Jharkhand : आतंक की जमीन पर लहलहा रही लेमनग्रास की फसल, खुलेंगे आर्थिक समृद्धि के द्वार
Lemon grass cultivation in Naxalite affected. जिस जमीन पर लेमन ग्रास की खेती हो रही है वहां पहले कुछ भी नहीं उगता था। किसानों की अतिरिक्त आय के लिए लेमनग्रास किसी वरदान से कम नहीं होगा। किसान को सिर्फ फसल बोने और काटने के लिए श्रम करना है।
जमशेदपुर, वीरेंद्र ओझा। झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के जमशेदपुर से सटे जिन इलाकों पहले नक्सलियों का गढ़ था, आज वहां नींबू घास (लेमनग्रास) की फसल लहलहा रही है। विश्व बैंक की वित्तीय मदद से यह खेती झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी (जेएसएलपीएस) करा रही है, जिसमें घाटशिला अनुमंडल की करीब 200 महिला किसानों को जोड़ा गया है। यह खेती बंजर जमीन पर हो रही है।
जेएसएलपीएस के प्रखंड कार्यक्रम प्रबंधक शिवदास घोष ने बताया कि इसकी खेती काशिदा, धरमबहाल, जोड़िशा पंचायत समेत 40 गांव में इसकी खेती हो रही है। यह झारखंड का पहला प्रोजेक्ट है। खेती की शुरुआत सितंबर 2019 में शुरू हुई है। यह करीब छह माह में तैयार हो जाता है। एक बार पौधा तैयार हो जाने के बाद इसे छह-सात वर्ष तक काट-काटकर इससे कमाई की जा सकती है। इसके लिए घाटशिला के काशिदा पंचायत में डिस्टीलरी यूनिट भी लगाया जा रहा है, जहां आसवन विधि से लेमनग्रास का तेल निकाला जाएगा। इसकी मार्केटिंग भी जेएसएलपीएस करेगी, जिससे एक किसान को एक साल में बिना पूंजीनिवेश किए 30-40 हजार रुपये तक आमदनी होगी।
सिर्फ बोने और काटने के लिए करनी होती है मेहनत
10 क्विंटल घास में निकलेगा पांच लीटर तेल
एक किसान 20 डिसमिल के खेत से साल में तीन बार इस घास के पत्ते काटकर बेच सकता है। इससे एक बार में लगभग 10 क्विंटल घास का पत्ता निकलेगा, जिससे पांच से छह लीटर तेल तैयार होगा। फिलहाल बाजार में एक लीटर तेल की कीमत 1500 रुपये है। इस तरह एक किसान साल में सिर्फ घास बेचकर 30 हजार रुपये कमा सकता है। यदि कोई इसकी खेती के लिए इनसे घास खरीदता है तो घास की एक पत्ती 60 से 80 पैसे में बिकती है। यह कहीं भी उग सकता है। इसे जानवर भी नहीं खाते हैं, लिहाजा फसल को किसी तरह से नुकसान नहीं होता है। गर्मी के मौसम में घास सूख जाते हैं, लेकिन जैसे ही बारिश होगी ये हरे हो जाते हैं। दो-तीन महीने तक भी बारिश नहीं हो, तब भी फसल मरती नहीं है।
कास्मेटिक से दवा तक में उपयोग
लेमनग्रास से निकले तेल का उपयोग लेमन टी पाउडर, साबुन, शैम्पू, हैंडवाश, फेसक्रीम, टैलकम पाउडर समेत आयुर्वेदिक व ऐलोपैथ दवा में प्रचुर मात्रा में होता है। नींबू जैसी खुशबू और स्वाद होने की वजह से इस प्राकृतिक उत्पाद की मांग लगातार बढ़ रही है।
दो साल पहले से हो रही तैयारी
कृषक मित्र अमित कुमार महतो ने बताया कि लेमनग्रास की जो खेती आज देख रहे हैं। इसकी शुरुआत दो साल पहले से हो रही है। कांसिया पंचायत के बागुड़िया गांव में 11 महिलाओं का समूह बनाकर इसकी नर्सरी तैयार की गई थी। यहीं से घास के एक-एक पत्ते को जड़ से उखाड़कर तमाम जमीन पर लगाया गया है। नर्सरी शुरू करने वाली शांति रानी महतो, अष्टमी महतो, जयंती महतो आदि महिलाएं अब अपनी दूसरी बंजर जमीन पर इसकी खेती भी कर रही हैं।
जमशेदपुर के तत्कालीन सांसद सुनील महतो की हुई थी हत्या
झारखंड के इस पहले प्रोजेक्ट की नर्सरी घाटशिला के जिस बागुड़िया गांव में शुरू हुई, यहीं जमशेदपुर के पूर्व सांसद सुनील महतो की चार मार्च 2007 को नक्सलियों ने सरेआम गोलियों से भूनकर हत्या कर दी थी। उस दिन पूर्व सांसद वहां फुटबॉल प्रतियोगिता में पुरस्कार वितरण करने गए थे। इस घटना का आतंक इस इलाके में कई साल तक रहा। यहां के लोग दोपहर बाद ही घरों में बंद हो जाते थे, लेकिन आज यहां की महिलाएं निडर होकर घर से निकलती हैं। अपनी बंजर जमीन पर लेमनग्रास सहित सब्जी व धान की खेती कर रही हैं।