एमजीएम के आइसीयू आने से अच्छा है बाहर ही मर जाना : प्रधान सचिव

एमजीएम अस्पताल की व्यवस्था से वह खासे नाराज दिखें। आइसीयू के मुख्य गेट पर लिखकर टांगा हुआ है कि एसी खराब और इको भी नहीं हो रहा है। इसे देखकर सचिव भड़क गए।

By Edited By: Publish:Fri, 14 Dec 2018 07:00 AM (IST) Updated:Fri, 14 Dec 2018 07:00 AM (IST)
एमजीएम के आइसीयू आने से अच्छा है बाहर ही मर जाना : प्रधान सचिव
एमजीएम के आइसीयू आने से अच्छा है बाहर ही मर जाना : प्रधान सचिव

जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : शर्म कीजिए, ये महात्मा गांधी मेमोरियल (एमजीएम) मेडिकल कॉलेज अस्पताल की आइसीयू है? यहां पर न तो वेटिंलेटर है, न एयर कंडीशन (एसी), डॉक्टर, नर्स, दवा सहित अन्य उपकरण भी नहीं है। यहां आने से तो अच्छा है बाहर में मर ही जाना। उक्त बातें गुरुवार को स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव डॉ. नीतिन मदन कुलकर्णी ने कहीं।

एमजीएम अस्पताल की व्यवस्था से वह खासे नाराज दिखें। आइसीयू के मुख्य गेट पर लिखकर टांगा हुआ है कि एसी खराब और इको भी नहीं हो रहा है। इसे देखकर सचिव भड़क गए। सचिव ने कहा कि इतने दिन से खराब पड़े एसी आपलोग ठीक नहीं करा सकते, अस्पताल क्या चलाएंगे? इमरजेंसी विभाग में बिना दस्ताना, टोपी के पारा मेडिकल स्टाफ को देख कहा कि यहां मजाक चल रहा है या अस्पताल? जिसको देखो अपने मर्जी से काम कर रहा है। इमरजेंसी में न तो पूरी दवा है और न ही ऑक्सीजन। अभी अगर कोई दुर्घटना हो जाए और दस मरीज एक साथ इमरजेंसी में पहुंच जाए तो उसका क्या होगा?

 दिनभर पड़ा रहा मरीज, सचिव ने करायी ड्रेसिंग

सचिव जब हड्डी रोग विभाग पहुंचे तो स्थिति अजीबों-गरीब उत्पन्न हो गई। शिकायतें सुनाने के लिए मरीजों की भीड़ उमड़ गई। किसी को तकिया नहीं मिल रहा था तो कोई इलाज के बिना तड़प रहा था। एक मरीज का ड्रेसिंग नहीं हुआ था। उसके जख्म पर कपड़ा बांधा हुआ था। इसे देखकर सचिव भड़क गए और तत्काल ड्रेसिंग करने का निर्देश दिया। बेड पर चादर भी गंदे थे। वहीं मरीजों की बढ़ती शिकायत को देखते हुए उन्होंने विभागाध्यक्ष डॉक्टर व नर्स इंचार्ज को कई बार बुलाया लेकिन वे लोग उपस्थित नहीं हुए। एक डॉक्टर ने जवाब दिया कि वे लोग निजी काम से अस्पताल में मौजूद नहीं है। डॉक्टरों के अनुपस्थित रहने पर उन्होंने कहा कि मुझे कार्रवाई के लिए बाध्य मत कीजिए।

सफाई देखकर सचिव ने कहा-यहीं टांग दूंगा

एमजीएम की सफाई देखकर सचिव काफी नाराज दिखे। व्यवस्था देखने वाली एजेंसी श्रीराम इंटरप्राइजेज के सुपरवाइजर से गंदगी की वजह पूछा। वह सफाई देता उससे पहले सचिव कहा तुम्हें यहीं टांग दूंगा। वहीं उपाधीक्षक से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि सर वह सुनता ही नहीं है। सचिव ने कहा कि बात नहीं सुनता है तो आपने क्या कार्रवाई किया। अगर आप कैपेबल नहीं है तो छोड़ दीजिए। डीसी से रिपोर्ट मिल गई है। यहां क्या खेल चल रहा है। क्रिमिनल केस होगा तो मुझे दोष मत दीजिएगा।

एजेंसी मालिक ने कहा-तो काम छोड़ चले गए

कर्मचारी एजेंसी मालिक राजीव कुमार को सचिव ने बुलाया और फटकार लगायी। इसपर राजीव कुमार ने कहा कि उनका दुर्घटना हो गया था। तीन माह तह अस्पताल में भर्ती रहे। वहीं अस्पताल से 18 महीने से बिल का भुगतान नहीं हुआ। इस दौरान कर्मचारियों को समय पर वेतन नहीं मिलने से वे काम छोड़कर चले गए। इसपर सचिव ने कहा जो गलती किए उसे इसी जन्म में भुगतना पड़ेगा। सचिव ने कहा कि जो बिक बकाया है वह भी अब नहीं मिलेगा।

 मुझे हाजिरी के बारे में पूछना पड़ रहा है?

सचिव ने कहा कि बहुत दुख की बात है कि मुझे हाजिरी के बारे में पूछना पड़ रहा है। वार्ड में एक भी डॉक्टर नहीं थे। ओपीडी से भी गायब रहते है। ऐसा क्यों। क्या सरकार से वे लोग पैसा नहीं लेते। अगर लेते है तो मरीजों की सेवा क्यों नहीं करते। चिकित्सकों के लिए बायोमैट्रिक्स सिस्टम लगाया जा रहा है। चिकित्सक अगर ड्यूटी से गायब रहेंगे तो मरीज हो-हंगामा नहीं करेंगे तो क्या करेंगे। अस्पताल में कैंटीन की भी सुविधा नहीं है। इसे देखकर सचिव ने कहा कुछ तो अपनी जिम्मेवारी समझिए।

सचिव ने दिया दिशा-निर्देश

-आर्किटेक्ट बुलाकर अस्पताल को व्यवस्थित करें। ताकि अस्पताल लगे।

- ओपीडी में सुबह-शाम सभी डॉक्टर बैठे।

- वार्ड में डॉक्टरों की ड्यूटी सुनिश्चित हो।

- आईसीयू में खराब पड़े उपकरण को जल्द ठीक कराएं।

- अस्पताल में मच्छरों का आंतक है, इसे हटाएं।

- ड्यूटी समय में प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टरों पर होगी सख्ती से कार्रवाई।

- चादर रोजाना बदली करें।

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