Jamshedpur, Jharkhand: कोरोना की सिर्फ एक दवा... पढिए चिकित्सा महकमे की अंदरूनी खबरें
Jamshedpur Jharkhand चिकित्सकों के वाट्सएप ग्रुप में इन दिनों एक मैसेज खूब वायरल हो रहा है। मोबाइल पर भेजे जा रहे मैसेज की सच्चाई तो नहीं पता लेकिन इसमें कोरोना की सिर्फ एक ही दवा होने का दावा किया गया है।
जमशेदपुर, अमित तिवारी। धरती के भगवान कहे जाने वाले चिकित्सकों के वाट्सएप ग्रुप में इन दिनों एक मैसेज खूब वायरल हो रहा है। मोबाइल पर भेजे जा रहे मैसेज की सच्चाई तो नहीं पता, लेकिन इसमें कोरोना की सिर्फ एक ही दवा होने का दावा किया गया है। दरअसल, रामचरित मानस के एक पेज को डॉक्टर सहित अन्य लोगों के बीच में भी शेयर किया जा रहा है।
पेज के नीचे लिखा है कि रामायण के उत्तरकांड दोहा नंबर 120 में लिखा है जब पृथ्वी पर निंदा बढ़ जाएगी, पाप बढ़ जाएंगे तब चमगादड़ अवतरित होंगे और चारों तरफ उनसे संबंधित बीमारी फैल जाएगी। इस दौरान लोग मरेंगे। वहीं, दोहा नंबर-121 में लिखा है कि एक बीमारी जिसमें नर मरेंगे और उसकी सिर्फ एक दवा है प्रभुभजन, दान और समाधि में रहना यानी लॉकडाउन। इसे लेकर चिकित्सकों में चर्चा व मंथन का दौर जारी है। इसकी सच्चाई जानने की कोशिश की जा रही है।
सिर्फ वीआइपी को वेंटिलेटर
मरीजों की संख्या बढ़ने से अस्पतालों में बेड की किल्लत हो गई है। ऑक्सीजन बेड व वेंटिलेटर कुछ ही मरीजों को मिल पा रही है, जिनकी पैरवी ऊंची है। बिना पैरवी वाले को कोई देखने व सुनने वाला नहीं है। सरायकेला-खरसावां के एक अस्पताल तो सिर्फ वीआईवी मरीजों के नाम ही कर दिया है। यहां सिर्फ वीआईपी मरीज ही भर्ती हो रहे हैं। गरीबों को सरकारी अस्पताल में बेड मिल भी रहा है तो काफी मशक्कत करने के बाद। महात्मा गांधी मेमोरियल (एमजीएम) मेडिकल कॉलेज अस्पताल में मरीजों की सेवा में जुटे समाजसेवी पप्पू सिंह ने इंटरनेट मीडिया पर लिखा है कि हैसियत और चेहरा देख कर अस्पताल में बेड और जांच रिपोर्ट देना बंद हो। वहीं, सामाजिक संस्था वाइस् आफ ह्यूमैनिटी के संस्थापक हरि सिंह राजपूत ने लिखा है कि प्लाज्मा, बेड और ऑक्सीजन भी वीआईपी कल्चर की भेंट चढ़ गया। आम लोगों की जान इलाज के अभाव में जा रही है।
नाश कर दिए साहब
कोरोना से लड़ने के लिए योध्दाओं की भारी कमी पड़ रही है। डेढ़ साल पूर्व महात्मा गांधी मेमोरियल (एमजीएम) मेडिकल कॉलेज अस्पताल से लगभग 400 स्वास्थ्य कर्मियों को हटा दिया गया था। तब विभाग के प्रधान सचिव डॉ. नितिन मदन कुलकर्णी थे। उसके बाद अस्पताल की स्थिति बदतर होते चली गई। उसकी भरपाई आज तक नहीं हो सकी है। अब कोरोना मरीजों के इलाज व उनका देखरेख करने के लिए कोई नहीं मिल रहा है। मरीज तड़प रहे हैं लेकिन उन्हें दवा व ऑक्सीजन देने वाला कोई नहीं है। इलाज के अभाव में मरीजों की जान जा रही है। इधर, दूसरे साहब यानी स्वास्थ्य विभाग के वर्तमान प्रधान सचिव केके सोन भी गलती कर बैठे। सात माह पूर्व कोरोना मरीजों की संख्या थोड़ा कम हुई तो पूर्वी सिंहभूम जिले से लगभग 300 कर्मचारियों को हटा दिया गया। जबकि ये सारे कर्मचारी कोरोना की पहली लहर में अपनी जान की बाजी लगाकर मरीजों की सेवा की थी।
इनको मिलना चाहिए पद्मश्री
रात के 11 बजे सिविल सर्जन डॉ. एके लाल व सदर अस्पताल के उपाधीक्षक डॉ. एबीके बाखला परसुडीह स्थित सदर अस्पताल में बेड गिनते मिल जाएंगे। इनकी चिंता होती है कि किसी भी मरीजों को बेड के अभाव में लौटना नहीं पड़े। इसके लिए सुबह नौ बजे से लेकर रात के 12 बजे तक मैदान में डटे रहते हैं। विभिन्न कोविड अस्पतालों के निरीक्षण, ऑफिस के काम-काज व मरीजों की परेशानी सुलझाने के बाद जब रात में समय मिलता तो वे सदर अस्पताल पहुंचते है और वहां की स्थिति से अवगत होते हैं। मरीजों को बेहतर चिकित्सा उपलब्ध कराने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। कांतीलाल अस्पताल चालू कराने में भी इनका अहम योगदान है। डॉ. एके लाल का जज्बा व मेहनत की हर कोई प्रशंसा कर रहा है। कर्मचारियों का कहना है कि ऐसा अधिकारी नहीं देखा। दूसरों के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं। इनको मिलना चाहिए पद्मश्री।