Archery : टोक्यो ओलंपिक में उम्मीदों का पहाड़ लेकर उतरने को तैयार झारखंड की स्वर्णपरी

Archery. टोक्यो में वह निशाना साधेगी तो यह तीसरी मर्तबा होगा जब किसी ओलंपिक में भाग लेंगी। वह सवा अरब भारतीयों की उम्मीदों का पहाड़ लेकर मैदान पर उतरेगी। ग्वाटेमाला में तीरंदाजी विश्वकप स्टेज-1 में व्यक्तिगत स्वर्ण जीत उसने फिर भारतीयों की उम्मीदों को जिंदा कर दिया है।

By Rakesh RanjanEdited By: Publish:Thu, 29 Apr 2021 09:06 PM (IST) Updated:Thu, 29 Apr 2021 09:06 PM (IST)
Archery : टोक्यो ओलंपिक में उम्मीदों का पहाड़ लेकर उतरने को तैयार झारखंड की स्वर्णपरी
पूर्व भारतीय तीरंदाज डोला बनर्जी कहती है, दीपिका अनुभवी है।

जमशेदपुर, जितेंद्र सिंह। विपरीत परिस्थितियां, आलोचकों की जुबान पर चढ़ना और बिना पदक के देश वापसी। पिछले एक दशक से झारखंड की स्वर्णपरी दीपिका कुमारी इन सभी परिस्थितियों से गुजरी है। उनसे हर बार पदक की उम्मीद की जाती है। हर बार उनसे ओलंपिक स्वर्ण हासिल करने से संबंधित सवाल पूछे जाते हैं। दीपिका अपने कंधों पर इन्हीं मानसिक तनाव को लेकर जीती है।

जब जुलाई में टोक्यो में वह निशाना साधेगी तो यह तीसरी मर्तबा होगा, जब किसी ओलंपिक में भाग लेंगी। वह सवा अरब भारतीयों की उम्मीदों का पहाड़ लेकर मैदान पर उतरेगी। ग्वाटेमाला में तीरंदाजी विश्वकप स्टेज-1 में व्यक्तिगत स्वर्ण जीत उसने फिर भारतीयों की उम्मीदों को जिंदा कर दिया है। दीपिका कुमारी ग्वाटेमाला में रिकर्व व्यक्तिगत तीरंदाजी के दौरान लगातार तीन दिनों तक मानसिक दवाब में रही। लेकिन यही उनकी खासियत है। दबाव में बेहतर करने की। हर बार शॉट लगाने के बाद कोच पूर्णिमा महतो की ओर घूमती है। कोच का जवाब होता है, ''''बढ़िया।'''' इस शब्द के साथ ही उनका हर तनाव दूर हो जाता है।

यह निशाना सीधे सोने पर लगा

ग्वाटेमाला में स्वर्ण की लड़ाई में अमेरिकी तीरंदाज मैकेंजी ब्राउन से शुरुआत में ही दीपिका ने 3-1 से बढ़त बना ली। लेकिन एक वक्त ऐसा आया जब ब्राउन ने बराबरी हासिल कर ली। लेकिन अंतिम तीर से निशाना साधकर दीपिका ने पदक अपने नाम कर लिया। दीपिका ने कहा, उस समय दिल काफी जोड़ से धड़क रहा था। मैं काफी डरी हुई थी, जिसके कारण मैं घबरा गई। लेकिन अंतिम तीर में कोई गलती की गुंजाइश नहीं थी। मैंने तीर को दाईं ओर भेजी, 10 मिलीमीटर के बाहर, सिर्फ मिलीमीटर। ब्राउन को भी एक नौ अंक मिले। मेरा यह निशाना सीधे सोने पर लगा। सबसे बड़ी बात है कि कुछ घंटे पहले दीपिका टीम स्पर्धा में भारत को स्वर्ण दिला चुकी थी।

दबाव के साथ जीना सीख चुकी

पूर्व भारतीय तीरंदाज डोला बनर्जी कहती है, दीपिका अनुभवी है। इसी कारण उनमें विश्वास कूट-कूट कर भरा है। वह हमेशा अपनी गलतियों को सुधारती रहती है। चाहे वह तकनीक हो या फिर मनोवैज्ञानिक स्तर पर। देखकर यह अच्छा लगता है। वह टीम कैप्टन की तरह प्रदर्शन करती है और आगे बढ़कर नेतृत्व भी करती है। दीपिका कहती हैं, लंबे वक्त के बाद मुझे किसी बड़ी प्रतियोगिता के फाइनल में शूटिंग करने का मौका मिला। यह अच्छा अनुभव है। इस स्वर्ण पदक से विश्वास बढ़ा है और मुझे बेहतर प्रदर्शन करने के लिए प्रेरित भी करता है। दीपिका ऐसे ही दबाव के साथ जीना सीख चुकी है। इतने कम उम्र में अर्जुन पुरस्कार व पद्मश्री जैसा सम्मान पा चुकी यह स्वर्णपरी ने पिछले लॉकडाउन के दौरान कहा था, मैच के दौरान कैसे बेहतर प्रदर्शन करना है, इसे मैं बखूबी जानती हूं। सोशल मीडिया पर भले ही मेरे प्रतिद्वंद्वी तीरंदाज अभ्यास का वीडियो बनाकर डालते रहे, लेकिन मैच में मेरा प्रदर्शन ही बेहतर होगा।

दबाव में करती बेहतर प्रदर्शन

वह कहती हैं, साथी तीरंदाज अतनु दास से शादी और मनोवैज्ञानिकों के साथ सत्र से भी आत्मविश्वास बढ़ाने में मदद मिली। विश्व की धाकड़ तीरंदाज कांग चाई यंग, जैंग मोंगर व 1400 अंक का फिटा रिकार्ड वाले आन सान से अब उन्हें डर नहीं लगता। वह दबाव में बेहतर प्रदर्शन करती है।

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