Bhaag Milkha Bhaag, लेकिन कहां; आप तो जमशेदपुर के दिल में हो

मिल्खा सिंह ने कहा था कड़ी मेहनत अनुशासन और समर्पण के बिना इस दुनिया में कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता है। मुझे अपने प्रशिक्षण के दौरान खून की उल्टी होती थी। मैं आप में उसी तरह का समर्पण देखना चाहता हूं।

By Rakesh RanjanEdited By: Publish:Sat, 19 Jun 2021 02:51 PM (IST) Updated:Sat, 19 Jun 2021 02:51 PM (IST)
Bhaag Milkha Bhaag, लेकिन कहां; आप तो जमशेदपुर के दिल में हो
मिल्खा ने कहा था, दुनिया छोड़ने से पहले ओलंपिक पदक देख सकूंं।

जितेंद्र सिंह, जमशेदपुर। 19 दिसंबर 2003. गुलाबी ठंड और गुनगुनी धूप। अभी बेल्डीह गोल्फ कोर्स की मखमली घास पर ओस की बूंदे सूखी भी नहीं थी। तभी मिल्खा सिंह अपनी पत्नी निर्मला कौर के साथ मैदान पर पहुंचते हैं। आज टाटा ओपेन गोल्फ का प्रो एएम मुकाबला है। मिल्खा सिंह के पहुंचते ही कर्मचारी हरकत में आ जाते हैं। तुरंत ही टाटा स्टील के अधिकारियों को फोन किया जाता है, फ्लाइंग सिख तो मैदान पर पहुंच गए हैं। आनन-फानन में बेल्डीह गोल्फ कोर्स के सभी अधिकारी पहुंच जाते हैं। टाटा स्टील के तत्कालीन प्रबंध निदेशक बी मुत्थुरमण अगवानी करते हैं। टी-शॉट के बाद खेल शुरू हो जाता है।

मिल्खा सिंह जब मैदान पर हो और एथलेटिक्स की बात नहीं हो, ऐसा कैसे हो सकता है। मिल्खा सिंह के पुत्र जीव मिल्खा सिंह की बातें होने लगी। कैसे वह संघर्ष कर वैश्विक गोल्फ की दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाई। धीरे-धीरे बात एथलेटिक्स की होने लगी। फ्लाइंग सिख पुराने दिनों को याद करने लगे। फिर भारत में एथलेटिक्स की दुर्दशा पर बात होने लगी। टाटा स्टील फुटबॉल, तीरंदाजी की अकादमी पहले से चला रही थी। मिल्खा सिंह ने बातों-बातों में कह दिया, आपके यहां तो सिंथेटिक ट्रैक भी है। क्यों नहीं फुटबॉल व तीरंदाजी की तरह टाटा एथलेटिक्स अकादमी की स्थापना कर लेते हैं। मैं भी सहयोग करूंगा। बी मुत्थुरमण ने बिना देर किए हां कर दिया।  बाद में मिल्खा सिंह ने बताया था, हमने टाटा स्टील से अकादमी स्थापित करने को लेकर बात की है। यह अकादमी 100 मीटर, 200 मीटर व 400 मीटर के धावकों के लिए होगा। उन्होंने वादा किया था कि जब भी अकादमी की स्थापना होगी, मैं जरूर आऊंगा। टाटा स्टील हमेशा से खेल को बढ़ावा देता आया है। उसके पास फुटबॉल व तीरंदाजी के अकादमी पहले से हैं।

पांच महीने में ही धरातल पर उतर गया था टाटा एथलेटिक्स अकादमी

टाटा स्टील ने तुरंत ही एथलेटिक्स अकादमी बनाने का रोडमैप तैयार किया। पांच महीने में इसकी रूपरेखा तैयार कर धरातल पर उतार दिया गया। 30 मई 2004 को मिल्खा सिंह ने जेआरडी टाटा स्पोटर्स कांप्लेक्स में टाटा एथलेटिक्स अकादमी का उद्घाटन किया था। उस वक्त टाटा स्टील के प्रबंध निदेशक बी मुत्थुरमण, खेल विभाग के प्रमुख सतीश पिल्लै सहित कई जाने-माने लोग मौजूद थे।

अकादमी में पहली बार 12 कैडेट को किया गया था शामिल

अकादमी में पहले बैच में 12 खिलाड़ियों को शामिल किया गया था, जिसमें दलजीत सिंह, अजय कुमार यादव, ज्योति मुंडारी, आनंद कुजूर, एमिल टिर्की, अश्विनी एसी, मुन्ना सिंह, वशिष्ठ कुमार राय, ब्रजेश कुमार सिंह, ललिता देवगम, पी. त्रिनाथ और बी उमा माहेश्वरी और सिनिमोल पौलुस के नाम शामिल थे। मुख्य कोच रूस के निकोलाई सनासारेव थे, जिसे खेल विभाग के बागीचा सिंह व सतनाम सिंह सहयोग कर रहे थे।  उद्घाटन के दौरान मिल्खा सिंह ने कहा था, उन्हें उम्मीद है कि टाटा एथलेटिक्स अकादमी उनके जैसे कम से कम चार या पांच धावक तैयार करने में सक्षम होगी। देश 45 वर्षों में एक और मिल्खा पैदा करने में विफल रहा है। यदि अकादमी अधिक मिल्खा सिंह पैदा करने में सक्षम नहीं है, तो मेरी यहां यात्रा बेकार हो जाएगी।

