Health Tips: मशीन से निकाला गया दूध कभी ना पीएं, जनिए क्या कहती हैं प्राकृतिक चिकित्सा विशेषज्ञ सीमा पांडेय
Health Tips जब-जब दूध का उच्चारण हमें सुनाई देता तब-तब हमें दूध की पवित्रता का अहसास होता है। जब तक दूध मातृत्व की भावना से जुड़ा रहेगा तब तक हम हर स्तनपायी और अन्य जीव के प्रति हिंसा और क्रूरता करने में झिझक महसूस करते रहेंगे।
जमशेदपुर, जागरण संवाददाता। दूध में जितने पौष्टिक तत्व होते हैं, वह हमें किसी अन्य खाद्य पदार्थ से भी मिल सकते हैं। फिर दूध ही क्यों.. क्यों हमें बार-बार मां का दूध याद दिलाया जाता है। हमारे पूर्वजों, ऋषि-मुनियों ने दूध को हमारे जीवन में इतना महत्व दिया। ये वाक्य क्यों कहे जाते हैं कि हमें जिस माता ने दूध पिलाकर बड़ा किया है, हम उसके पवित्र मातृत्व को सर्वदा याद रखें।
झारखंड के जमशेदपुर शहर की प्राकृतिक चिकित्सा व आयुर्वेद विशेषज्ञ सीमा पांडेय कहती हैं कि जब-जब दूध का उच्चारण हमें सुनाई देता, तब-तब हमें दूध की पवित्रता का अहसास होता है। जब तक दूध मातृत्व की भावना से जुड़ा रहेगा, तब तक हम हर स्तनपायी और अन्य जीव के प्रति हिंसा और क्रूरता करने में झिझक महसूस करते रहेंगे। क्योंकि मातृत्व हर जीव में होता है। मनुष्य से बड़ा क्रूर प्राणी धरती पर और कोई नहीं है। इसलिए समय-समय पर हमारे पूर्वजों ने हमारे जीवन में कोई ना कोई भावना जोड़ी। बात दूध की ही है तो इसमें कौन सी क्रूरता आ गई है। दूध के व्यवसायिक होने से इससे भी धीरे-धीरे क्रूरता जुड़ती जा रही है। टीके या इंजेक्शन लगाकर और मशीनों से दूध निकालना आज की सबसे बड़ी क्रूरता है, उस पशु के साथ भी और उसके बछड़े के साथ भी। पहले दूध निकालने के लिए पशु के बछड़े को दूध पिलाने के लिए छोड़ा जाता था, ताकि बछड़ा भी दूध पी ले और जो दूध हम निकालें, उसमें पशु का मातृत्व भी रहे। एक तरफ से बछड़ा दूध पीता रहता था, तो दूसरी तरफ से हम दूध निकाल लेते थे। ऐसे दूध में ही मातृत्व होता है, दूध का अर्थ ही मातृत्व है। नहीं तो वो एक पूरक आहार से अधिक कुछ भी नहीं।
अमिताभ व सचिन किस डेयरी का पीते हैं दूध
मुंबई में एक डेयरी है जहां से बॉलीवुड के शहंशाह कहे जाने वाले अमिताभ बच्चन और क्रिकेट जगत के जीवित किंवदंती सचिन तेंदुलकर के घर दूध जाता है। वह डेयरी इसलिए मशहूर है, क्योंकि उसमें दूध मशीनों से निकाला जाता है। यह मानसिकता बन गई है कि मशीन से निकला दूध शुद्ध और स्वच्छ होगा, इसलिए ये लोग वहां से दूध लेते हैं। यदि दूध देने वाले पशु के थन में संक्रमण हुआ तो मशीन को कैसे पता चलेगा। संक्रमित थन से मवाद या खून भी मशीन से दूध में जा सकता है। गांव-देहात में आज भी दूध उसी भावना और तरीकों से निकाला जाता है, जैसे हमारे पूर्वज निकालते थे। तो क्या गांव में सभी लोग बीमार रहते हैं। गांव के लोग बड़े शहरों के लोगों से हमेशा स्वस्थ रहते हैं। वो स्वस्थ ही नहीं रहते, एक दूसरे से मिल जुलकर भी रहते हैं। इसलिए इस बात पर विचार करना होगा कि क्या स्वास्थ्य और स्वच्छता के नाम पर दिन प्रतिदिन बढ़ रहे मशीनों के प्रयोग सही हैं। मशीनों से दूध निकाला जाना उस मादा पशु और उसके बच्चे के साथ क्रूरता नहीं है। बल्कि ये तो दूध खरीद कर पीने वालों के प्रति भी क्रूरता ही है क्योंकि वो दूध चाहते हैं, लेकिन उन्हें केवल एक पूरक आहार ही मिलता है। मुझे लगता है कि हमारे पूर्वज सही थे, जिन्होंने हमारे अंदर हर जीव के प्रति संवेदना रखने की भावना भरी। जो भी पढ़ें तो सोचें भी।
झारखंड के जमशेदपुर शहर की प्राकृतिक चिकित्सा व आयुर्वेद विशेषज्ञ सीमा पांडेय ।