प्रकृति जितनी ही पुरानी है प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति, सीमा पांडेय बता रही निरोग रहने के महामंत्र

प्राकृतिक चिकित्सा विज्ञान अथवा प्राकृतिक चिकित्सा प्रणाली उतनी ही पुरानी है जितनी की प्रकृति स्वयं। आयुर्वेद व प्राकृतिक चिकित्सा विशेषज्ञ सीमा पांडेय प्राकृतिक चिकित्सा का संक्षिप्त इतिहास बता रही हैं। निरोगी रहने के महामंत्र आपको भी जानने चाहिए।

By Rakesh RanjanEdited By: Publish:Thu, 22 Jul 2021 11:46 AM (IST) Updated:Thu, 22 Jul 2021 12:05 PM (IST)
प्रकृति जितनी ही पुरानी है प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति, सीमा पांडेय बता रही निरोग रहने के महामंत्र
आयुर्वेद व प्राकृतिक चिकित्सा विशेषज्ञ सीमा पांडेय।

जमशेदपुर, जासं। भले ही आज ऐलोपैथ चिकित्सा पद्धति का बोलबाला हो, लेकिन प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति भी कम पुरानी और विश्वसनीय नहीं है। इसका आधार तब से है, जब से प्रकृति का निर्माण हुआ। जमशेदपुर की आयुर्वेद व प्राकृतिक चिकित्सा विशेषज्ञ सीमा पांडेय प्राकृतिक चिकित्सा का संक्षिप्त इतिहास बता रही हैं। उनका कहना है कि प्राकृतिक चिकित्सा विज्ञान अथवा प्राकृतिक चिकित्सा प्रणाली उतनी ही पुरानी है जितनी की प्रकृति स्वयं।

इसके आधार हैं- पंचतत्व। आकाश तत्व, वायु तत्व, अग्नि तत्व, जल तत्व और पृथ्वी तत्व। इस तरह यह प्रणाली संसार में प्रचलित सभी चिकित्सा प्रणालियों में से पुरानी अथवा उसकी जननी है। वेदों में जो संसार के आदि ग्रंथ हैं, उसमें इस विज्ञान की समस्त मोटी-मोटी बातें जैसे जल चिकित्सा, उपवास चिकित्सा आदि का वर्णन पाया जाता है। वेदकाल के पुराणकाल में भी प्राकृतिक चिकित्सा प्रचलित थी। रोगों को नष्ट करने के लिए हमारे देश में मिट्टी का उपयोग प्राचीन समय से ही किया जा रहा है। प्राचीनकाल में किसी भी प्रकार की दवा, हास्पिटल आदि नहीं थे, फिर भी लोग आज की तुलना में काफी स्वस्थ और लंबी उम्र वाले होते थे। एक युग था जब लोग प्राकृतिक रूप से स्वस्थ रहते थे। वर्तमान समय की तरह ये लोग असमय में ही निर्बल नहीं होते थे। उनकी शारीरिक, मानसिक तथा आत्मिक तीनों शक्तियां शक्तिशाली बनी रहती थीं। प्राचीन समय के लोग वर्तमान समय की तरह न तो जल्दी बूढे़ होते थे, ना कम उम्र के होते थे। प्राचीनकाल के लोग अपना जीवनयापन प्राचीन चिकित्सा पद्धति की ही सहायता से किया करते थे।

निरोगी रहने के महामंत्र

मंत्र 1

भोजन व पानी के सेवन प्राकृतिक नियमानुसार करें  ‎रिफाइंड नमक, रिफाइंड तेल, रिफाइंड शक्कर (चीनी) व रिफाइंड आटा (मैदा) का सेवन न करें विकारों को पनपने न दें (काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या आदि) वेगों को न रोकें (मल, मूत्र, प्यास, जम्हाई, हंसी, अश्रु, वीर्य, अपानवायु, भूख, छींक, डकार, वमन, नींद आदि) एल्मुनियम बर्तन का उपयोग न करें (मिट्टी के सर्वोत्तम) ‎मोटे अनाज व छिलके वाली दालों का अत्यधिक सेवन करें भगवान में श्रद्धा व विश्वास रखें

मंत्र 2 : पथ्य भोजन ही करें ( जंक फूड न खाएं) ‎भोजन को पचने दें (भोजन करते समय पानी न पीयें एक या दो घूंट भोजन के बाद जरूर पीएं व डेढ़ घंटे बाद पानी जरूर पीएं) सुबह उठते ही दो से तीन गिलास गुनगुने पानी का सेवन कर शौच क्रिया को जाएं फ्रिज का ठंडा पानी या बर्फ के पानी का सेवन न करें पानी हमेशा बैठकर घूंट-घूंट कर पीएं बार-बार भोजन न करें, अर्थात एक भोजन पूर्णतः पचने के बाद ही दूसरा भोजन करें सबसे अंत में सीमा पांडेय स्वदेशी वस्तुओं के प्रबल समर्थक व प्रणेता स्व. राजीव दीक्षित के  प्रवचनों-उपदेशों को सुनने की सलाह देती हैं। वह कहती हैं कि मैं भारत को भारतीयता के मान्यता के आधार पर फिर से खड़ा करना चाहती हूं। उसी काम में लगी हुई हूं।

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