Ayurveda For Wildlife: अब वन्यजीवों के लिए भी आयुर्वेद बनेगा रामबाण, हथिनी चंपा के इलाज ने कायम कराया भरोसा

दलमा अभयारण्य के प्रवेशद्वार पर हथिनी चंपा ही सैलानियों का स्वागत करती थी। उसकी उम्र करीब 60 वर्ष हो गई तो उसे भी हड्डी रोग ने सताना शुरू किया। करीब दो माह से खड़ी नहीं हो पा रही थी। आयुर्वेद पद्धति के इलाज से वह ठीक हाे गयी है।

By Rakesh RanjanEdited By: Publish:Wed, 20 Oct 2021 04:18 PM (IST) Updated:Wed, 20 Oct 2021 04:18 PM (IST)
Ayurveda For Wildlife: अब वन्यजीवों के लिए भी आयुर्वेद बनेगा रामबाण, हथिनी चंपा के इलाज ने कायम कराया भरोसा
दलमा गज अभयारण्य में हथिनी चंपा का इलाज करते डाॅक्टर। जागरण

जमशेदपुर, जासं। अब तक मनुष्य ही निरोग रहने या जटिल बीमारियों से मुक्ति पाने के लिए आयुर्वेद का सहारा ले रहे थे, अब यह वन्यजीवों के लिए भी उपयोग किया जाएगा। यह भरोसा वन विभाग के अधिकारियों को दलमा की हथिनी चंपा के इलाज से जागा है।  दलमा गज अभयारण्य के प्रवेशद्वार पर हथिनी चंपा ही सैलानियों का स्वागत करती थी। उसकी उम्र करीब 60 वर्ष हो गई तो उसे भी हड्डी रोग ने सताना शुरू किया। करीब दो माह से खड़ी नहीं हो पा रही थी, जिससे वन विभाग के अधिकारी चिंतित हो गए।

उसे चंगा करने के लिए विभाग ने डाक्टरों की पूरी टीम लगा दी थी। इसमें ओडिशा स्थित नंदनकानन चिड़ियाघर के विश्व प्रसिद्ध चिकित्सक प्रो. इंद्रमणि दास के अलावा टाटा स्टील जूलोजिकल पार्क के पशु चिकित्सक डा. मानिक पालित, डा. राजेश कुमार सिंह व डा. सुरेंद्र प्रसाद भी शामिल थे। इन चिकित्सकों ने चंपा को चंगा करने का अथक प्रयास किया, लेकिन कामयाब नहीं हो पा रहे थे। हालांकि सबने जांच में यही पाया कि हथिनी आर्थराइटिस से पीड़ित है। लिहाजा, इसी बीमारी की ऐलोपैथ दवा चल रही थी। बेहतर से बेहतर दवाओं का उपयोग किया, लेकिन इसका असर नहीं हो रहा था। इसकी वजह से इन चिकित्सकों के साथ-साथ वन विभाग के अधिकारी भी निराश हो चले थे।

वैद्य महेश्वर सिंह बने उम्मीद की किरण

हथिनी की बीमारी और ऐलोपैथ चिकित्सकों के हार मान लेने की खबर पास के ही खोखरो गांव में रहने वाले वैद्य महेश्वर सिंह तक पहुंची। उन्हें इस बीमारी का कारगर इलाज मालूम था। वे पहले भी पशुओं पर आजमा चुके थे। महेश्वर सिंह दलमा पहुंचे और वन विभाग के अधिकारियों से बात की। ऐलोपैथ चिकित्सकों को भी भरोसा दिलाया। सबकी सहमति से वैद्य ने बूढ़ी हथिनी को सलई और गिलोय की डंठल खिलाना शुरू किया, तो चमत्कारिक परिवर्तन दिखने लगा।

इलाज को मिली अघोषित मान्यता

आयुर्वेद पद्धति के इस इलाज से सभी प्रभावित हुए। दो माह बाद हथिनी के पैरों में हरकत शुरू हुई। पहले वह खड़ी हुई, तो धीरे-धीरे चलने भी लगी। इसके बाद तो सभी ने आयुर्वेद का लोहा मान लिया। तय हुआ कि कम से कम आर्थराइटिस और इससे संबंधित बीमारी में इस औषधि का उपयोग किया जाएगा। इस तरह आधिकारिक रूप से वन्यजीवों के लिए भी आयुर्वेद के इलाज को अघोषित रूप से ही सही, मान्यता मिल गई।

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