Pitru Paksha and Shradh Vidhi : पितृपक्ष में श्राद्ध करना संभव ना हो तो गाय को खिलाएं चारा-दाना, जानिए कैसे चुका सकते पितृ ऋण

Pitru Paksha and Shradh Vidhi पितृपक्ष में श्राद्ध करना संभव ना हो तो गाय को चारा-दाना खिलाएं। इससे भी पितृ श्रृण से मुक्ति मिलेगी। जानिए कैसे चुका सकते पितृ ऋण। बता रही सनातन संस्था व हिंदू जनजागृति समिति। ये रही पूरी जानकारी।

By Rakesh RanjanEdited By: Publish:Wed, 22 Sep 2021 03:53 PM (IST) Updated:Wed, 22 Sep 2021 03:53 PM (IST)
Pitru Paksha and Shradh Vidhi : पितृपक्ष में श्राद्ध करना संभव ना हो तो गाय को खिलाएं चारा-दाना, जानिए कैसे चुका सकते पितृ ऋण
श्राद्ध के विषय में किए गए किसी भी दुष्प्रचार में न फंसें।

जमशेदपुर, जासं। हिंदू धर्म में ईश्‍वर प्राप्ति के लिए देव ऋण, ऋषि ऋण, पितृ ऋण और समाज ऋण बताए गए हैं। इनमें से पितृ ऋण चुकाने के लिए पितरों की मुक्ति के लिए प्रयास करना आवश्यक है। पितरों की मुक्ति के लिए श्राद्ध करना महत्वपूर्ण है। हिंदू जनजागृति समिति के जमशेदपुर से जुड़े सुदामा शर्मा ने बताया कि इस बारे में समिति के धर्मप्रसारक संत नीलेश सिंगबाळ ने बताया है।

उन्होंने कहा है कि जिन्हें संभव है, वे पितृपक्ष में पुरोहितों को बुलाकर श्राद्ध विधि करें। परंतु कोरोना के कारण पुरोहित अथवा श्राद्ध सामग्री के अभाव में जिन लोगों के लिए श्राद्ध करना संभव न हो, वे आपद्धर्म के रूप में संकल्पपूर्वक आमश्राद्ध, हिरण्यश्राद्ध, गोग्रास (गाय को चारा-दाना) अर्पण करें।

नित्य करें एक-दो घंटे करें नामजप

इसके साथ ही पूूर्वजों को आगे की गति प्राप्त होने हेतु और अतृप्त पूर्वजों से कष्ट न हो, इसलिए नियमित रूप से साधना करें। श्राद्ध विधि के साथ ही पितृ पक्ष में अधिक से अधिक समय या प्रतिदिन कम से कम एक से दो घंटे ‘श्री गुरुदेव दत्त’ नामजप सभी को करना चाहिए।

सबसे पहले मनु ने किया था श्राद्ध

नीलेश सिंगबाळ ने कहा कि हिंदुआें में धर्मशिक्षा का अभाव, पश्‍चिमी अंधानुकरण और हिंदू धर्म को तुच्छ मानने की प्रथा के कारण अनेक बार श्राद्ध विधि की अनदेखी की जाती है। इसके बावजूद आज भी अनेक पश्‍चिमी देशों के हजारों लोग भारत के तीर्थक्षेत्रों में आकर पूर्वजों को आगे की गति प्राप्त होने के लिए श्रद्धा से श्राद्ध विधि करते हैं। प्रथम श्राद्ध विधि ‘मनु’ ने की थी। ‘राजा भगीरथ’ ने पूर्वजों की मुक्ति हेतु कठोर तपस्या की थी। त्रेतायुग में प्रभु रामचंद्र के काल से लेकर छत्रपति शिवाजी महाराज के काल तक श्राद्धविधि का उल्लेख प्राप्त होता है। इसलिए तथाकथित आधुनिकतावादियों द्वारा श्राद्ध के विषय में किए गए किसी भी दुष्प्रचार में न फंसें। कोरोना महामारी के काल में अपनी क्षमतानुसार पितृऋण चुकाने के लिए श्रद्धापूर्वक श्राद्ध विधि करें।

श्राद्ध के संबंध में यह भी फैलाया जाता भ्रम

नीलेश सिंगबाळ ने बताया कि श्राद्ध न करने पर हमारे पूर्वज अतृप्त रहने से दोष निर्माण होता है। श्राद्ध विधि के कारण पूर्वजों को मर्त्य लोक से आगे जाने के लिए ऊर्जा प्राप्त होती है। मृत्यु के उपरांत भी सद्गति के लिए श्राद्धविधि बतानेवाला हिंदू धर्म एकमात्र है। वर्तमान में समाज में धर्म शिक्षा के अभाव में श्राद्ध करने के स्थान पर सामाजिक संस्था अथवा अनाथालयों को दान दें, ऐसी भ्रामक संकल्पना का प्रचार किया जाता है। ऐसा करना अनुचित है। धार्मिक कृति धर्मशास्त्रानुसार करना ही आवश्यक है। तदनुसार कृति करने पर ही पितृऋण से मुक्त हो सकते हैं।

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