कोरोना काल में प्रासंगिक हो गया है निर्जला एकादशी का व्रत

आरोग्य व दीर्घायु का व्रत निर्जला एकादशी मंगलवार को पड़ रहा है। ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी व्रत का प्रारंभ सोमवार दो जून को दिन में 12.15 बजे से शुरू हो रहा है जो मंगलवार को सुबह 9.25 बजे तक रहेगा। उदया तिथि के हिसाब से यह व्रत मंगलवार को होगा जबकि इसका पारण बुधवार को सूर्योदय के बाद होगा।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 01 Jun 2020 04:16 AM (IST) Updated:Mon, 01 Jun 2020 04:16 AM (IST)
कोरोना काल में प्रासंगिक हो गया है निर्जला एकादशी का व्रत
कोरोना काल में प्रासंगिक हो गया है निर्जला एकादशी का व्रत

जासं, जमशेदपुर : आरोग्य व दीर्घायु का व्रत निर्जला एकादशी मंगलवार को पड़ रहा है। ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी व्रत का प्रारंभ सोमवार दो जून को दिन में 12.15 बजे से शुरू हो रहा है, जो मंगलवार को सुबह 9.25 बजे तक रहेगा। उदया तिथि के हिसाब से यह व्रत मंगलवार को होगा, जबकि इसका पारण बुधवार को सूर्योदय के बाद होगा।

ज्योतिषाचार्य पं. रमाशंकर तिवारी बताते हैं कि कोरोना काल में निर्जला एकादशी का व्रत प्रासंगिक हो गया है, क्योंकि यह आरोग्यव‌र्द्धक होता है। एक दिन बिना जल ग्रहण किए रहने से रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है। कोरोना में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए तमाम उपाय किए जा रहे हैं। इस व्रत को व्यासजी के कहने पर भीम ने भी किया था, इसलिए इसे भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है। यह व्रत ब्रह्मांड के पालनकर्ता भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। इस वर्ष कुल 26 एकादशी पड़ रही हैं, क्योंकि आश्विन मास में अधिमास या मलमास भी लग रहा है। धर्मशास्त्र के मुताबिक जो व्यक्ति कोई एकादशी का व्रत नहीं कर सकता, वह भी निर्जला एकादशी करके सभी एकादशी का फल प्राप्त कर सकता है।

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तरबूज-ककड़ी दान की परंपरा

निर्जला एकादशी व्रत ग्रीष्म ऋतु के आगमन का भी द्योतक है। इसी वजह से इसमें तरबूज, खीरा, ककड़ी आदि के अलावा घड़ा-सुराही दान करने की परंपरा है। इसके पीछे किसानों और इन वस्तुओं का व्यापार करने वालों को समृद्ध करने का उद्देश्य भी निहित है। गर्मी के मौसम में ये वस्तुएं मन व शरीर को शीतलता प्रदान करती हैं।

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मिट्टंी के घड़े व खजूर के पंखे करें दान

पंडित रमाशंकर तिवारी बताते हैं कि लॉकडाउन में कुम्हार से लेकर कुटीर उद्योग से जुड़े लोगों की स्थिति दयनीय हो गई है। निर्जला एकादशी में दान करने की परंपरा है। ऐसे में हमें गर्मी के दिन में सुराही, घड़े या अन्य मिट्टंी के बर्तन दान करेंगे तो कुंभकारों की मदद हो जाएगी। विशेषज्ञ कोरोना काल में फ्रिज व एयरकंडीशन का कम से कम उपयोग करने को कह रहे हैं। इससे संक्रमण का ज्यादा खतरा होता है। ऐसे में वर्तमान समय में मिट्टंी के घड़े व सुराही का उपयोग प्रासंगिक हो चला है। इस पर्व में यह आभास कराया जाता है कि अब वास्तविक ग्रीष्म ऋतु का आगमन हो चुका है। यही कारण है कि पुराने जमाने से पंखा दान में देने की परंपरा चलती आ रही है। श्रद्धालु नारियल या खजूर के पत्तों का पंखे दान में देकर कुटीर उद्योग को बढ़ावा दे सकते हैं। निर्जला एकादशी पर घरों में पौधरोपण करना भी लाभप्रद होता है।

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