शक्ति रूपेण संस्थिता : जागृत शक्तिपीठ है रंकिणी मंदिर कदमा

मंदिर में दोनों नवरात्र में कलश स्थापित कर माता की विधि-विधान से पूजा होती है।

By Rakesh RanjanEdited By: Publish:Wed, 10 Oct 2018 11:39 AM (IST) Updated:Wed, 10 Oct 2018 11:39 AM (IST)
शक्ति रूपेण संस्थिता : जागृत शक्तिपीठ है रंकिणी मंदिर कदमा
शक्ति रूपेण संस्थिता : जागृत शक्तिपीठ है रंकिणी मंदिर कदमा

जमशेदपुर (जेएनएन)। आपको पता है कि पूर्वी सिंहभूम के जिला मुख्यालय में अवस्थित रंकिणी मंदिर कदमा जागृत शक्तिपीठ है। यही वजह है कि इस मंदिर में वर्ष भर भक्तों की भारी भीड़ जुटती है। लोग भक्ति भाव से माता काली की पूजा करते हैं और मनोवांछित फल प्राप्त कर माता की जय-जयकार करते हुए अपने-अपने धाम को जाते हैं। 

मंदिर समिति के महासचिव जनार्दन पांडेय बताते हैं कि मंदिर में दोनों नवरात्र में कलश स्थापित कर माता की विधि-विधान से पूजा होती है। इसमें भक्तजन भी संकल्प स्थापित कर पूजा करते हैं। सप्तमी, अष्टमी व नवमी को श्रद्धालुओं के बीच भोग वितरण किया जाता है। अध्यक्ष दिलीप दास, सह सचिव दिलीप कुमार डे, कोषाध्यक्ष रा किशोर सिंह सहित 21 कार्यकारिणी सदस्य वर्ष भर व्यवस्था में जुटे रहते हैं। 

इतिहास  

मंदिर की स्थापना कब हुई ये बताने वाला कोई नहीं है, पर मंदिर कमेटी के लोग यह जरूर बताते हैं कि 1907 में टाटानगर बसने के पहले जब वर्तमान स्थान उलियान गांव के नाम से जाना जाता था, तब भी यहां माता का मंदिर झोपड़ी के रूप में विद्यमान था। तब यह इलाका जंगल हुआ करता था। 1927 में हलधर बाबू इस मंदिर के अध्यक्ष बने। उन्होंने ही मंदिर निर्माण की नींव रखी। 1948 में मंदिर कमेटी बनी। रामा राव बाबू महासचिव बने और इनके साथ मिलकर मूरति सिंह, हलधर सिंह, जयंती प्रसाद कमेटी में सक्रिय सदस्य बने। तभी से मंदिर का विस्तार होना शुरू हो गया। 14 फरवरी 1964 कोलकाता से मंगाई गई  काली की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा हुई। 

विशेषता   

पहले मंदिर में स्वयं प्रकट हुई माता रंकिणी व माता काली की पूजा मिट्टी व सीमेंट से बनी प्रतिमा के जरिए हुआ करती थी। 14 फरवरी 1964 के बाद से स्थापित मां रंकिणी और माता काली की पूजा विधि-विधान से होने लगी। मंदिर समिति के लोग बताते हैं कि जब यह इलाका जंगल था और मंदिर झोपड़ी के रूप में ही था, तभी ओडिशा जाने के क्रम में यहां चैतन्य महाप्रभु आए थे और उन्होंने मंदिर में एक रात गुजारी थी। इसके बाद मंदिर में तीन बार कांचीपुरम पीठ के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती भी आ चुके हैं। 

मान्यता  

मान्यता है कि यहां भक्ति भाव श्रद्धापूर्वक माता के दर्शन व पूजन करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यही कारण है कि मंदिर वर्ष भर श्रद्धालुओं-भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। मंदिर में शिव परिवार, बजरंगबली, राधा-कृष्ण, श्रीराम परिवार, माता शीतला और नवग्रह सहित गणेश-कार्तिकेय की प्रतिमाएं स्थापित हैं। अभी कुछ दिन पहले ही मंदिर में विशाल शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा हुई है। ओडिशा के किचिंग में बने 2.5 टन वजनी ग्रेनाइट के एक ही पत्थर से शिवलिंग की स्थापना मंदिर में की गई है। 

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