अमीन पर 80 लाख खर्च, प्रदर्शन सिफर
जमशेदपुर एफसी इंडियन सुपर लीग में पिछले चार सीजन से प्ले आफ की राह देख रही है पर नाकामी हाथ लग रही है। जब प्रदर्शन खराब हो तो सवाल उठेंगे ही । अब करण अमीन को भी लीजिए। जनाब पिछले चार साल से टीम में जमे है।
जमशेदपुर एफसी इंडियन सुपर लीग में पिछले चार सीजन से प्ले आफ की राह देख रही है, पर नाकामी हाथ लग रही है। जब प्रदर्शन खराब हो तो सवाल उठेंगे ही । अब करण अमीन को भी लीजिए। जनाब पिछले चार साल से टीम में जमे है। थोड़ा सा खराब प्रदर्शन करने वाले को दूसरे सीजन में टीम से बाहर कर दिया जाता है, लेकिन करण अमीन तो जमशेदपुर एफसी की जमीन ही नापकर जाएंगे। अब प्रदर्शन नहीं करेंगे तो फैंस तो सवाल उठाएंगे ही। रेड माइनर्स भी करण को लेकर सवाल उठा रहे हैं। कहते हैं, उनकी जगह किसी जूनियर को मौका दिया जाता तो बेंच स्ट्रेंथ भी मजबूत होता। पिछले चार साल में महाराष्ट्र के इस खिलाड़ी ने लगभग 80 लाख रुपये लिए। खाना-पीना व प्रशिक्षण का खर्च अलग। जाहिर है, टीम में करण अमीन जैसे खिलाड़ी होंगे तो प्रदर्शन भी राम भरोसे ही होगा।
जमशेदपुर एफसी : आ अब लौट चले
आइएसएल में जमशेदपुर एफसी प्रदर्शन देख आजकल फैंस फिल्म 'जिस देश में गंगा बहती है' का गाना गा रहे हैं, 'आ अब लौट चले
, नैन बिछाये, बाहें पसारे, तुझको पुकारे जमशेदपुर तेरा, आ अब लौट चले..।' आइएसएल-7 में जमशेदपुर एफसी का खराब प्रदर्शन ने अगर किसी को सबसे ज्यादा निराश किया तो वह हैं प्रशंसक। जमशेदपुर एफसी प्रबंधन ने गत सीजन में केरला ब्लास्टर्स को फर्श से अर्श तक पहुंचाने वाले इंग्लिश कोच ओवेन कॉयल पर पर दांव खेला था। लेकिन 'जादूगर' कोच भी मेन आफ स्टील की किस्मत नहीं बदल पाए। ओवेन का जमशेदपुर एफसी से दो साल का करार है। जाहिर है, टीम को अगले साल भी कॉयल को झेलना है। इस सीजन में अगर टीम को क्वालीफाई करना है तो अगले दो मैच जीतने होंगे। साथ ही यह भी दुआ करनी होगी कि टॉप-4 की टीमें अंक भी गंवाए। इसकी संभावना कम ही है।
दो पाटों में पिस रहे बास्केटबॉल खिलाड़ी
आजकल बास्केटबॉल खिलाड़ी दो पाटों के बीच पिसने को मजबूर हैं। आखिर जाए तो कहां जाए। एक तरफ झारखंड राज्य बास्केटबॉल संघ तो दूसरी तरफ झारखंड बास्केटबॉल संघ। कौन असली है और कौन नकली, इसी भंवरजाल में फंसे हैं खिलाड़ी। एक तरफ हरभजन सिंह का बास्केटबॉल संघ तो दूसरी तरफ भरत सिंह तलवार ताने खड़े हैं। कोई खिलाडी को हरका रहा है कि अगर दूसरे गुट की ओर से खेला तो तेरी खैर नहीं। तेरा कॅरियर खराब कर दूंगा। वहीं दूसरा गुट बोल रहा, कहीं से खेलो। खिलाड़ी है तो संघ है। ऐसी घुड़की से खिलाड़ी के पेशानी से पसीने चूने लगते हैं। बेचारे जाए तो जाए कहां। एक तरफ कुआं तो दूसरी तरफ खाई। उधर, दूसरा गुट अंतर राज्यीय आमंत्रण बास्केटबॉल टूर्नामेंट करा रहा है तो पहले गुट की भौंहें तनी हुई हैं। लेकिन खिलाड़ियों को मैच चाहिए। वह खुश हैं, लेकिन दूसरे गुट का डर भी उन्हें सता रहा है।
आखिर फिरोज की पीठ पर किसने घोंपा खंजर
हाल ही में टाटा वर्कर्स यूनियन का चुनाव में टाटा स्टील खेल विभाग के फिरोज खान कमेटी मेंबर के लिए मैदान में थे। उनके खिलाफ विनोद ठाकुर थे। फिरोज ने चुनाव से पहले काफी फील्डिग की। अपने तो अपने पराये को भी गले लगाया। खेल विभाग से लेकर कंपनी के अंदर जाकर चुनाव प्रचार किया। हर उम्मीदवार की तरह उन्होंने भी जोर-घटाव लगाकर यह अंदाजा लगा लिया कि जीत तय है। लेकिन जनाब, मतदाता बड़ा क्षणभंगुर होता है। चुनाव के दिन भी मूड बदल जाता है। हुआ भी वही। परिणाम आया तो फिरोज को सात वोट मिले, वहीं विनोद को 35 मत। उन्हें ऐसी हार की उम्मीद नहीं थी। अब उन्हें लगता है अपने साथियों ने ही पीठ पर खंजर घोंप दिया। जाहिर है, ऐसी स्थिति हो तो यही लगता है कि अपनों ने भी वोट नहीं दिया। गुप्त मतदान है भई। इसका स्वभाव ही ऐसा होता है।