तीसरी बार हुआ क्वारंटाइन, घर अब भी 60 किमी दूर
आसनसोल से चाईबासा चले युवक को 190 किमी पहुंचने में लगे 30 दिन मिन्नतें काम न आईं जमशेदपुर में तीसरी बार क्वारंटाइन हो मियाद पूरी होने का कर रहा इंतजार।
जमशेदपुर (वीरेंद्र ओझा)। कोरोना संकट के दौर में देशभर के हजारों-लाखों मजदूर पैदल सैकड़ों किमी की दूरी नाप गए। चाईबासा निवासी एक आदिवासी युवक भी आसनसोल से यही सोच कर पैदल चला लेकिन अपने घर की 250 किमी दूरी तय नापने में उसे 32 दिन लग गए।
अभी भी वह अपने घर से 60 किमी दूर है, जमशेदपुर के एक क्वारंटाइन सेंटर में युवक उस मनहूस घड़ी को कोस रहा है जब उसने पैदल अपने घर चलने का फैसला किया। जमशेदपुर से पहले वह आसनसोल और धनबाद में 14-14 दिन क्वारंटाइन सेंटर में गुजार चुका है। यह उसका तीसरा क्वारंटाइन है।
आसनसोल की आइसक्रीम फैक्ट्री में काम करता था युवक
यह आदिवासी युवक आसनसोल की एक आइसक्रीम फैक्ट्री में काम करता था। 25 अप्रैल को पश्चिमी सिंहभूम के चाईबासा स्थित घर जाने के लिए पैदल निकला। सोचा था कि चार-पांच दिन में घर पहुंच जाऊंगा। दूरी भी कितनी है, करीब 250 किलोमीटर। लेकिन आसनसोल की सीमा पर उसे 14 दिनों के लिए क्वारंटाइन कर दिया गया। रेड जोन आसनसोल से निकला तो सीमावर्ती धनबाद पहुंचा।
आसनसोल क्वारंटाइन सेंटर से निकलने के बाद धनबाद में किया गया क्वारंटाइन
यहां भी 14 दिन क्वारंटाइन में बिताने पड़े। वहां से छूटने के बाद फिर हिम्मत जुटाई और चल पड़ा। दो दिन पैदल चलने के बाद जमशेदपुर की बाहरी सीमा तक तो पहुंच गया लेकिन, मंगलवार शाम को पारडीह चेकपोस्ट पर पकड़ लिया गया।
जमशेदपुर पहुंचने के बाद तीसरी बार पहुंचा क्वारंटाइन सेंटर
चेकपोस्ट पर तैनात अधिकारियों ने उसे जमशेदपुर स्थित पारडीह के क्वारंटाइन सेंटर में 14 दिन के लिए रख दिया। वह काफी गिड़गिड़ाया। अपनी पीड़ा बताई। फिर भी उसकी किसी ने नहीं सुनी। अधिकारियों ने कहा 'पूरा बंगाल रेड जोन है... हमें मत समझाओ.. कोरोना का वायरस 28 दिन तक पनप सकता है..., रास्ते में किसी से मिले होगे तो..., ना बाबा ना...हम कोई रिस्क नहीं ले सकते।
अब वह युवक कह रहा था कि कहां मैं चार दिन में पैदल चाईबासा पहुंच जाता। अब 42 दिन रास्ते में ही बिताने पड़ रहे हैं। चाईबासा जाऊंगा तो वहां भी मुझे 14 दिन सरकारी क्वारंटाइन में रखा जाएगा। चार दिन पैदल के भी जोड़ लूं तो 60 दिन यानि पूरे दो महीने बाद अपने घर-परिवार का मुंह देख सकूंगा। घर में मां-पिताजी, छोटा भाई, पत्नी और एक दो साल का बेटा है। उन पर क्या बीत रही होगी। हालांकि फोन से बात हो रही है, लेकिन ऐसा भी होता है क्या। अब दोबारा किसी दूसरे राज्य में नहीं जाऊंगा। झारखंड में ही काम मिला तो ठीक, वरना सब्जी-भाजी बेचकर गुजारा कर लूंगा।