Jivitputrika Vrat 2021: अब आ रहा जिउतिया या जीवित्पुत्रिका व्रत, सबसे कठिन व्रत में होती गिनती
Jivitputrika Vrat 2021 बिहार झारखंड व उत्तर प्रदेश में पुत्र की लंबी आयु की कामना के लिए जिउतिया व्रत मनाया जाता है। महिलाएं अपने पुत्र की लंबी आयु व बेहतर स्वास्थ्य की कामना करती है। यह सबसे कठिन व्रत के रूप में माना जाता है। जानिए जिउतिया कब है...
जमशेदपुर, जासं। सुहागन महिलाओं का निर्जला व्रत तीज अभी बीता ही है कि एक और व्रत की तैयारी के दिन महिलाएं गिनने लगी हैं। यह व्रत सभी महिलाएं करती हैं, क्योंकि यह संतान की दीर्घायु व बेहतर स्वास्थ्य के लिए किया जाता है। इसे हिंदू धर्म की सभी महिलाएं करती हैं, जिसे जीवित्पुत्रिका व्रत भी कहा जाता है। यह सबसे कठिन व्रत है, क्योंकि इसमें व्रती महिलाएं सुबह से रात तक पानी भी नहीं पीती हैं।
ज्योतिषाचार्य पंडित रमाशंकर तिवारी बताते हैं कि यह सबसे कठिन व्रत माना जाता है। इस दिन महिलाएं अपनी संतान की लंबी उम्र व निरोगी काया की कामना के लिए निर्जला व्रत करती हैं। सप्तमी को नहाय-खाय के दिन सूर्यास्त के बाद व्रती महिलाएं अन्न-जल त्याग देती हैं। हालांकि तीज भी निर्जला ही होता है, लेकिन उसमें आजकल महिलाएं फल खा लेती हैं, जबकि इसमें कुछ नहीं खाया जाता। जो महिलाएं बीमार होती हैं, वह यह व्रत नहीं करती हैं। शास्त्र में भी बीमार के लिए व्रत से छूट दी गई है। कुछ महिलाएं नियमित रूप से दवा लेती हैं, जिसे छोड़ा नहीं जा सकता, वह महिलाएं इस व्रत को नहीं करती हैं।
29 सितंबर को पड़ रहा व्रत
इस साल जिउतिया व्रत 29 सितंबर को पड़ रहा है। हालांकि यह 28 सितंबर को नहाए-खाय के साथ शुरू हो जाएगा। वैसे अष्टमी तिथि 28 सितंबर मंगलवार शाम 6.16 बजे से लग जा रही है, लेकिन व्रत को उदया तिथि में मनाने की परंपरा है, इसलिए 29 सितंबर बुधवार को निर्जला व्रत किया जाएगा। इसका पारण अगले दिन 30 सितंबर गुरुवार को होगा।
महाभारत काल से जुड़ा है व्रत
जिउतिया व्रत की कई कथा प्रचलित है, जिसमें से एक कथा के अनुसार यह व्रत महाभारत काल से जुड़ा है। कहा जाता है कि उत्तरा के गर्भ में पल रहे पांडव पुत्र की रक्षा के लिए श्रीकृष्ण ने अपने सभी कर्म से उसे पुनर्जीवित कर दिया था। उसी समय से महिलाएं आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को निर्जला व्रत रखती हैं। मान्यता है कि यह व्रत करने से भगवान श्रीकृष्ण संतान की रक्षा करते हैं। इसमें चूल्हो-सियारो की कथा भी कही जाती है, जिसमें भी मूल बात संतान की रक्षा के लिए किए गए उपाय होते हैं।