इतिहास के झरोखे से : मिसेज केएमपीएम स्कूल जो था पहले कोर्ट, पहली बार 1923 में छह बच्चों ने दी थी परीक्षा
बिष्टुपुर में स्थित मिसेज केएमपीएम स्कूल जिसका पूरा नाम मिसेज कियोके मोनरो पेरिन मेमोरियल स्कूल है। इस स्कूल ने अपनी स्थापना के 106 साल पूरे किए। पांच एकड़ में फैले बेहद आकर्षक लाल रंग के ईटों से बने इस स्कूल की स्थापना के पीछे एक दिलचस्प कहानी है।
जमशेदपुर, जासं। झारखंड में लौहनगरी यानी जमशेदपुर की अलग पहचान है। इसका इतिहास काफी रोचक है। बिष्टुपुर में स्थित मिसेज केएमपीएम स्कूल, जिसका पूरा नाम मिसेज कियोके मोनरो पेरिन मेमोरियल स्कूल है। इस स्कूल ने अपनी स्थापना के 106 साल पूरे किए।
पांच एकड़ में फैले बेहद आकर्षक लाल रंग की ईंटों से बने इस स्कूल की स्थापना के पीछे एक दिलचस्प कहानी है। बिष्टुपुर में पहले कोर्ट भवन था जिसे 21 जून 1915 में यहां के शासक चार्ल्स पेज की पत्नी कियोके मोनरो पेरिन का नाम दिया था जिन्हें जमशेदपुर में बुनियादी शिक्षा के विकास में गहरी दिलचस्पी थी। जमशेदपुर शहर का यह पहला स्कूल था जिसे बंद हो चुके कोर्ट के भवन में शुरू किया गया। शुरुआती दौर में यहां हिंदी और बांग्ला, दो भाषाओं में पढ़ाई शुरू की गई। तीन साल के बाद यहां छात्राओं के लिए प्राइमरी स्कूल सहित मिडिल व हाई स्कूल भी शुरू किया गया। वर्ष 1923 में पहली बार छह बच्चों को स्कूल लीविंग सर्टिफिकेट की परीक्षा में बैठे जबकि वर्ष 1936 में पहली बार परीक्षार्थियों को मुद्रित प्रश्न पत्र दिए गए। हालांकि 1942 को हुए पहले विश्वयुद्ध के समय इस स्कूल को बिष्टुपुर साउथ पार्क में शिफ्ट कर यहां मिलिटरी हॉस्पिटल बना दिया गया। लेकिन वर्ष 1946 में स्कूल वापस अपने पुराने भवन में शिफ्ट हुआ।
स्कूल ने देखे कई परिवर्तन
विगत वर्षों में स्कूल में कई परिवर्तन देखे। वर्तमान में इसे जुस्को एजुकेशन मिशन फाउंडेशन की एक इकाई के रूप में मिसेज केएमपीएम वोकेशनल कॉलेज के नाम से जाना जाता है। यह फाउंडेशन एक ट्रस्ट है जिसे जमशेदपुर यूटिलिटीज एंड सर्विसेज कंपनी (पूर्व में जुस्को) वर्ष 2008 से संचालित कर रही है। इस कॉलेज को कोल्हान यूनिवर्सिटी, चाईबासा से मान्यता प्राप्त है। इस कॉलेज में बीबीए, बीसीए, बीएससी (आइटी), बीएससी (इंवायरमेंट एंड वाटर मैनेजमेंट), बीएससी (गणित) और बीएससी (रसायन) की पढ़ाई होती है।