Health Tips: बच्चों को कराएं स्वादिष्ट व पौष्टिक भोजन, ये रहे आयुर्वेद व प्राकृतिक चिकित्सा विशेषज्ञ सीमा पांडेय के टिप्स

आवश्यक है कि बच्चों का भोजन स्वादिष्ट होने के साथ-साथ पौष्टिक भी होना चाहिए। इसके लिए बच्चों के भोजन में अन्न और शाक के साथ ही दूध-दही और फलों का भी समावेश होना चाहिए। स्वास्थ्य के लिए हानिकारक वस्तुओं से बच्चों को बचाना ही उनके हित में है।

By Rakesh RanjanEdited By: Publish:Mon, 19 Jul 2021 09:37 AM (IST) Updated:Mon, 19 Jul 2021 11:41 AM (IST)
Health Tips: बच्चों को कराएं स्वादिष्ट व पौष्टिक भोजन, ये रहे आयुर्वेद व प्राकृतिक चिकित्सा विशेषज्ञ सीमा पांडेय के टिप्स
आयुर्वेद व प्राकृतिक चिकित्सा विशेषज्ञ सीमा पांडेय के टिप्स।

जमशेदपुर, जासं। आजकल की इस भागदौड़ वाली जिंदगी में माता-पिता और संतान में दूरी बढ़ती जाती है। बच्चे थोड़ा बड़े हुए नहीं कि माता-पिता को दुनिया का सबसे पिछड़ा प्राणी मानने लगते हैं। इसमें आज की पीढ़ी का माहौल बहुत हद तक जिम्मेदार है, लेकिन माता-पिता का भी संतान के प्रति कुछ कर्तव्य है। यदि माता-पिता अपने संतान के प्रति कर्तव्य से सचेत रहेंगे, तो उन्हें अपने बच्चों से भविष्य में ज्यादा तकलीफ नहीं होगी। आइए स्वास्थ्य, शिक्षा व संस्कार के बारे में बता रही हैं, आयुर्वेद व प्राकृतिक चिकित्सा विशेषज्ञ सीमा पांडेय।

स्वास्थ्य

माता-पिता का पहला कर्तव्य है अपने बच्चों को स्वस्थ रखना। ऐसी आदतें डालना, जिनसे वे हमेशा स्वस्थ बने रहें। इसके लिए यह आवश्यक है कि बच्चों का भोजन स्वादिष्ट होने के साथ-साथ पौष्टिक भी होना चाहिए। इसके लिए बच्चों के भोजन में अन्न और शाक के साथ ही दूध-दही और फलों का भी समावेश होना चाहिए। स्वास्थ्य के लिए हानिकारक वस्तुओं से बच्चों को बचाना ही उनके हित में है। इसलिए जहां तक संभव हो, अपने घर का बना हुआ सात्विक भोजन ही बच्चों को देना चाहिए। दुर्भाग्य से अधिकांश माता-पिता इस नियम को बहुत हल्के से लेते हैं और स्वाद या चलन के वशीभूत होकर अपने बच्चों को ऐसी वस्तुएं खाने-पीने को देते हैं, जो अंततः बच्चों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक सिद्ध होती हैं। मैदा की बनी हुई वस्तुएं, सफेद चीनी की बनी मिठाई, अंडा, मांस, मछली, कोल्ड ड्रिंक, चाय-काॅफी आदि कुछ ऐसी ही वस्तुएं हैं। अधिकांश माता-पिता में यह भ्रम फैला हुआ है कि ये वस्तुएं पौष्टिक होती हैं। परन्तु यह सत्य नहीं है। अंडे और मांस से भी अधिक पौष्टिक वस्तुएं शाकाहार में उपलब्ध हैं। गलत आहार के कारण बच्चे तरह-तरह के रोगों से पीड़ित हो जाते हैं और उनका पूरी तरह विकास नहीं होता। इसके लिए उनके माता-पिता ही दोषी हैं। बच्चे के रुग्ण हो जाने पर उनका उपचार भी ऐसी पद्धति से कराना चाहिए, जिसमें कम से कम दवा खानी पड़ें और शीघ्र स्वस्थ हों। ऐसी पद्धति केवल प्राकृतिक चिकित्सा और आयुर्वेद ही हो सकती है।

शिक्षा

माता-पिता का दूसरा कर्तव्य होता है अपनी संतानों को उचित शिक्षा देना। अधिकांश माता-पिता अपने इस कर्तव्य पर पूरा ध्यान देते हैं और अपने बच्चों को अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार अच्छे से अच्छे या महंगे से महंगे विद्यालय में पढ़ाने का प्रयास करते हैं। लेकिन इतना करना ही पर्याप्त नहीं है। शिक्षा केवल औपचारिक ही नहीं, अनौपचारिक भी होनी चाहिए। उनको ऐसे कला-कौशल सिखाने चाहिए, जिससे वे औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद केवल नौकरियों के सहारे न रहें, बल्कि अपने कौशल का उपयोग करके पर्याप्त आय कर सकें।

संस्कार

संस्कारों का महत्व किसी भी तरह शिक्षा से कम नहीं है। शिक्षा तो बच्चे विद्यालयों और महाविद्यालयों में जाकर प्राप्त कर सकते हैं, परन्तु संस्कार उनको अपने घर-परिवार में ही दिए जाते हैं। संस्कारों में उनको अपने धर्म की पर्याप्त जानकारी होनी चाहिए और समाज के प्रति अपने कर्तव्यों का भी ज्ञान होना चाहिए। परिवार के अन्य सदस्यों के प्रति कैसा व्यवहार करना चाहिए और आवश्यकता पड़ने पर परिवार के प्रति किस प्रकार अपना दायित्व निभाना चाहिए यह संस्कार की सबसे पहली सीढ़ी है। इसके बाद अपने समाज और देश के प्रति कर्तव्य भी बच्चों को सिखाना चाहिए। देश के अच्छे नागरिक बनने के लिए उनको अपने अधिकारों के साथ ही कर्तव्यों का भी ज्ञान होना चाहिए। ये संस्कार वे समाज में घुल-मिलकर और सामाजिक कार्यक्रमों में भाग लेकर प्राप्त कर सकते हैं।

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