ट्रेनिंग के दौरान होती थी खून की उल्टी

उद्घाटन सत्र के दौरान मिल्खा सिंह ने कहा था, कड़ी मेहनत, अनुशासन और समर्पण के बिना इस दुनिया में कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता है। मुझे अपने प्रशिक्षण के दौरान खून की उल्टी होती थी। मैं आप में उसी तरह का समर्पण देखना चाहता हूं।

मिल्खा ने कहा था, दुनिया छोड़ने से पहले ओलंपिक पदक देख सकूं

मिल्खा सिंह ने टाटा तीरंदाजी अकादमी व टाटा फुटबॉल अकादमी के कैडेट से बातचीत करते हुए कहा था कि मेरी अंतिम चाहत है कि दुनिया छोड़ने से पहले मैं किसी भारतीय को वह पदक लेते देख सकूं, जो रोम ओलंपिक में मेरे हाथों से गिर गया था। लेकिन दुर्भाग्य, मिल्खा सिंह का यह सपना सपना ही रह गया।  बच्चों से बात करते हुए उन्होंने कहा था, हमारे देश के पांच धावक ऐसे रहे हैं, जो ओलंपिक में पदक पाने से चूक गए। इसमें टाटा स्टील की पीटी ऊषा 1984 में, राम सिंह 1964 में, रंधावा 1964 में तथा खुद मिल्खा सिंह 1960 में पदक नहीं ले पाए थे। उन्होंने बच्चों को संबोधित करते हुए कहा था, मैं चाहता हूं कि मेरी दुनिया छोड़ने से पहले कोई नौजवान ओलंपिक पदक हासिल कर सके।

स्पोटर्स टीचर को पता नहीं होता, खिलाड़ी का क्या है रिकॉर्ड

उन्होंने कहा था, हमारे देश में नौजवान मुक्केबाजी, बैडमिंटन, टेनिस, तीरंदाजी, निशानेबाजी में बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं, लेकिन जो मदर ऑफ ऑल गेम है, उसमें ही फिसड्डी है। अगर हमें एथलेटिक्स में देश को पदक दिलाना है तो इसके लिए स्कूली स्तर पर तैयारी शुरू कर देनी चाहिए। आजकल हर स्कूल में वार्षिक खेल समारोह आयोजित करने का फैशन है। लेकिन आप किसी भी स्पोर्ट्स टीचर से पूछ लीजिए कि सीनियर व जूनियर वर्ग में फलां खिलाड़ी का 100 मीटर का क्या टाइमिंग है, कोई नहीं बता पाएगा। अगर हमें एथलेटिक्स में पदक हासिल करना है तो स्कूली स्तर पर ही रिकार्ड को याद रखना होगा।

आखिर ओलंपिक में क्यों पिछड़ जाते हैं हम

आखिर हम ओलंपिक जैसे खेलों में क्यों पिछड़ जाते हैं। खिलाड़ी तो मेहनती है, लेकिन देश में एथलेटिक्स अकादमी की कमी है। कम से कम हर राज्य में एक एथलेटिक्स अकादमी होनी चाहिए। हमारे देश में प्रशिक्षकों की कमी नहीं है। साई से 50 हजार से अधिक प्रशिक्षक निकल चुके हैं। इन्हें आप अनुबंध पर रख लीजिए। अगर प्रदर्शन नहीं करते हैं तो फिर दूसरे को मौका दीजिए।

टाटा एथलेटिक्स अकादमी ने दिए हैं कई धावक

टाटा एथलेटिक्स अकादमी असमय ही काल के गाल में समा गया। अंतरराष्ट्रीय धावक सिनीमोल पौलुस से लेकर द्युति चंद टाटा एथलेटिक्स अकादमी की ही देन है। सिनीमोल ने बाद में बीजिंग ओलंपिक में भी भाग लिया, जबकि द्युति चंद ने भी अंतरराष्ट्रीय ट्रैक पर टशन दिखा चुकी है। सतनाम सिंह अकादमी के जबतक कोच थे, खिलाड़ियों पर मेहनत की। लेकिन पहला बैच निकलते ही यह अकादमी गुमनामी की खाई में खो गया। प्रशिक्षुओं के लिए अलग से हॉस्टल खोलने का वादा किया गया था। अब ना तो एकेडमी है और ना ही प्रशिक्षक। बस यूं समझिए, इतिहास में सिमट कर रह गया देश को धुरंधर एथलीट देने का सपना और मिल्खा सिंह की तरह इस अकादमी का भी असमय मौत हो गया।

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