग की टीम 60 किलोमीटर प्रति घंटे की स्पीड से चलती है ट्रेन ग्रीन कॉरिडोर से गुजरती है ट्रेन, सिग्नल के लिए नहीं करना पड़ता है इंतजार

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